गहोई वैश्य समाज के विवाह सम्बन्धी संस्कार
विवाह सम्बन्धी संस्कार
पुत्र पुत्रियों के सुयोग्य विवाह सम्पन्न करना हमारी सबसे बड़ी नैतिक जिम्मेदारी है।
वे ही बेटे, दामाद, बेटी, बहू हमारे परिवार, कुटुम्ब और समाज का कल उत्तरदायित्व सम्हाल
कर आने वाले युग का निर्धारण करेंगे। विवाह योग्य अच्छे वर-वधू की जानकारी प्राप्त
करने के लिये उनके पारिवारिक परिचय तथा जन्माकों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में
गहोई बन्धु पत्रिका जिसमें प्रत्येक माह वायोडाटा प्रकशित किए जाते हैं। एवं महासभा
की बेबसाइड से भी सहयोग ले सकते है। साथ ही समाज द्वारा जगह-जगह पर परिचय सम्मेलन किए
जा रहे हैं जिनके माध्यम से आप सहज ही जानकारी प्राप्त कर अपने पुत्र, पुत्रियों के
वैवाहिक
विवाह
1. पक्कयात (सम्बन्ध तय होने की अनुमति प्राप्त करना) :-
यहां से वैवाहिक कार्य का शुभारम्भ होता है। दोनों पक्ष लड़का-लड़की देखने तथा संतुष्ट होकर सभी बातें तय होने के साथ कन्या पक्ष वर पक्ष के यहां विवाह की अनुमति प्राप्त करने जाते हैं तथा सम्बन्ध तय होने की स्वीकृति मिलने पर वर पक्ष के यहां उनके पूजा स्थान पर भगवान के सामने कम से कम 1 किलो मीठा, कुछ फलों के साथ 1 नारियल तथा 101 रूपये नगद रखकर अगरबत्ती दीपक जलाकर प्रार्थना करना चाहिये कि ईश्वर यह आयोजन सुख से पूर्ण करें। तत्पश्चात वर पक्ष के मुखिया से पूछकर किसी एक सम्मानीय बुजुर्ग को कम से कम 101 रूपये देकर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिये तथा बिदा लेते समय घर के छोटे बालक बालिकायें यदि हो तो उन्हें भी कुछ उचित नगद राशि देकर स्नेहपूर्वक प्रस्थान करना चाहिये। इससे व्यक्ति के व्यवहार तथा प्रेम का आंकलन होता है।
यहां से वैवाहिक कार्य का शुभारम्भ होता है। दोनों पक्ष लड़का-लड़की देखने तथा संतुष्ट होकर सभी बातें तय होने के साथ कन्या पक्ष वर पक्ष के यहां विवाह की अनुमति प्राप्त करने जाते हैं तथा सम्बन्ध तय होने की स्वीकृति मिलने पर वर पक्ष के यहां उनके पूजा स्थान पर भगवान के सामने कम से कम 1 किलो मीठा, कुछ फलों के साथ 1 नारियल तथा 101 रूपये नगद रखकर अगरबत्ती दीपक जलाकर प्रार्थना करना चाहिये कि ईश्वर यह आयोजन सुख से पूर्ण करें। तत्पश्चात वर पक्ष के मुखिया से पूछकर किसी एक सम्मानीय बुजुर्ग को कम से कम 101 रूपये देकर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिये तथा बिदा लेते समय घर के छोटे बालक बालिकायें यदि हो तो उन्हें भी कुछ उचित नगद राशि देकर स्नेहपूर्वक प्रस्थान करना चाहिये। इससे व्यक्ति के व्यवहार तथा प्रेम का आंकलन होता है।
2. सगाई :-
सगाई मे एक बड़ा थाल लड्डुओं का एवं चार थाल छोटे जिसमें 5 किलो बूंदी के लड्डू, फल, मेवा, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, रूपया आदि रखे। 101 रू. लड़के के हाथ पर रखकर लड़के का तिलक कर हार पहनावे लड़की का भाई लड़के को पान खिलावे फिर वस्त्र, आभूषण, रूपया जो भी हो देवे एवं 5/- रू. न्योछावार करे। लड़का वाला बुलउवा बाँटेगा भोजन स्वल्पाहार श्रद्वानुसार करा सकते हैं। कम से कम 1/-रू. देकर भी सगाई की जा सकती है।
सगाई मे एक बड़ा थाल लड्डुओं का एवं चार थाल छोटे जिसमें 5 किलो बूंदी के लड्डू, फल, मेवा, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, रूपया आदि रखे। 101 रू. लड़के के हाथ पर रखकर लड़के का तिलक कर हार पहनावे लड़की का भाई लड़के को पान खिलावे फिर वस्त्र, आभूषण, रूपया जो भी हो देवे एवं 5/- रू. न्योछावार करे। लड़का वाला बुलउवा बाँटेगा भोजन स्वल्पाहार श्रद्वानुसार करा सकते हैं। कम से कम 1/-रू. देकर भी सगाई की जा सकती है।
3. रिंग सिरेमनि अथवा कन्या की गोद भराई :-
आजकल कहीं-कहीं पर कन्या की गोद भराई तथा रिंग सिरेमनि का आयोजन किया जाने लगा है यह कन्या पक्ष के घर पर होता है। इस आयोजन में वर पक्ष वाले खास-खास 10-11 सदस्य कन्या पक्ष के यहां आते हैं। कन्या पक्ष द्वारा अपने नाते रिश्तेदारों की उपिस्थति में उन्हें आदर सम्मान सहित नाश्ता, भोजन आदि कराया जाता है, ततपश्चात वर पक्ष द्वारा कन्या की गोद भराई रस्म पूर्ण की जाती है। ओली भरने का कार्य फूफा अथवा घर के किसी सम्मानीय बड़े बुजुर्ग द्वारा किया जाना चाहिये,यह भी ध्यान रहे कि गोद भरने वाला व्यक्ति संतानहीन न हो। कन्या की ओली भरने से पूर्व 1अंजुली बताशा आचार्य को दें। आचार्य न होने पर भगवान के सम्मुख रखें। ओली में कन्या के वस्त्र (साड़ी आदि), आभूषण तथा नगद राशि, बताशा के साथ डालना चाहिये। पहले 4 अंजुली बताशा डालें। फिर पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1नारियल, वस्त्र एवं आभूषण व 101 रूपये नगद डाल कर कन्या की ओली भरें। ओली भरने के पश्चात 1 अंजुली बताशा नाइन को दें, पश्चात 10 रूपये से कन्या की निछावर कर नाई को दे। उसके पश्चात उचित अथवा निर्धारित स्थान पर बैठकर वर, कन्या एक दूसरे को अंगूठी पहनायें तथा उक्त अवसर पर वर, कन्या दोनों पक्ष 10/-, 10/- रूपये से उनकी निछावरकर नाई को दें।
आजकल कहीं-कहीं पर कन्या की गोद भराई तथा रिंग सिरेमनि का आयोजन किया जाने लगा है यह कन्या पक्ष के घर पर होता है। इस आयोजन में वर पक्ष वाले खास-खास 10-11 सदस्य कन्या पक्ष के यहां आते हैं। कन्या पक्ष द्वारा अपने नाते रिश्तेदारों की उपिस्थति में उन्हें आदर सम्मान सहित नाश्ता, भोजन आदि कराया जाता है, ततपश्चात वर पक्ष द्वारा कन्या की गोद भराई रस्म पूर्ण की जाती है। ओली भरने का कार्य फूफा अथवा घर के किसी सम्मानीय बड़े बुजुर्ग द्वारा किया जाना चाहिये,यह भी ध्यान रहे कि गोद भरने वाला व्यक्ति संतानहीन न हो। कन्या की ओली भरने से पूर्व 1अंजुली बताशा आचार्य को दें। आचार्य न होने पर भगवान के सम्मुख रखें। ओली में कन्या के वस्त्र (साड़ी आदि), आभूषण तथा नगद राशि, बताशा के साथ डालना चाहिये। पहले 4 अंजुली बताशा डालें। फिर पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1नारियल, वस्त्र एवं आभूषण व 101 रूपये नगद डाल कर कन्या की ओली भरें। ओली भरने के पश्चात 1 अंजुली बताशा नाइन को दें, पश्चात 10 रूपये से कन्या की निछावर कर नाई को दे। उसके पश्चात उचित अथवा निर्धारित स्थान पर बैठकर वर, कन्या एक दूसरे को अंगूठी पहनायें तथा उक्त अवसर पर वर, कन्या दोनों पक्ष 10/-, 10/- रूपये से उनकी निछावरकर नाई को दें।
नोट :-
उक्त वर, बधू एक दूसरे को माला नहीं पहिनावें। आचार्यो द्वारा गणेश पूजन के समय भी वर की पांव पखारने का कार्य भी कन्या के भाई से न कराया जावे। यह दोनों कार्य विवाह के पूर्व उचित नहीं है।
विषेश:-
कहीं पर वर, कन्या दोनो की ओली डाली जाती है। दोनों कार्य एक ही समान है परन्तु वर की ओली में लगुन खुलने से पूर्व सिर्फ बताशा एवं 1 नारियल तथा 101 रूपये ही डाले जावें, अन्य कुछ भी नही
उक्त वर, बधू एक दूसरे को माला नहीं पहिनावें। आचार्यो द्वारा गणेश पूजन के समय भी वर की पांव पखारने का कार्य भी कन्या के भाई से न कराया जावे। यह दोनों कार्य विवाह के पूर्व उचित नहीं है।
विषेश:-
कहीं पर वर, कन्या दोनो की ओली डाली जाती है। दोनों कार्य एक ही समान है परन्तु वर की ओली में लगुन खुलने से पूर्व सिर्फ बताशा एवं 1 नारियल तथा 101 रूपये ही डाले जावें, अन्य कुछ भी नही
4 विवाह षोधन (सुतकरा):-
लड़की वाला शुभ मुहुर्त में योग्य पंडित को बुलाकर लगुन पत्रिका लिखने व शादी का पूरा विवरण शोधन कराकर पत्र लिखकर पत्र में 5/- रू. रखकर हल्दी छिड़क कर नाई या डाक द्वारा भेजे।
5. लग्न पत्रिका लेखन कार्य :-
यह कार्य कन्या पक्ष के घर पर ही सुविधानुसार सम्पन्न किया जाता है। इस कार्य में वर पक्ष की उपिस्थति नहीं होनी चाहिये, भले ही वह स्थानीय ही क्यों न हो। इस आयोजन का कार्य कन्या पक्ष अपने पुरोहित से पूंछकर शुभ मुहुर्त में विवाह सम्पन्न होने की तारीख से 1पक्ष पूर्व करना चाहिये। यह कार्य सुबह से शाम गौधूली बेला के बीच कन्या पक्ष अपने बन्धु बान्धव रिश्तेदार तथा स्थानीय प्रतिष्ठित सामाजिक जन सहित स्थानीय पंचों की उपिस्थति में विद्वान आचार्य (पुरोहित) द्वारा लगुन लिखवाई जावे। इसमें लगने वाली सामग्री निम्न अनुसार है 2 नग छपी हुई लग्न पत्रिकायें, पूजन के लिये हल्दी पिसी, रोरी, कुकुम, चावल, फूल-माला, अगरबत्ती, चन्दन (घिसा हुआ), बताशा , मिष्ठान्न, फल, पचरंगा सूत 1 बड़ी गिट्टी, खुले पान (डंठल वाले बड़े) 11 नग, सुपाड़ी बड़ी 7 नग, छोटी पूजन की सुपाड़ी 11 नग, छोटे पान 10 नग, लौंग, इलायची, पीले चावल 100 ग्राम, दुर्वा 1 मुट्ठी, गाय का गोबर, 10 दोना, हल्दी की गाठें 15 नग, पटा एवं भगवान का सिंहासन, कलश, दीया सहित गेहूं 100 ग्राम, आम की की लकड़ी, 100 ग्राम परथनियां, हवन पात्र, 50 ग्राम हवन सामग्री, गंगाजल इत्र आदि। लग्न पत्रिका में विवाह के कार्यक्रम मुहुर्त अनुसार लिखने के उपरान्त, उसके अन्दर पीले रंगे हुये चावल तथा 5 बड़ी सुपाड़ी, 5 हल्दी की गांठे, सवा रूपया नगद या चांदी का सिक्का जैसी भी सामर्थ्य हो रख, पत्रिका बन्द कर ऊपर खुले पान, दुर्वा रखकर रंगीन सूत से अच्छी तरह बांधें तथा दूसरी पत्रिका जो घर में ही रहेगी, उसमें 1 सुपारी, 1 हल्दी चावल दुर्वा पान रखकर बांधे। पहली लग्न पत्रिका साटन के लाल/पीले वस्त्र में रखकर किसी डिब्बे में रखकर साथ में एक नारियल रखकर पैक कर दें। यह पत्रिका एक रात्रि अपने यहां रखकर, दूसरे दिन नाई अथवा कन्या के भाइयों द्वारा वर पक्ष के यहां भेजना चाहिये, साथ में पंचों द्वारा लिखा गया पत्र और उसके साथ 51 रूपये लगुन के, 51 रूपये ओली के 11 रूपये पूजन के, 10 रूपये, निछावर के कुल 123 रूपये रखकर अलग से भेजें। लन्ग पत्रिका लिखने उपरान्त पुरोहित (आचार्य) की दक्षिणा 51 रूपये अथवा 101 रूपये यथाशक्ति नाई को दूर्वा के 10 रूपये तथा लग्न पत्रिका की निछावर 10 रूपये अवश्य देवें। सर्वसम्मत नियम अनुसार मांगलिक कार्य प्रारंभ होने पर पंचायत के लिये उपिस्थत पंच को उस पंचायत के नियमानुसार अथवा अपनी सामर्थ अनुसार रूपये देकर रसीद प्राप्त कर समाज को सहयोग अवश्य देवें। इस अवसर पर सभी अतिथियों के चाय, नाश्ता अथवा सुविधा युक्त उनका सत्कार कर बुलौवा (बताशा अथवा अन्य मिष्ठान्न) के पुड़े देवें।
लड़की वाला शुभ मुहुर्त में योग्य पंडित को बुलाकर लगुन पत्रिका लिखने व शादी का पूरा विवरण शोधन कराकर पत्र लिखकर पत्र में 5/- रू. रखकर हल्दी छिड़क कर नाई या डाक द्वारा भेजे।
5. लग्न पत्रिका लेखन कार्य :-
यह कार्य कन्या पक्ष के घर पर ही सुविधानुसार सम्पन्न किया जाता है। इस कार्य में वर पक्ष की उपिस्थति नहीं होनी चाहिये, भले ही वह स्थानीय ही क्यों न हो। इस आयोजन का कार्य कन्या पक्ष अपने पुरोहित से पूंछकर शुभ मुहुर्त में विवाह सम्पन्न होने की तारीख से 1पक्ष पूर्व करना चाहिये। यह कार्य सुबह से शाम गौधूली बेला के बीच कन्या पक्ष अपने बन्धु बान्धव रिश्तेदार तथा स्थानीय प्रतिष्ठित सामाजिक जन सहित स्थानीय पंचों की उपिस्थति में विद्वान आचार्य (पुरोहित) द्वारा लगुन लिखवाई जावे। इसमें लगने वाली सामग्री निम्न अनुसार है 2 नग छपी हुई लग्न पत्रिकायें, पूजन के लिये हल्दी पिसी, रोरी, कुकुम, चावल, फूल-माला, अगरबत्ती, चन्दन (घिसा हुआ), बताशा , मिष्ठान्न, फल, पचरंगा सूत 1 बड़ी गिट्टी, खुले पान (डंठल वाले बड़े) 11 नग, सुपाड़ी बड़ी 7 नग, छोटी पूजन की सुपाड़ी 11 नग, छोटे पान 10 नग, लौंग, इलायची, पीले चावल 100 ग्राम, दुर्वा 1 मुट्ठी, गाय का गोबर, 10 दोना, हल्दी की गाठें 15 नग, पटा एवं भगवान का सिंहासन, कलश, दीया सहित गेहूं 100 ग्राम, आम की की लकड़ी, 100 ग्राम परथनियां, हवन पात्र, 50 ग्राम हवन सामग्री, गंगाजल इत्र आदि। लग्न पत्रिका में विवाह के कार्यक्रम मुहुर्त अनुसार लिखने के उपरान्त, उसके अन्दर पीले रंगे हुये चावल तथा 5 बड़ी सुपाड़ी, 5 हल्दी की गांठे, सवा रूपया नगद या चांदी का सिक्का जैसी भी सामर्थ्य हो रख, पत्रिका बन्द कर ऊपर खुले पान, दुर्वा रखकर रंगीन सूत से अच्छी तरह बांधें तथा दूसरी पत्रिका जो घर में ही रहेगी, उसमें 1 सुपारी, 1 हल्दी चावल दुर्वा पान रखकर बांधे। पहली लग्न पत्रिका साटन के लाल/पीले वस्त्र में रखकर किसी डिब्बे में रखकर साथ में एक नारियल रखकर पैक कर दें। यह पत्रिका एक रात्रि अपने यहां रखकर, दूसरे दिन नाई अथवा कन्या के भाइयों द्वारा वर पक्ष के यहां भेजना चाहिये, साथ में पंचों द्वारा लिखा गया पत्र और उसके साथ 51 रूपये लगुन के, 51 रूपये ओली के 11 रूपये पूजन के, 10 रूपये, निछावर के कुल 123 रूपये रखकर अलग से भेजें। लन्ग पत्रिका लिखने उपरान्त पुरोहित (आचार्य) की दक्षिणा 51 रूपये अथवा 101 रूपये यथाशक्ति नाई को दूर्वा के 10 रूपये तथा लग्न पत्रिका की निछावर 10 रूपये अवश्य देवें। सर्वसम्मत नियम अनुसार मांगलिक कार्य प्रारंभ होने पर पंचायत के लिये उपिस्थत पंच को उस पंचायत के नियमानुसार अथवा अपनी सामर्थ अनुसार रूपये देकर रसीद प्राप्त कर समाज को सहयोग अवश्य देवें। इस अवसर पर सभी अतिथियों के चाय, नाश्ता अथवा सुविधा युक्त उनका सत्कार कर बुलौवा (बताशा अथवा अन्य मिष्ठान्न) के पुड़े देवें।
6. वर पक्ष द्वारा लग्न वालों की बिदाई :-
वर पक्ष को कन्या पक्ष द्वारा भेजी गई लग्न पत्रिका को सम्मान पूर्वक स्वीकार कर निकट किसी मंदिर अथवा घर के ही पूजा स्थल में रखवा लेना चाहिये तथा साथ में आयी पंचपाती के पढ़ लेना चाहिये। उसमें लिखे वैवाहिक कार्यो के मुहूर्त अनुसार ही अपने सभी वैवाहिक कार्यक्रम पूर्ण करना चाहिये। साथ ही लग्न पत्रिका लाने वाले का उचित पुरस्कार तथा भाई हो तो उनकी यथा शक्ति बिदाई करना चाहिये।
वर पक्ष को कन्या पक्ष द्वारा भेजी गई लग्न पत्रिका को सम्मान पूर्वक स्वीकार कर निकट किसी मंदिर अथवा घर के ही पूजा स्थल में रखवा लेना चाहिये तथा साथ में आयी पंचपाती के पढ़ लेना चाहिये। उसमें लिखे वैवाहिक कार्यो के मुहूर्त अनुसार ही अपने सभी वैवाहिक कार्यक्रम पूर्ण करना चाहिये। साथ ही लग्न पत्रिका लाने वाले का उचित पुरस्कार तथा भाई हो तो उनकी यथा शक्ति बिदाई करना चाहिये।
7. मण्डपाच्छादन:-
यह विवाह का अति महत्वपूर्ण कार्य है। कन्या पक्ष के यहां मड़वा गाड़ने का कार्य सम्पन्न किया जाता है तथा इसी हरे बांस के मण्डप की छांव तले विवाह की सम्पूर्ण प्रक्रिया उपरांत सात फेरे लगाकर विवाह पूर्ण होता है। पूर्व में बारात आगमन कन्या के घर होता था परन्तु वर्तमान में वर एवं कन्या पक्ष के तालमेल अनुसार वर के नगर में ही जाना पड़ता है अथवा विशाल समारोहों के कारण निवास स्थान में जगह न होने से व्यवसायिक स्थलों में जाकर वैवाहिक कार्य सम्पन्न किये जाते है। लग्न पत्रिका में लिखे मुहुर्त अनुसार यदि फेरे घर से करने हो, तो स्थाई अथवा चल पूजा से मडवा गाड़ने का कार्य पूर्ण करना चाहिये, वैसे आजकल उसी दिन विवाह के लिये निश्चित स्थान पर ही कन्या पक्ष द्वारा मण्डपाच्छादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है। वर्तमान में मण्डप स्थल आधुनिक सज्जा से युक्त पूर्व से ही बने होते है। केवल खम्म गाड़ना भर शेष होता है, जिसके लिये निम्न सामान की आवश्यकता पड़ती है।
चार कलसी वाला एक मंडवा (गहोईयों का) साथ में 2 पटली तथा 1 नग शाल वृक्ष की लकड़ी (यह लकड़ी वंश बेल वृद्धि की सूचक होती है, इसे वंश वृद्धि के लिये बहुत ही शुभ माना गया है। 1 नग पंचरत्नी, फूलमाला, कलश के लिये एक बड़ा लोटा (कांसे का अधिक उपयुक्त), 2 मिट्टी के बड़े दिया, 200 ग्राम मीठा तेल, 2 बड़ी लम्बी वाली बाती, 1 माचिस, 1 पुड़ा अगरबत्ती, गेहूं 100 ग्राम, पूजा हेतु हल्दी गांठ, सुपाड़ी बड़ी, लौंग, इलायची, खुले डंठल वाले पान बडे़, 5 नग हल्दी पिसी 100 ग्राम, रोरी, चन्दन, रंगीन सूत, कपूर, शुद्धता घी 50 ग्राम, बताशा 100 ग्राम, चावल 50 ग्राम, हवन सामग्री 50 ग्राम, मीठा 250 ग्राम, गंगाजल, आम की लकड़ी, हवन की परथनियां, आम की पत्ती, 7-8 किलो मिट्टी, एक खाली टीन रंगीन पेपर से सजा हुआ, पूजा हेतु थाली, पूजन हेतु जल अलग से, गाय का गोबर (या बनी हुई गौर गणेश जो लगुन लिखते समय बनाई गई थी), एक लोहे की सब्बल। पूजन में कन्यादान लेने वाले व्यक्ति को बैठना चाहिये। यदि पत्नी है, तो सपत्नीक विधि पूर्वक पूजा करना चाहिये। पूजन पूर्ण होने पर मानदान दामाद, बहनोई, भानजा आदि जो समय पर उपिस्थत हों उनका रोरी तिलक लगाकर पूजन कर, उनके हाथों में हल्दी लगायें, पश्चात उन्हें कुछ नेंग यथा शक्ति देकर उनसे मड़वा गाड़ने का अनुरोध करें, मड़वा गाड़ते समय पंच को आवश्य आमंत्रित करें। तथा मानदान के साथ, चार और व्यक्ति हाथ लगावें, जो अलग-अलग गोत्र के हों तथा संतान संपन्न हों। (कुआरे लड़के मण्डप में हाथ न लगायें तथा मामा या भाई के सालों को भी मण्डप गाड़ते समय उसमें हाथ नहीं लगाना चाहिये।) मड़वा गाड़ने से पूर्व मिट्टी टीन में भर लें, सब्बल से 5 बार खोदें, फिर पंचरत्नी तथा सवा रूपये उसमें पत्ते में बांधकर नीचे दबा दें तथा मड़वा उसी के उपर रखकर गाड़ दें, बगल से (समय) शल की लकड़ी गाड़ दें। हल्का जल डालकर अच्छी तरह दबा दें। मड़वा के ऊपर आम की पत्ती माला-फूल आदि रख दें एवं प्रणाम करें। पश्चात कन्या की भाभी से मण्डप में हल्दी कोपर में घोलकर 5-5 हांथे मण्डप में तथा टीन में लगा दें। पुरोहित को दक्षिणा 51/- या 101/- अथवा यथा शक्ति पूजन करने वाले व्यक्ति से संकल्प करायें, साथ में 5-5रूपये साथियों को आवश्य दें। नाई को 10/- मंडप की निछावर तथा 10/- मानदान की निछावर कर देवें। पश्चात मंडप में उपिस्थत सभी का रोरी हल्दी चांवल से तिलक करें, (परस्पर हल्दी लगाना खेलना आदि अब समयानुकूल नहीं है। अत: इसे महत्व न दिया जाय) सभी उपिस्थत बन्धु बान्धवों को मंडप के नीचे अर्थात निकट बैठाकर भोजन करा के मंडप को जूंठा अवश्य कर दें।
नोट :- बारात के दिन यदि मंगलवार का दिन हो, तो मंडवा एक दिन पूर्व ही कर लें क्योंकि मंगल भूमि का बड़ा पुत्र है, पुत्र के दिन मां (धरती) का खोदना शास्त्रों में वर्जित है, इसके परिणाम अनुकूल नहीं होते। अत: इस बात का ध्यान अवश्य रखें। जहां तक बन सके मड़वा की ज्योति न बुझे समय-समय पर दिया में तेल डालते
यह विवाह का अति महत्वपूर्ण कार्य है। कन्या पक्ष के यहां मड़वा गाड़ने का कार्य सम्पन्न किया जाता है तथा इसी हरे बांस के मण्डप की छांव तले विवाह की सम्पूर्ण प्रक्रिया उपरांत सात फेरे लगाकर विवाह पूर्ण होता है। पूर्व में बारात आगमन कन्या के घर होता था परन्तु वर्तमान में वर एवं कन्या पक्ष के तालमेल अनुसार वर के नगर में ही जाना पड़ता है अथवा विशाल समारोहों के कारण निवास स्थान में जगह न होने से व्यवसायिक स्थलों में जाकर वैवाहिक कार्य सम्पन्न किये जाते है। लग्न पत्रिका में लिखे मुहुर्त अनुसार यदि फेरे घर से करने हो, तो स्थाई अथवा चल पूजा से मडवा गाड़ने का कार्य पूर्ण करना चाहिये, वैसे आजकल उसी दिन विवाह के लिये निश्चित स्थान पर ही कन्या पक्ष द्वारा मण्डपाच्छादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है। वर्तमान में मण्डप स्थल आधुनिक सज्जा से युक्त पूर्व से ही बने होते है। केवल खम्म गाड़ना भर शेष होता है, जिसके लिये निम्न सामान की आवश्यकता पड़ती है।
चार कलसी वाला एक मंडवा (गहोईयों का) साथ में 2 पटली तथा 1 नग शाल वृक्ष की लकड़ी (यह लकड़ी वंश बेल वृद्धि की सूचक होती है, इसे वंश वृद्धि के लिये बहुत ही शुभ माना गया है। 1 नग पंचरत्नी, फूलमाला, कलश के लिये एक बड़ा लोटा (कांसे का अधिक उपयुक्त), 2 मिट्टी के बड़े दिया, 200 ग्राम मीठा तेल, 2 बड़ी लम्बी वाली बाती, 1 माचिस, 1 पुड़ा अगरबत्ती, गेहूं 100 ग्राम, पूजा हेतु हल्दी गांठ, सुपाड़ी बड़ी, लौंग, इलायची, खुले डंठल वाले पान बडे़, 5 नग हल्दी पिसी 100 ग्राम, रोरी, चन्दन, रंगीन सूत, कपूर, शुद्धता घी 50 ग्राम, बताशा 100 ग्राम, चावल 50 ग्राम, हवन सामग्री 50 ग्राम, मीठा 250 ग्राम, गंगाजल, आम की लकड़ी, हवन की परथनियां, आम की पत्ती, 7-8 किलो मिट्टी, एक खाली टीन रंगीन पेपर से सजा हुआ, पूजा हेतु थाली, पूजन हेतु जल अलग से, गाय का गोबर (या बनी हुई गौर गणेश जो लगुन लिखते समय बनाई गई थी), एक लोहे की सब्बल। पूजन में कन्यादान लेने वाले व्यक्ति को बैठना चाहिये। यदि पत्नी है, तो सपत्नीक विधि पूर्वक पूजा करना चाहिये। पूजन पूर्ण होने पर मानदान दामाद, बहनोई, भानजा आदि जो समय पर उपिस्थत हों उनका रोरी तिलक लगाकर पूजन कर, उनके हाथों में हल्दी लगायें, पश्चात उन्हें कुछ नेंग यथा शक्ति देकर उनसे मड़वा गाड़ने का अनुरोध करें, मड़वा गाड़ते समय पंच को आवश्य आमंत्रित करें। तथा मानदान के साथ, चार और व्यक्ति हाथ लगावें, जो अलग-अलग गोत्र के हों तथा संतान संपन्न हों। (कुआरे लड़के मण्डप में हाथ न लगायें तथा मामा या भाई के सालों को भी मण्डप गाड़ते समय उसमें हाथ नहीं लगाना चाहिये।) मड़वा गाड़ने से पूर्व मिट्टी टीन में भर लें, सब्बल से 5 बार खोदें, फिर पंचरत्नी तथा सवा रूपये उसमें पत्ते में बांधकर नीचे दबा दें तथा मड़वा उसी के उपर रखकर गाड़ दें, बगल से (समय) शल की लकड़ी गाड़ दें। हल्का जल डालकर अच्छी तरह दबा दें। मड़वा के ऊपर आम की पत्ती माला-फूल आदि रख दें एवं प्रणाम करें। पश्चात कन्या की भाभी से मण्डप में हल्दी कोपर में घोलकर 5-5 हांथे मण्डप में तथा टीन में लगा दें। पुरोहित को दक्षिणा 51/- या 101/- अथवा यथा शक्ति पूजन करने वाले व्यक्ति से संकल्प करायें, साथ में 5-5रूपये साथियों को आवश्य दें। नाई को 10/- मंडप की निछावर तथा 10/- मानदान की निछावर कर देवें। पश्चात मंडप में उपिस्थत सभी का रोरी हल्दी चांवल से तिलक करें, (परस्पर हल्दी लगाना खेलना आदि अब समयानुकूल नहीं है। अत: इसे महत्व न दिया जाय) सभी उपिस्थत बन्धु बान्धवों को मंडप के नीचे अर्थात निकट बैठाकर भोजन करा के मंडप को जूंठा अवश्य कर दें।
नोट :- बारात के दिन यदि मंगलवार का दिन हो, तो मंडवा एक दिन पूर्व ही कर लें क्योंकि मंगल भूमि का बड़ा पुत्र है, पुत्र के दिन मां (धरती) का खोदना शास्त्रों में वर्जित है, इसके परिणाम अनुकूल नहीं होते। अत: इस बात का ध्यान अवश्य रखें। जहां तक बन सके मड़वा की ज्योति न बुझे समय-समय पर दिया में तेल डालते
8. अरगना एवं मांगर माटी :-
लग्न लिखने के बाद यह प्रथम वैवाहिक संस्कार है। इसका सीधा सम्बध कुल देवता से है। इस आयोजन में अपने खास सगे सम्बन्धी जनों का निमंत्रण भी किया जाता है तथा महिलायें इसका बुलावा भी भेजती है (प्रथम) अर्गना की पूजा होती है, कन्या को उबटन लगा स्नान कराकर नये वस्त्र (साड़ी) पहनाकर खौर निकाली जाती है तथा कुमकुम तिलक रोरी लगाकर आरती की जाती है, पश्चात कन्या को उत्तर मुख कर के पटा पर बिठाया जाता है एवं पास ही पूरब पश्चिम नन्द, भौजाई, सास बहू अथवा देवरानी जेठानी कोई भी दो महिलायें सूपा में (वर्तमान समय में) चना या चिरौंजी एवं शक्कर लेकर सात-सात बार एक दूसरे के सूपा में उछालकर डालती है, पश्चात यह शक्कर चिरौंजी पूजा स्थान पर रख दी जाती एवं ‘मांय’ बनाते समय उक्त चिरौंजी तथा शक्कर को ‘मांय’ के खोवा या आटा में मिला दिया जाता है, जिससे ‘मांय’ बनती है। बाद के आगे दिनों में परिवार के खास घरों (3 या 5) में कन्या का नियंत्रण होता है, तब कन्या वही साड़ी पहन कर जाती है, तब आमंत्रित करने वाले उसकी हंसी खुशी ओली भरते है। जो कन्या के लिये शुभ माना गया है। इसी दिन अर्गना के पश्चात, सांय 4 बजे के लगभग परिवार की सभी औंरतें मिलकर गाजे-बाजे के साथ पास के ही किसी पवित्र स्थल नदी, पोखर, तालाब अथवा बगीचे में जाती है तथा वहां का पूजन कर मिट्टी खोद कर लाती है। इसी मिट्टी से कुल देवता की पूजा में लगने वाले पात्र (बर्तन) का निर्माण किया जाता है, जिनका पूजा स्थल में रख उपयोग किया जाता है। घर वापस आकर सभी महिलाओं को बुलावा में बताशा देने का प्रचलन है। यह कार्य वर तथा कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है।
लग्न लिखने के बाद यह प्रथम वैवाहिक संस्कार है। इसका सीधा सम्बध कुल देवता से है। इस आयोजन में अपने खास सगे सम्बन्धी जनों का निमंत्रण भी किया जाता है तथा महिलायें इसका बुलावा भी भेजती है (प्रथम) अर्गना की पूजा होती है, कन्या को उबटन लगा स्नान कराकर नये वस्त्र (साड़ी) पहनाकर खौर निकाली जाती है तथा कुमकुम तिलक रोरी लगाकर आरती की जाती है, पश्चात कन्या को उत्तर मुख कर के पटा पर बिठाया जाता है एवं पास ही पूरब पश्चिम नन्द, भौजाई, सास बहू अथवा देवरानी जेठानी कोई भी दो महिलायें सूपा में (वर्तमान समय में) चना या चिरौंजी एवं शक्कर लेकर सात-सात बार एक दूसरे के सूपा में उछालकर डालती है, पश्चात यह शक्कर चिरौंजी पूजा स्थान पर रख दी जाती एवं ‘मांय’ बनाते समय उक्त चिरौंजी तथा शक्कर को ‘मांय’ के खोवा या आटा में मिला दिया जाता है, जिससे ‘मांय’ बनती है। बाद के आगे दिनों में परिवार के खास घरों (3 या 5) में कन्या का नियंत्रण होता है, तब कन्या वही साड़ी पहन कर जाती है, तब आमंत्रित करने वाले उसकी हंसी खुशी ओली भरते है। जो कन्या के लिये शुभ माना गया है। इसी दिन अर्गना के पश्चात, सांय 4 बजे के लगभग परिवार की सभी औंरतें मिलकर गाजे-बाजे के साथ पास के ही किसी पवित्र स्थल नदी, पोखर, तालाब अथवा बगीचे में जाती है तथा वहां का पूजन कर मिट्टी खोद कर लाती है। इसी मिट्टी से कुल देवता की पूजा में लगने वाले पात्र (बर्तन) का निर्माण किया जाता है, जिनका पूजा स्थल में रख उपयोग किया जाता है। घर वापस आकर सभी महिलाओं को बुलावा में बताशा देने का प्रचलन है। यह कार्य वर तथा कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है।
9. तेल, मायनों (मातृका पूजन) :-
यह कार्य बरात के एक दिन पूर्व संध्या पर होता है, इसमें घर की सभी महिलायें मिलकर, बरा, मुंगौड़ा तथा मीठे पुआ अथवा गुलगुलों को बनाती है तथा इनसे वर के घर की कन्या की ओली भरते हैं। बाद में परिवार रिश्तेदार अतिथि मित्र आदि सब परस्पर मिलकर खाते है। आज के बने बरा ही मडवा के दिन कच्चे भोजन के साथ परसे जाते है। बारात के दिन निकासी के पूर्व कन्या पक्ष तथा वर पक्ष अपने-अपने कुल देवता का विधि विधान पूर्वक अपनी परिवारिक परम्परा के अनुसार पूजन करते है तथा सभी परिवार-कुटुम्बके सदस्यों द्वारा कुल देवता के दर्शन कर (मेंहर) पूजन करने वाले प्रमुख द्वारा प्रसाद रूप में (मांय) दी जाती है, जिन्हें बडे़ सम्मान आदर के साथ हरसदस्य ग्रहण करता है तथा स्वंय को धन्य समझता है, यही पूजा तथा मांय सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे रखता है। कुल देवता की ज्योति, दोनों घरों में वर बधू के वापस आने तक प्रज्वलित रहती है तथा मैहर अथवा परिवार का अन्य सदस्य जो मांय प्राप्त करने का पात्र हो को उस स्थान पर उपिस्थत रहना अनिवार्य है, जब तक वर को कन्या पक्ष द्वारा मांय न प्रदान कर दी जाय। यह कार्य वर वधू एवं परिवार को सुख तथा समृध्दि प्रदान करने वाला हैं।
यह कार्य बरात के एक दिन पूर्व संध्या पर होता है, इसमें घर की सभी महिलायें मिलकर, बरा, मुंगौड़ा तथा मीठे पुआ अथवा गुलगुलों को बनाती है तथा इनसे वर के घर की कन्या की ओली भरते हैं। बाद में परिवार रिश्तेदार अतिथि मित्र आदि सब परस्पर मिलकर खाते है। आज के बने बरा ही मडवा के दिन कच्चे भोजन के साथ परसे जाते है। बारात के दिन निकासी के पूर्व कन्या पक्ष तथा वर पक्ष अपने-अपने कुल देवता का विधि विधान पूर्वक अपनी परिवारिक परम्परा के अनुसार पूजन करते है तथा सभी परिवार-कुटुम्बके सदस्यों द्वारा कुल देवता के दर्शन कर (मेंहर) पूजन करने वाले प्रमुख द्वारा प्रसाद रूप में (मांय) दी जाती है, जिन्हें बडे़ सम्मान आदर के साथ हरसदस्य ग्रहण करता है तथा स्वंय को धन्य समझता है, यही पूजा तथा मांय सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे रखता है। कुल देवता की ज्योति, दोनों घरों में वर बधू के वापस आने तक प्रज्वलित रहती है तथा मैहर अथवा परिवार का अन्य सदस्य जो मांय प्राप्त करने का पात्र हो को उस स्थान पर उपिस्थत रहना अनिवार्य है, जब तक वर को कन्या पक्ष द्वारा मांय न प्रदान कर दी जाय। यह कार्य वर वधू एवं परिवार को सुख तथा समृध्दि प्रदान करने वाला हैं।
10. लगुन-ओली अथवा फलदान :-
बारात से एक दिन पूर्व वर पक्ष के यहां लग्न पत्रिका खोलने (पढ़ने) का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन मे अपनी क्षमता अनुसार अतिथियों को आमंत्रण कर बुलाया जाता है तथा कन्या पक्ष से कन्या के भाई-बहनें, भाभी आदि आयोजन में सम्मिलित होकर कार्यक्रम को सम्पन्न कराते है। आयोजन सांय लगभग 7 बजे आरम्भ होता है, इसमें लगने वाली सामान की सूची निम्न अनुसार है।
वर पक्ष हेतु पुजन सामग्री :- रोरी, हल्दी, चावल, चन्दन, सुपाड़ी, हल्दी की गाठें, फूल-माला, दो बड़े माला, बताशा 50 ग्राम, मिष्ठान्न 250 ग्राम, कच्चा सूत रंगीन, खुले पान, 2 लगे वक्र वाले आदि।
ओली आयोजन में कन्या पक्ष को निम्न सामान लगता है- 1 नारियल, सवा किला बताशा तथा 51/- रू. पंडि़त की दक्षिणा, 10/- रू. निछावर, 101/- रू. नगद अथवा स्वर्ण मुद्रिका, चैन आदि। यदि साथ में फलदान का कार्यक्रम है, तब कन्या पक्ष को कम से कम पांच किस्म का मीठा, पांच किस्म के फल, पांच किस्म का सूखा मेवा, (मात्रा यथाशक्ति) एवं वर तथा उनके परिवार : माता-पिता,भाई-भाभी, बहनें एवं परिवार के सभी बच्चों आदि के लिये वस्त्र आभूषण आदि यथा शक्ति अथवा आपसी समझ अनुसार रखना चाहिये तथा स्थानीय पंचों को कन्या पक्ष भी आंमत्रित करें एवं उनके समक्ष कार्यक्रम सम्पन्न हों। आचार्य पंडित जी द्वारा वर एवं कन्या के भाई को भगवान के समक्ष आसन में बिठाकर दोनो से श्री गणेश जी का पूजन करवाते है, पश्चात कन्या का भाई वर की ओली भरता है। प्रथम. एक अंजुली बताशा भरकर वर की ओली में डालें तथा पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1 नारियल, 101/- एवं अंगूठी अथवा चैन आदि जो डालना चाहते हों, रखकर डालें। 10/- वर की निछावर कर नाई को दें तथा एक अंजुली बताशा भी नाई को दें। इस अवसर पर वर पक्ष द्वारा भी कन्या के भाई की निछावर करनी चाहिये, पश्चात वर ओली का सामान अपने पूजा स्थल में माँ की ओली में देकर पुन: पूजा में बैठे। पश्चात वर एवं कन्या का भाई परस्पर माल्यार्पण कर परस्पर मुख मीठा करा, परस्पर पान खिलायें एवं गले मिलकर परस्पर स्नेह तथा सम्बन्धों को इजहार करें। पुन: आचमन कर भगवान का पूजन करें, इसके बाद कन्या का भाई वर को लग्न पत्रिका सौंप दें तथा वरकी निछावर कर नाई को दें। वर पक्ष भाई की निछावर करें, पश्चात वर तथा कन्या पक्ष दोनों के द्वारा 51/- आचार्य की दक्षिणा अपने-अपने हाथ में रखकर संकल्प करें, पश्चात सॉगिता (मूसि्) संकल्प आवश्य करें। 10/- नाई को दूर्वा का देवें। पश्चात भोजन जलपान आदि जो भी हो, सभी अतिथियों को व पुरोहित जी को भी करायें। उक्त अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष की पैर पड़ाई का कार्य होता है, जिसे पूर्व निर्धारित आपसी समझा अनुसार अलग कमरे में जाकर सम्पन्न करें। वर पक्ष का यह दायित्व होता है कि वह अपने जिन सम्मानीय सदस्य जनों का टीका करवाते हैं, उनका कन्या पक्ष से पूर्ण परिचय पश्चात कराते जायें, ताकि सम्बधों मे निर्वहन में और निखार आये अनभिज्ञता न हो। कन्या पक्ष से आये अतिथियों को उचित भोजन सत्कार कराकर सभी सदस्यों को यथाशक्ति नगद राशी अथवा वस्त्र आभूषण आदि के साथ श्रीफल देकर तिलक लगाकर ससम्मान बिदा करें ।
11 चीकट, (भात):-
यह कार्यक्रम वर कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है। चीकट मामा पक्ष अपने सम्बन्धी के साथ गाजे-बाजे सहित अपनी बहन के द्वार पर आते हैं तथा चीकट का मुख्य सामान मामा-मामी अपने सिर पर रखकर खड़े होते है। बहनें अपने भाई-भाभी की चौक पूर कर आगवानी करती है तथा अन्दर ले जाकर शर्बत मिष्ठान्न आदि से सभी का स्वागत करती है तथा भाई-भाभी के गले मिलकर सुख का इजहार करतीं है तथा चीकट का लाया हुआ सामान सभी दिखाने के लिये सजाकर रखती है। अपने मातृ पक्ष से प्राप्त सहयोग से बहिन प्रसन्न होती है।
भात:- यह कार्य कन्या पक्ष के यहां मडवा के पास बैठकर सम्पन्न होता है, इसमें कन्या, माता-पिता (बहन-बहनोई) को पटा में बिठाकर रोरी तिलक लगा माला पहनाकर मामी (सभी) उनकी आरती उतारकर बलायें लेती है तथा वहीं पर मधुर जल से बहन की लट धोकर सभी मामा-मामी उसका पान करते है एवं बहन के प्रति अपने दायित्व निर्वहन की रस्म पूर्ण होती है।
बारात से एक दिन पूर्व वर पक्ष के यहां लग्न पत्रिका खोलने (पढ़ने) का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन मे अपनी क्षमता अनुसार अतिथियों को आमंत्रण कर बुलाया जाता है तथा कन्या पक्ष से कन्या के भाई-बहनें, भाभी आदि आयोजन में सम्मिलित होकर कार्यक्रम को सम्पन्न कराते है। आयोजन सांय लगभग 7 बजे आरम्भ होता है, इसमें लगने वाली सामान की सूची निम्न अनुसार है।
वर पक्ष हेतु पुजन सामग्री :- रोरी, हल्दी, चावल, चन्दन, सुपाड़ी, हल्दी की गाठें, फूल-माला, दो बड़े माला, बताशा 50 ग्राम, मिष्ठान्न 250 ग्राम, कच्चा सूत रंगीन, खुले पान, 2 लगे वक्र वाले आदि।
ओली आयोजन में कन्या पक्ष को निम्न सामान लगता है- 1 नारियल, सवा किला बताशा तथा 51/- रू. पंडि़त की दक्षिणा, 10/- रू. निछावर, 101/- रू. नगद अथवा स्वर्ण मुद्रिका, चैन आदि। यदि साथ में फलदान का कार्यक्रम है, तब कन्या पक्ष को कम से कम पांच किस्म का मीठा, पांच किस्म के फल, पांच किस्म का सूखा मेवा, (मात्रा यथाशक्ति) एवं वर तथा उनके परिवार : माता-पिता,भाई-भाभी, बहनें एवं परिवार के सभी बच्चों आदि के लिये वस्त्र आभूषण आदि यथा शक्ति अथवा आपसी समझ अनुसार रखना चाहिये तथा स्थानीय पंचों को कन्या पक्ष भी आंमत्रित करें एवं उनके समक्ष कार्यक्रम सम्पन्न हों। आचार्य पंडित जी द्वारा वर एवं कन्या के भाई को भगवान के समक्ष आसन में बिठाकर दोनो से श्री गणेश जी का पूजन करवाते है, पश्चात कन्या का भाई वर की ओली भरता है। प्रथम. एक अंजुली बताशा भरकर वर की ओली में डालें तथा पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1 नारियल, 101/- एवं अंगूठी अथवा चैन आदि जो डालना चाहते हों, रखकर डालें। 10/- वर की निछावर कर नाई को दें तथा एक अंजुली बताशा भी नाई को दें। इस अवसर पर वर पक्ष द्वारा भी कन्या के भाई की निछावर करनी चाहिये, पश्चात वर ओली का सामान अपने पूजा स्थल में माँ की ओली में देकर पुन: पूजा में बैठे। पश्चात वर एवं कन्या का भाई परस्पर माल्यार्पण कर परस्पर मुख मीठा करा, परस्पर पान खिलायें एवं गले मिलकर परस्पर स्नेह तथा सम्बन्धों को इजहार करें। पुन: आचमन कर भगवान का पूजन करें, इसके बाद कन्या का भाई वर को लग्न पत्रिका सौंप दें तथा वरकी निछावर कर नाई को दें। वर पक्ष भाई की निछावर करें, पश्चात वर तथा कन्या पक्ष दोनों के द्वारा 51/- आचार्य की दक्षिणा अपने-अपने हाथ में रखकर संकल्प करें, पश्चात सॉगिता (मूसि्) संकल्प आवश्य करें। 10/- नाई को दूर्वा का देवें। पश्चात भोजन जलपान आदि जो भी हो, सभी अतिथियों को व पुरोहित जी को भी करायें। उक्त अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष की पैर पड़ाई का कार्य होता है, जिसे पूर्व निर्धारित आपसी समझा अनुसार अलग कमरे में जाकर सम्पन्न करें। वर पक्ष का यह दायित्व होता है कि वह अपने जिन सम्मानीय सदस्य जनों का टीका करवाते हैं, उनका कन्या पक्ष से पूर्ण परिचय पश्चात कराते जायें, ताकि सम्बधों मे निर्वहन में और निखार आये अनभिज्ञता न हो। कन्या पक्ष से आये अतिथियों को उचित भोजन सत्कार कराकर सभी सदस्यों को यथाशक्ति नगद राशी अथवा वस्त्र आभूषण आदि के साथ श्रीफल देकर तिलक लगाकर ससम्मान बिदा करें ।
11 चीकट, (भात):-
यह कार्यक्रम वर कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है। चीकट मामा पक्ष अपने सम्बन्धी के साथ गाजे-बाजे सहित अपनी बहन के द्वार पर आते हैं तथा चीकट का मुख्य सामान मामा-मामी अपने सिर पर रखकर खड़े होते है। बहनें अपने भाई-भाभी की चौक पूर कर आगवानी करती है तथा अन्दर ले जाकर शर्बत मिष्ठान्न आदि से सभी का स्वागत करती है तथा भाई-भाभी के गले मिलकर सुख का इजहार करतीं है तथा चीकट का लाया हुआ सामान सभी दिखाने के लिये सजाकर रखती है। अपने मातृ पक्ष से प्राप्त सहयोग से बहिन प्रसन्न होती है।
भात:- यह कार्य कन्या पक्ष के यहां मडवा के पास बैठकर सम्पन्न होता है, इसमें कन्या, माता-पिता (बहन-बहनोई) को पटा में बिठाकर रोरी तिलक लगा माला पहनाकर मामी (सभी) उनकी आरती उतारकर बलायें लेती है तथा वहीं पर मधुर जल से बहन की लट धोकर सभी मामा-मामी उसका पान करते है एवं बहन के प्रति अपने दायित्व निर्वहन की रस्म पूर्ण होती है।
नोट :- वर पक्ष में मामा
बारात में कन्हर स्नान करते थे, यह प्रथा आजकल बन्द हो गई है।
12. बारात निकासी :-
यह कार्य वर के यहां बारात प्रस्थान के समय होता है। वर को सजा सवाँर कर महिलायें द्वार पर खड़ी करती है, वर को धूप-छांव प्राकृतिक आपदा से बचाने, वर के ऊपर वर के मानदान बहनोई आदि चार लोग चादर तानकर खड़े होते हैं, गाजे-बाजे के साथ मां, बहिनें, चाची, मामी, फूआ आदि बुर्जुग महिलायें सूपा, पूड़ी, मूसल आदि से वर की बलायें लेती है, डिठौना के चिन्ह के रूप में काजल लगाती है, रोरी तिलक लगाकर आटा-राई से नजर उतारती है, मां के लिये पुत्र कितना भी बड़ा हो सदैव कोमल सुकुमार ही नजर आता है, उसको क्षुधा का आभास न हो, अपने वक्ष से लगाती है, जैसे बचपन में दुग्धपान कराती थी, यह उसी की याद है। बहनें आदि सभी तिलक लगाकर कुछ मुद्रिकायें मार्ग व्यय हेतु भाई (वर) को देती है। पश्चात पूजा की थाल लेकर देवी मां के मन्दिर अर्थात जन्मदायनी मां से अनुमति प्राप्त कर जीवन पथ पर प्रवेश करने हेतु जगत मां से आज्ञा लेने पैदल ही जाते हैं। मन्दिर में मां का पूजन अर्चन कर नारियल भेंट दें, आशीर्वाद ग्रहण कर वहीं से गन्तव्य स्थल के लिये उपयुक्त वाहन, घोड़ा, कार, बस आदि द्वारा चल पड़ते हैं। सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना हेतु रास्ते में भी वर श्री गौरी एवं गणेश जी को अपने साथ ही लेकर चलता है।
12. बारात निकासी :-
यह कार्य वर के यहां बारात प्रस्थान के समय होता है। वर को सजा सवाँर कर महिलायें द्वार पर खड़ी करती है, वर को धूप-छांव प्राकृतिक आपदा से बचाने, वर के ऊपर वर के मानदान बहनोई आदि चार लोग चादर तानकर खड़े होते हैं, गाजे-बाजे के साथ मां, बहिनें, चाची, मामी, फूआ आदि बुर्जुग महिलायें सूपा, पूड़ी, मूसल आदि से वर की बलायें लेती है, डिठौना के चिन्ह के रूप में काजल लगाती है, रोरी तिलक लगाकर आटा-राई से नजर उतारती है, मां के लिये पुत्र कितना भी बड़ा हो सदैव कोमल सुकुमार ही नजर आता है, उसको क्षुधा का आभास न हो, अपने वक्ष से लगाती है, जैसे बचपन में दुग्धपान कराती थी, यह उसी की याद है। बहनें आदि सभी तिलक लगाकर कुछ मुद्रिकायें मार्ग व्यय हेतु भाई (वर) को देती है। पश्चात पूजा की थाल लेकर देवी मां के मन्दिर अर्थात जन्मदायनी मां से अनुमति प्राप्त कर जीवन पथ पर प्रवेश करने हेतु जगत मां से आज्ञा लेने पैदल ही जाते हैं। मन्दिर में मां का पूजन अर्चन कर नारियल भेंट दें, आशीर्वाद ग्रहण कर वहीं से गन्तव्य स्थल के लिये उपयुक्त वाहन, घोड़ा, कार, बस आदि द्वारा चल पड़ते हैं। सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना हेतु रास्ते में भी वर श्री गौरी एवं गणेश जी को अपने साथ ही लेकर चलता है।
13. द्वार-चार :-
यह आयोजन कन्या पक्ष के द्वारा द्वार पर बारात पहुंचने पर सम्पन्न होता है। इसमें कन्या पक्ष अपने द्वार पर बारात आगमन में तोरण द्वार सजाकर, चौक आदि पूर कर मंगल कलश धारण कर बारात आने पर उसकी अगवानी करती है। द्वाराचार्य से पहले बरात आने पर नाई द्वारा पांवड़े का वस्त्र बिछाया जाता है, जिसमें खड़े होकर पहले मामा से मामा की भेट कराई जाती है तथा बाद में दोनो घर धनी की भेंट कराई जाती है, भेंट के समय दोनों पक्ष आपस में गले मिलें पश्चात कन्या पक्ष 51/- या 101/- यथाशक्ति सम्मान देकर कन्या पक्ष के धनी, वर के धनी को तथा कन्या पक्ष के मामा वर पक्ष के मामा को देकर चरण स्पर्ण करें तथा परस्पर एक-दूसरे की निछावर करके 10-10/- नाई को दें। पांवड़े का कपड़ा भी नाई लेता है। कलश कन्या की बुआ अथवा बड़ी बहनें लेकर खड़ी होती है।प्रथम द्वार पर वर का पूजन घोड़े पर ही किया जाता है। सर्वप्रथम वर पक्ष के मुखिया (पगरैत) द्वारा कलश के सम्मान में एक हो या दो सभी में कुछ नगद राशि (101/-) या उचित मात्रा में उन पर रख कर कलश को नमन करते हैं। (पुनश्च) अन्दर से कन्या आकर वर को देखकर उस पर पीले चावल फेंक कर अपनी वैवाहिक बन्धन में बंधने की स्वीकृति प्रदान करती है। पुरोहित द्वारा (कन्या एवं वर पक्ष) दोनों के स्थानीय पंचों तथा बुजुर्ग सम्मानीय जनों की उपिस्थति में द्वारचार की क्रिया प्रारम्भ करते है। सर्वप्रथम घोड़े की पूजा की जाती है। पश्चात वर के साथ चल रहे श्री गौरी जी एवं गणेश जी का पूजन किया जाता है। ततपश्चात कन्या के पिता, पालक अथवा कन्यादान ग्रहण करने वाले व्यक्ति के द्वारा वर का पूजन कर 101/- रू. या चाँदी के एक कलदार सिक्के या स्वर्ण चैन आदि पहनाकर तिलक किया जाता है। उपिस्थत पुरोहितों को दक्षिणा दोनो पक्षों द्वारा कम से कम 51/-, 51/- रू. देकर आचार्य से आशीर्वाद ग्रहण करें दोनों पक्षों द्वारा 10/- 10/- रू. वर की निछावर कर नाइयों को देवें तथा घोड़े की भी दोनों पक्षों द्वारा 10/- रू. से निछावर कार घोड़ा चालक (सईस) को देवें। पश्चात वर का बहनोई वर को घोड़े से उतारकर वरमाला स्थल में विराजमान करायें, साथ-साथ रहकर गणेश जी आदि संभालने में वर की मदद करें। इसके पूर्व घोड़े से उतारते समय, घोड़ा चालक को नेग के 21/- रू. आवश्य देवें।
यह आयोजन कन्या पक्ष के द्वारा द्वार पर बारात पहुंचने पर सम्पन्न होता है। इसमें कन्या पक्ष अपने द्वार पर बारात आगमन में तोरण द्वार सजाकर, चौक आदि पूर कर मंगल कलश धारण कर बारात आने पर उसकी अगवानी करती है। द्वाराचार्य से पहले बरात आने पर नाई द्वारा पांवड़े का वस्त्र बिछाया जाता है, जिसमें खड़े होकर पहले मामा से मामा की भेट कराई जाती है तथा बाद में दोनो घर धनी की भेंट कराई जाती है, भेंट के समय दोनों पक्ष आपस में गले मिलें पश्चात कन्या पक्ष 51/- या 101/- यथाशक्ति सम्मान देकर कन्या पक्ष के धनी, वर के धनी को तथा कन्या पक्ष के मामा वर पक्ष के मामा को देकर चरण स्पर्ण करें तथा परस्पर एक-दूसरे की निछावर करके 10-10/- नाई को दें। पांवड़े का कपड़ा भी नाई लेता है। कलश कन्या की बुआ अथवा बड़ी बहनें लेकर खड़ी होती है।प्रथम द्वार पर वर का पूजन घोड़े पर ही किया जाता है। सर्वप्रथम वर पक्ष के मुखिया (पगरैत) द्वारा कलश के सम्मान में एक हो या दो सभी में कुछ नगद राशि (101/-) या उचित मात्रा में उन पर रख कर कलश को नमन करते हैं। (पुनश्च) अन्दर से कन्या आकर वर को देखकर उस पर पीले चावल फेंक कर अपनी वैवाहिक बन्धन में बंधने की स्वीकृति प्रदान करती है। पुरोहित द्वारा (कन्या एवं वर पक्ष) दोनों के स्थानीय पंचों तथा बुजुर्ग सम्मानीय जनों की उपिस्थति में द्वारचार की क्रिया प्रारम्भ करते है। सर्वप्रथम घोड़े की पूजा की जाती है। पश्चात वर के साथ चल रहे श्री गौरी जी एवं गणेश जी का पूजन किया जाता है। ततपश्चात कन्या के पिता, पालक अथवा कन्यादान ग्रहण करने वाले व्यक्ति के द्वारा वर का पूजन कर 101/- रू. या चाँदी के एक कलदार सिक्के या स्वर्ण चैन आदि पहनाकर तिलक किया जाता है। उपिस्थत पुरोहितों को दक्षिणा दोनो पक्षों द्वारा कम से कम 51/-, 51/- रू. देकर आचार्य से आशीर्वाद ग्रहण करें दोनों पक्षों द्वारा 10/- 10/- रू. वर की निछावर कर नाइयों को देवें तथा घोड़े की भी दोनों पक्षों द्वारा 10/- रू. से निछावर कार घोड़ा चालक (सईस) को देवें। पश्चात वर का बहनोई वर को घोड़े से उतारकर वरमाला स्थल में विराजमान करायें, साथ-साथ रहकर गणेश जी आदि संभालने में वर की मदद करें। इसके पूर्व घोड़े से उतारते समय, घोड़ा चालक को नेग के 21/- रू. आवश्य देवें।
14. वरमाला कार्यक्रम :-
मंच के समक्ष उपिस्थत जन समुदाय एवं मंच पर उपिस्थत पुरोहितों तथा गण मान्य पंच जन के समक्ष, दोनों आचार्य पुरोहितों द्वारा प्रथम स्विस्त वाचन हो, पश्चात मंत्रों के ध्वनि के साथ ही वरमाला के द्वारा वर-कन्या एक-दूसरे को वरण करें, उपिस्थत समाज करतल ध्वनि से स्वागत करें।
नोट :- वर्तमान में यह मंच पर ही सम्पन्न होता है, स्थानीय पंचायत के पंचों द्वारा वर-वधू को वैवाहिक शुभकामना पत्र एवं गिफ्ट भी दिये जाने लगे है
सम्मान एवं महूर्त का रखें ध्यान :-
वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि प्राय: भोजनादि की व्यवस्था वर पक्ष द्वारा की जाती है, कन्या पक्ष खर्च (नगद राशि) देकर, मुक्त रहते हैं, बाहर से आने या अन्य विसंगतियों के चलते यहां तक तो ठीक है परन्तु हम अपनी सभ्यता भूल जायें यह सही नहीं है।यह देखा जा रहा है कि दोनों पक्ष अपने सम्मानीय जनों का आदर सत्कार देना भी भूलते जा रहे है। यहां तक कि आधुनिकता के चलते अपने निकटतम सम्मानीय/बुजुर्ग जनों से भोजन करने का आग्रह तक नहीं करते। कन्या पक्ष के प्रमुख वर पक्ष के प्रमुखों (समाधियों) से विवाह के अन्त तक भी भोजनादि की नहीं पूछते। यह बातें हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। .पया परस्पर मान-सम्मान आवश्य दें तथा वैवाहिक मुहूर्त का भी ध्यान रखें। फोटोग्राफी, ठीक है, परन्तु उनके पीछे वैवाहिकमुहूर्तो जिनकी प्रक्रिया आपने महीनों पंडित के चक्कर लगाकर पूर्ण की है, निकल न जाय इसका ध्यान रखें। शुभ मुहूर्त में सम्पन्न किये गये कार्य जीवन के लिये सुखद होते है।
मंच के समक्ष उपिस्थत जन समुदाय एवं मंच पर उपिस्थत पुरोहितों तथा गण मान्य पंच जन के समक्ष, दोनों आचार्य पुरोहितों द्वारा प्रथम स्विस्त वाचन हो, पश्चात मंत्रों के ध्वनि के साथ ही वरमाला के द्वारा वर-कन्या एक-दूसरे को वरण करें, उपिस्थत समाज करतल ध्वनि से स्वागत करें।
नोट :- वर्तमान में यह मंच पर ही सम्पन्न होता है, स्थानीय पंचायत के पंचों द्वारा वर-वधू को वैवाहिक शुभकामना पत्र एवं गिफ्ट भी दिये जाने लगे है
सम्मान एवं महूर्त का रखें ध्यान :-
वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि प्राय: भोजनादि की व्यवस्था वर पक्ष द्वारा की जाती है, कन्या पक्ष खर्च (नगद राशि) देकर, मुक्त रहते हैं, बाहर से आने या अन्य विसंगतियों के चलते यहां तक तो ठीक है परन्तु हम अपनी सभ्यता भूल जायें यह सही नहीं है।यह देखा जा रहा है कि दोनों पक्ष अपने सम्मानीय जनों का आदर सत्कार देना भी भूलते जा रहे है। यहां तक कि आधुनिकता के चलते अपने निकटतम सम्मानीय/बुजुर्ग जनों से भोजन करने का आग्रह तक नहीं करते। कन्या पक्ष के प्रमुख वर पक्ष के प्रमुखों (समाधियों) से विवाह के अन्त तक भी भोजनादि की नहीं पूछते। यह बातें हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। .पया परस्पर मान-सम्मान आवश्य दें तथा वैवाहिक मुहूर्त का भी ध्यान रखें। फोटोग्राफी, ठीक है, परन्तु उनके पीछे वैवाहिकमुहूर्तो जिनकी प्रक्रिया आपने महीनों पंडित के चक्कर लगाकर पूर्ण की है, निकल न जाय इसका ध्यान रखें। शुभ मुहूर्त में सम्पन्न किये गये कार्य जीवन के लिये सुखद होते है।
15. मंडप में वैवाहिक कार्यक्रम :-
वैवाहिक कार्यक्रम जिसके लिये आप भव्य आयोजन रूपी समुद्र तैरकर आये हैं, वह प्राय: अर्धरात्रि के बाद आरम्भ होते हैं। तब तक सम्पूर्ण बाजार बन्द हो जाते हैं। वैसे प्राय: वर पक्ष बारात के एक दिन पूर्व ही लगने वाली सामग्री की पेटी लगा लेते हैं, जिसमें निम्न लिखित सामान की आवश्यकता होती है - लाल रंग की एक थैली (खड़ी गांठ हल्दी, सुपाड़ी, चिल्लर, खुले नोट एवं अन्य आवश्यक सामग्री रखने हेतु), श्री गणेश जी की फरियॉ 2 नग, रोरी,मेंहदी, ईगुर, आलता (महावर), ककई, ककवा, कांच के बूंदा, बिन्दी, राल, लाखें, चूड़ी-1 जोड़ी, गुलाल, हल्दी पिसी, सिंदोरी, सिंदौरा, खड़े धना दन्दौर, ऐपन की थपियां, धान 200 ग्राम, गुड़ 250 ग्राम, चना की भाजी पिसी 50 ग्राम, सुपाड़ी खड़ी 100 ग्राम, 21 नग हल्दी खड़ी, खजूर की मौर 2 नग, रंगीन सूत 1 गिट्टी। रंगीन कागज- 6 ताव, एक कोरी कापी, दोना प्लास्टिक के 10 नग, चांदी का सिक्का 1 नग, मंडप का लाल तूल 2 मीटर पांवड़े का कपड़ा 1 मीटर, गंठजोड़ा का पीला मलमल 3-3 मीटर के 2 नग, वरन के वस्त्र(टावल-गमछा) 7 नग। नारियल 40 नग, बताशा 5 किलो, खुले पान डठंल वाले 25 नग, धान बुवाई की अंगूठी, वस्त्र आदि, बिछिया गंसाई की साड़ी आदि, चढ़ाव की साड़ी ब्लाउज, पेटीकोट नाड़ा सहित, जेवर 5 नग वीजासेन की पुतरिया (3 सोने 2 चांदी के (कालीपोत वर्जित है), मीठा अच्छा 2 किलो, 5 नग अच्छे किस्म के रूमाल (तथा छोटे बहन-भाइयों के लिये कपड़े) पठौना में रखे जाते हैं। वर्तमान में नगद राशि रख दी जाती है। नाइन एवं बरौनी की साड़ी। कम से कम 1 नग बांस का छींटा या चकोटी अवश्य लायें।
वैवाहिक कार्यक्रम जिसके लिये आप भव्य आयोजन रूपी समुद्र तैरकर आये हैं, वह प्राय: अर्धरात्रि के बाद आरम्भ होते हैं। तब तक सम्पूर्ण बाजार बन्द हो जाते हैं। वैसे प्राय: वर पक्ष बारात के एक दिन पूर्व ही लगने वाली सामग्री की पेटी लगा लेते हैं, जिसमें निम्न लिखित सामान की आवश्यकता होती है - लाल रंग की एक थैली (खड़ी गांठ हल्दी, सुपाड़ी, चिल्लर, खुले नोट एवं अन्य आवश्यक सामग्री रखने हेतु), श्री गणेश जी की फरियॉ 2 नग, रोरी,मेंहदी, ईगुर, आलता (महावर), ककई, ककवा, कांच के बूंदा, बिन्दी, राल, लाखें, चूड़ी-1 जोड़ी, गुलाल, हल्दी पिसी, सिंदोरी, सिंदौरा, खड़े धना दन्दौर, ऐपन की थपियां, धान 200 ग्राम, गुड़ 250 ग्राम, चना की भाजी पिसी 50 ग्राम, सुपाड़ी खड़ी 100 ग्राम, 21 नग हल्दी खड़ी, खजूर की मौर 2 नग, रंगीन सूत 1 गिट्टी। रंगीन कागज- 6 ताव, एक कोरी कापी, दोना प्लास्टिक के 10 नग, चांदी का सिक्का 1 नग, मंडप का लाल तूल 2 मीटर पांवड़े का कपड़ा 1 मीटर, गंठजोड़ा का पीला मलमल 3-3 मीटर के 2 नग, वरन के वस्त्र(टावल-गमछा) 7 नग। नारियल 40 नग, बताशा 5 किलो, खुले पान डठंल वाले 25 नग, धान बुवाई की अंगूठी, वस्त्र आदि, बिछिया गंसाई की साड़ी आदि, चढ़ाव की साड़ी ब्लाउज, पेटीकोट नाड़ा सहित, जेवर 5 नग वीजासेन की पुतरिया (3 सोने 2 चांदी के (कालीपोत वर्जित है), मीठा अच्छा 2 किलो, 5 नग अच्छे किस्म के रूमाल (तथा छोटे बहन-भाइयों के लिये कपड़े) पठौना में रखे जाते हैं। वर्तमान में नगद राशि रख दी जाती है। नाइन एवं बरौनी की साड़ी। कम से कम 1 नग बांस का छींटा या चकोटी अवश्य लायें।
16. विवाह की रस्में :-
सर्वप्रथम वर पक्ष द्वारा स्थानीय पंचों को हल्दी की गांठ देकर चढ़ावा सहित सभी वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न कराने के लिये आमंत्रित करना चाहिये तथा पंचों एवं दोनों पक्षों के सम्मानीय, जनों के समक्ष चढ़ावें का कार्य आरम्भ करें, सर्वप्रथम मंडप के लिये लाये लाल तूल में 5/-, एक सुपाड़ी, 1 हल्दी की गांठ बांधकर नाई को दें तथा उसे मंडवा मे ऊपर रखवा दें, यदि बन सके तो मंडप के ऊपर बंधवा दें। बाद में पुरोहित जी को चौक पूरने हेतु आटा, गुलाल, हल्दी एवं चने की भाजी दें, पश्चात 1 दोने में आवश्यकतानुसार सुपाड़ी एवं हल्दी की गांठे आचार्य को दें। फिर 1 कोपर, 3 थाली, 5 बर्तनो में लाये गये चढ़ाव के सामान को सजा दें। चढ़ाव के समय 11 नारियल रखे जाते हैं। वह कन्या पक्ष के हो जाते हैं। वर पक्ष पांव पखारने वालों को अलग से नारियल देवें। लड़की के पिता, मामा, फूफा, चाचा आदि को छोड़कर शेष सभी पांव पखारने वालों को वर पक्ष द्वारा नारियल या अन्य उपहार जो लाया गया हो, दिया जावें।
प्रथम बार मंडप में कन्या के आने पर पहली ओली फूफा/बहनोई (मानदान) से ही भरवायें। नियम पूर्व में बताया जा चुका है।
दूसरी ओली चढ़ावा का जेवर, साड़ी पहनकर आने पर डाली जावेगी।
तीसरी ओली बेला सोपते समय सभा की होती है।
चौथी ओली विवाहोपरान्त बिदा की डाली जाती है।
माता-पिता द्वारा किये जाने वाले कन्यादान के समय कन्या के भाई द्वारा गंगा प्रवाहित की जाती है (जिसे गडआ ढरकाई कहते है) इस कार्य में भी वर पक्ष द्वारा भाई को गंगा प्रवाहित करने के पश्चात नेंग में वस्त्र आभूषण अथवा नगद राशि नारियल के लिये 21/-, 21/- रूपये दे दें, ताकि वह जहां भी आवश्यकता समझें, उन्ही पैसों से पूजा कर लें।
सम्पूर्ण विवाह सम्पन्न किये जाने हेतु पुरोहित के लिये कम से कम दोनों आचार्यो को अलग वर पक्ष द्वारा 351+351 रूपये एवं कन्या पक्ष द्वारा 201+201 रूपये दिये जाने चाहिये। उपरोक्त राशि विवाह पूर्ण होने पर दोनों पक्ष वर तथा कन्या के हाथ रखकर संकल्प करा आशीर्वाद अवश्य दिला दें।
कन्यादान उपरान्त किये जाने गौदानों की राशि 101/- से कम न हो, कन्यादान के उपरान्त वरपक्ष ‘वर’ को दान ग्रहण करने के अपराध से दोष मुक्त होने हेतु ग्यारह आचार्यो को कम से कम रू, 11-11 रूपये प्रत्येक को प्रायश्चित संकल्प अवश्य करायें। संकल्प करने के बाद एक एक संकल्प दोनों पुराहितों को भी दे दें तथा शेष 9 संकल्प में से 5 कन्या पक्ष तथा 4 वर पक्ष अलग से रख लें तथा यह राशि उपयुक्त पात्र गरीब ब्राम्हण अथवा मंदिरों में या गुरू आदि को देवें। धान बुवाई से पूर्व जो अग्नि प्रज्वलित की जाती है, उसमें सप्तवर्ण (अर्थात) दोनों पक्षों के दो आचार्य, 2 पुरोहित, 2 गुरू तथा एक ब्रम्हाजी का होता है। अत: इन के लिये लाये गये वरण के प्रत्येक वस्त्रों में 11/-, 11/- रू. हल्दी गांठ, सुपाड़ी बांधकर आचार्य जी को देवें, वह वरण का दान सम्पन्न करा देगें। पश्चात एक-एक वस्त्र दोनों पुरोहितों को दे एवं 3 वर पक्ष 2 कन्या पक्ष रखें जो अपने-अपने गुरू एवं आचार्य को देवें तथा इसी में से 1 वस्त्र ब्रम्हा जी का किसी मन्दिर में जाकर भगवान को समर्पित करें। धान बोवाई का नेग पूर्ण होने के उपरान्त दूल्हे द्वारा कन्या के भाई को साथ में लाई गई स्वर्ण मुद्रिका पहनायें अथवा वस्त्र आदि जो लाये हों देवें। कन्यादान के बाद वर एवं कन्या के पॉव पखारने से जो धन आये उसे अलग रखें बाद में आभूषण आदि वर पक्ष को दे देवें नगद राशि जो आई हो, उसमें से 40 प्रतिशत दान के लिये (दोनों पक्ष 20-20 प्रतिशत दान हेतु लेकर यथाशक्ति पास से और मिलाकर दान देवें शेष 60 प्रतिशत वर पक्ष को दे दें। मांग भरने के लिये पेटी में लाये गये चांदी के सिक्के से वर द्वारा मांग भरी जाय, चांदी शुद्ध धातु मानी गई है तथा प्रदूशणहीन है। मांग भरने के उपरान्त बुआ मांग सँवारती है, उसे नेग दिया जाता है। साड़ी अथवा उसके समकक्ष नगद राशि वर पक्ष द्वारा दी जानी चाहिये। पश्चात बिछिया गंसाई (पहनाने) का नेग कन्या की भाभी (भावज) का होता है, बिछिया पहनाने के बाद वर के हाथ से कम से कम 501/- रूपये अथवा साड़ी ब्लाउज पेटीकोट के साथ कुछ नगद राशी भेंट कर दी जावें। कन्यादान के समय दोनों आचार्य (पुरोहित) अपने-अपने यजमान के निर्मल यशस्वी वंशावली का वर्णन करते हैं, जिसे वंशोच्चार कहा जाता है, इसकी दक्षिणा वर तथा कन्या पक्ष द्वारा अपने-अपने पुरोहित को कम से कम 51/- रू. अलग से देना चाहिये। खड़ग का नेग- कुषा की खड़ग बनाकर खड़ग का नेग करवाता है, तब नाई को वर पक्ष की तरफ से 11/- रू. अलग देने चाहिये। ध्रुव दर्शन का नेंग- वर कन्या के 5-7 बचनों को स्वीकार करने उपरान्त ध्रुवतारा जो नभ मण्डल में वर्श के 365 दिन रात एवं दिन में उदय रहता है, इनका साक्षी बनाये जाने हेतु ध्रुव दर्शन करता है। उसका नेंग कम से कम 11/- रू. अलग से देना चाहिये। भॉवर के पूर्व गॉठ बांधने का कार्य वर की बहन का होता है। वर पक्ष द्वारा उन्हें भी यथोचित भेंट देना चाहिये। विवाह की सभी रस्में पूर्ण होने उपरान्त कन्या के भाई द्वारा दहेज का बेला (कांसे का कटोरा पीले चावल से भरकर उसमें 1 साड़ी बौडार की रखते हैं) 101/- नगद रखकर वर को सौंप देना चाहिये। आचार्य की दक्षिणा जो पूर्व निर्धारित है, देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिये। विवाह उपरान्त वर कन्या पक्ष के मेंहर में जाता है, जहां पर उन्हें कन्या परिवार के पूज्य सदस्य के रूप में सम्मिलत किया जाता है एवं मांय दी जाती है तथा वर कुल देवता को बन्दन कर आशीर्वाद प्राप्त करता है। वहीं पर दूधभात अथवा पेड़ा आदि खिलाकर कुंवर कलेवा नेग की रस्म की जाती है। अन्य नेंग जैसे दीपक ज्योति मिलाना, थाली में रगींन पानी में अंगूठी ढूढ़ना, गिलास में चावल भरकर लुढ़काना है। वहां से वापस आकर वर मंडप के बन्धन खोलकर विवाह मंडप को अन्य पूजा के लिये मुक्त करता है। बिदा के समय वर पक्ष के अलग-अलग गोत्र के 5-7 लोग मंडप की परिक्रमा कर नारियल फोड़कर वहीं छोड़कर प्रणामकर वापस आते हैं। पूर्व में फाग के कार्यक्रम समधी-समधिन के साथ होते थें, जो अब बन्द कर दिये गये हैं।
सर्वप्रथम वर पक्ष द्वारा स्थानीय पंचों को हल्दी की गांठ देकर चढ़ावा सहित सभी वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न कराने के लिये आमंत्रित करना चाहिये तथा पंचों एवं दोनों पक्षों के सम्मानीय, जनों के समक्ष चढ़ावें का कार्य आरम्भ करें, सर्वप्रथम मंडप के लिये लाये लाल तूल में 5/-, एक सुपाड़ी, 1 हल्दी की गांठ बांधकर नाई को दें तथा उसे मंडवा मे ऊपर रखवा दें, यदि बन सके तो मंडप के ऊपर बंधवा दें। बाद में पुरोहित जी को चौक पूरने हेतु आटा, गुलाल, हल्दी एवं चने की भाजी दें, पश्चात 1 दोने में आवश्यकतानुसार सुपाड़ी एवं हल्दी की गांठे आचार्य को दें। फिर 1 कोपर, 3 थाली, 5 बर्तनो में लाये गये चढ़ाव के सामान को सजा दें। चढ़ाव के समय 11 नारियल रखे जाते हैं। वह कन्या पक्ष के हो जाते हैं। वर पक्ष पांव पखारने वालों को अलग से नारियल देवें। लड़की के पिता, मामा, फूफा, चाचा आदि को छोड़कर शेष सभी पांव पखारने वालों को वर पक्ष द्वारा नारियल या अन्य उपहार जो लाया गया हो, दिया जावें।
प्रथम बार मंडप में कन्या के आने पर पहली ओली फूफा/बहनोई (मानदान) से ही भरवायें। नियम पूर्व में बताया जा चुका है।
दूसरी ओली चढ़ावा का जेवर, साड़ी पहनकर आने पर डाली जावेगी।
तीसरी ओली बेला सोपते समय सभा की होती है।
चौथी ओली विवाहोपरान्त बिदा की डाली जाती है।
माता-पिता द्वारा किये जाने वाले कन्यादान के समय कन्या के भाई द्वारा गंगा प्रवाहित की जाती है (जिसे गडआ ढरकाई कहते है) इस कार्य में भी वर पक्ष द्वारा भाई को गंगा प्रवाहित करने के पश्चात नेंग में वस्त्र आभूषण अथवा नगद राशि नारियल के लिये 21/-, 21/- रूपये दे दें, ताकि वह जहां भी आवश्यकता समझें, उन्ही पैसों से पूजा कर लें।
सम्पूर्ण विवाह सम्पन्न किये जाने हेतु पुरोहित के लिये कम से कम दोनों आचार्यो को अलग वर पक्ष द्वारा 351+351 रूपये एवं कन्या पक्ष द्वारा 201+201 रूपये दिये जाने चाहिये। उपरोक्त राशि विवाह पूर्ण होने पर दोनों पक्ष वर तथा कन्या के हाथ रखकर संकल्प करा आशीर्वाद अवश्य दिला दें।
कन्यादान उपरान्त किये जाने गौदानों की राशि 101/- से कम न हो, कन्यादान के उपरान्त वरपक्ष ‘वर’ को दान ग्रहण करने के अपराध से दोष मुक्त होने हेतु ग्यारह आचार्यो को कम से कम रू, 11-11 रूपये प्रत्येक को प्रायश्चित संकल्प अवश्य करायें। संकल्प करने के बाद एक एक संकल्प दोनों पुराहितों को भी दे दें तथा शेष 9 संकल्प में से 5 कन्या पक्ष तथा 4 वर पक्ष अलग से रख लें तथा यह राशि उपयुक्त पात्र गरीब ब्राम्हण अथवा मंदिरों में या गुरू आदि को देवें। धान बुवाई से पूर्व जो अग्नि प्रज्वलित की जाती है, उसमें सप्तवर्ण (अर्थात) दोनों पक्षों के दो आचार्य, 2 पुरोहित, 2 गुरू तथा एक ब्रम्हाजी का होता है। अत: इन के लिये लाये गये वरण के प्रत्येक वस्त्रों में 11/-, 11/- रू. हल्दी गांठ, सुपाड़ी बांधकर आचार्य जी को देवें, वह वरण का दान सम्पन्न करा देगें। पश्चात एक-एक वस्त्र दोनों पुरोहितों को दे एवं 3 वर पक्ष 2 कन्या पक्ष रखें जो अपने-अपने गुरू एवं आचार्य को देवें तथा इसी में से 1 वस्त्र ब्रम्हा जी का किसी मन्दिर में जाकर भगवान को समर्पित करें। धान बोवाई का नेग पूर्ण होने के उपरान्त दूल्हे द्वारा कन्या के भाई को साथ में लाई गई स्वर्ण मुद्रिका पहनायें अथवा वस्त्र आदि जो लाये हों देवें। कन्यादान के बाद वर एवं कन्या के पॉव पखारने से जो धन आये उसे अलग रखें बाद में आभूषण आदि वर पक्ष को दे देवें नगद राशि जो आई हो, उसमें से 40 प्रतिशत दान के लिये (दोनों पक्ष 20-20 प्रतिशत दान हेतु लेकर यथाशक्ति पास से और मिलाकर दान देवें शेष 60 प्रतिशत वर पक्ष को दे दें। मांग भरने के लिये पेटी में लाये गये चांदी के सिक्के से वर द्वारा मांग भरी जाय, चांदी शुद्ध धातु मानी गई है तथा प्रदूशणहीन है। मांग भरने के उपरान्त बुआ मांग सँवारती है, उसे नेग दिया जाता है। साड़ी अथवा उसके समकक्ष नगद राशि वर पक्ष द्वारा दी जानी चाहिये। पश्चात बिछिया गंसाई (पहनाने) का नेग कन्या की भाभी (भावज) का होता है, बिछिया पहनाने के बाद वर के हाथ से कम से कम 501/- रूपये अथवा साड़ी ब्लाउज पेटीकोट के साथ कुछ नगद राशी भेंट कर दी जावें। कन्यादान के समय दोनों आचार्य (पुरोहित) अपने-अपने यजमान के निर्मल यशस्वी वंशावली का वर्णन करते हैं, जिसे वंशोच्चार कहा जाता है, इसकी दक्षिणा वर तथा कन्या पक्ष द्वारा अपने-अपने पुरोहित को कम से कम 51/- रू. अलग से देना चाहिये। खड़ग का नेग- कुषा की खड़ग बनाकर खड़ग का नेग करवाता है, तब नाई को वर पक्ष की तरफ से 11/- रू. अलग देने चाहिये। ध्रुव दर्शन का नेंग- वर कन्या के 5-7 बचनों को स्वीकार करने उपरान्त ध्रुवतारा जो नभ मण्डल में वर्श के 365 दिन रात एवं दिन में उदय रहता है, इनका साक्षी बनाये जाने हेतु ध्रुव दर्शन करता है। उसका नेंग कम से कम 11/- रू. अलग से देना चाहिये। भॉवर के पूर्व गॉठ बांधने का कार्य वर की बहन का होता है। वर पक्ष द्वारा उन्हें भी यथोचित भेंट देना चाहिये। विवाह की सभी रस्में पूर्ण होने उपरान्त कन्या के भाई द्वारा दहेज का बेला (कांसे का कटोरा पीले चावल से भरकर उसमें 1 साड़ी बौडार की रखते हैं) 101/- नगद रखकर वर को सौंप देना चाहिये। आचार्य की दक्षिणा जो पूर्व निर्धारित है, देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिये। विवाह उपरान्त वर कन्या पक्ष के मेंहर में जाता है, जहां पर उन्हें कन्या परिवार के पूज्य सदस्य के रूप में सम्मिलत किया जाता है एवं मांय दी जाती है तथा वर कुल देवता को बन्दन कर आशीर्वाद प्राप्त करता है। वहीं पर दूधभात अथवा पेड़ा आदि खिलाकर कुंवर कलेवा नेग की रस्म की जाती है। अन्य नेंग जैसे दीपक ज्योति मिलाना, थाली में रगींन पानी में अंगूठी ढूढ़ना, गिलास में चावल भरकर लुढ़काना है। वहां से वापस आकर वर मंडप के बन्धन खोलकर विवाह मंडप को अन्य पूजा के लिये मुक्त करता है। बिदा के समय वर पक्ष के अलग-अलग गोत्र के 5-7 लोग मंडप की परिक्रमा कर नारियल फोड़कर वहीं छोड़कर प्रणामकर वापस आते हैं। पूर्व में फाग के कार्यक्रम समधी-समधिन के साथ होते थें, जो अब बन्द कर दिये गये हैं।
17. विदाई -
बहिन को बिदा करते समय भाई डोली/कार रोककर अपने भाई बहिन के प्यार को प्रगट करता है। वर पक्ष द्वारा भाई को कुछ धन कम से कम 501/- रू. अथवा यथाशक्ति नेग दिया जाता है।
बहिन को बिदा करते समय भाई डोली/कार रोककर अपने भाई बहिन के प्यार को प्रगट करता है। वर पक्ष द्वारा भाई को कुछ धन कम से कम 501/- रू. अथवा यथाशक्ति नेग दिया जाता है।
18. सजन भेट:-
बिदाई के समय कुछ दूर चलकर कन्या के पिता एवं वर के पिता (दोनों समधी) परस्पर पान बदलकर गले मिलते हैं तथा कन्या के पिता 51/- या 101/- रू. देकर समधी के पैर पड़ते हैं तथा कन्या के पिता द्वारा बारात तथा उनके सत्कार में भूल से भी रह गई सामान्य त्रुटियों की भी क्षमा मांगते है, वर के पिता उन्हें गले लगाकर सस्नेह ‘उनकी पुत्री उनके यहां सुखी रहेगी’ आश्वस्त करते हैं।
रामायण में भी जनक जी द्वारा कहा गया है
रूख राशि बिदा करिबो कठिनाई
विषेश:- बिदाई के बाद यदि बारात नगर के बाहर किसी नदी को पार करती है तो उसके पहले किसी भी देवस्थल पर एक नारियल फोडे एवं नदी में सिंदोरी, सिंदारा एवं दन्दौर को प्रवाहित करें।
19. लक्ष्मी स्वरूप नववधू का ससुराल आगमन :-बिदाई के समय कुछ दूर चलकर कन्या के पिता एवं वर के पिता (दोनों समधी) परस्पर पान बदलकर गले मिलते हैं तथा कन्या के पिता 51/- या 101/- रू. देकर समधी के पैर पड़ते हैं तथा कन्या के पिता द्वारा बारात तथा उनके सत्कार में भूल से भी रह गई सामान्य त्रुटियों की भी क्षमा मांगते है, वर के पिता उन्हें गले लगाकर सस्नेह ‘उनकी पुत्री उनके यहां सुखी रहेगी’ आश्वस्त करते हैं।
रामायण में भी जनक जी द्वारा कहा गया है
रूख राशि बिदा करिबो कठिनाई
विषेश:- बिदाई के बाद यदि बारात नगर के बाहर किसी नदी को पार करती है तो उसके पहले किसी भी देवस्थल पर एक नारियल फोडे एवं नदी में सिंदोरी, सिंदारा एवं दन्दौर को प्रवाहित करें।
कन्या जब वधू बनकर रीति अनुसार पूजन, मुंहजौनी व अन्य प्रचलित रस्मों के साथ धूमधाम पूर्वक ससुराल आती है तो उसे आपके परिवार की रहन-सहन, पारिवारिक स्थितियों तथा सदस्यों के स्वभाव का कोई ज्ञान नही होता तथा उसके समक्ष मायके में बिताया उछल- कूद करता, चंचल स्वभाव बाल्यहठ, माता-पिता द्वारा प्राप्त वात्सल्य युक्त प्रेम होता है, जबकि ससुराल में मान-सम्मान का ध्यान रखते हुये, गम्भीरता, धीरज, धैर्य धारण करते हुये, प्रेम, ममता, आदर्श स्थापित करना एक चुनौती होती है। अत: नववधू से बड़े बुजुर्ग पुत्रीवत आचरण कर, अपने घर के चलन व्यवहार को स्नेहपूर्वक समझायें। रामायण में महाराज दशरथ जी ने अपनी चारों बइुओं को बहुत संभालकर रखने के लिये महारानिया से कहा था।
वधू लरकिनी, पर घर आयी ।।
राखिय नैन पलक की नाई ।।
Gahoi Vaishya community regarding marriage ceremony
Marriage rites related
Daughters son qualified to perform marriages is our greatest moral responsibility. They only son, son, daughter, daughter-in-our family, household and community responsibility hanging tomorrow will determine the age. Find the pair of nubile good introduction to the Jnmakon require their family. In this work are Prkshit Wayodata Ghoi brother magazine each month. Can and is supported by the General Assembly of the Bebsaid. Introduction to the conference are being made by society places through which you can easily find the information your son, daughters married
Marriage
1. Pkkyat (connection permission to be fixed): -
Here is the opening of the marital act. Both sides see the couple and satisfied with the things to be fixed to allow the girl to get married here tend to favor groom and groom on approval of connection, to be fixed at their worship before God at least 1 pound sweet, with some fruit per 1 101 cash with coconut and incense lamp lighting should pray that God will complete the event well. This is the assessment of the person's behavior, and love.
2. Engagement: -
In the engagement of a large platter and four tray Ldduon sweet little 5 pound Bundi, fruits, nuts, sweets, clothing, jewelery, silver shed. Rs 101. Placing on hand to mark the defeat of the boy wear boy girl boy's brother Pan Kilave the clothing, jewelery, money, whatever Deve and 5 / - Rs. Nyochhawar it. Buluwa boy will share meals with snacks can make Sradwanusar. At least 1 / -ru. Can also be engaged by.
3. Ring Siremni or girl baby shower: -
Today, the baby girl and ring Siremni to somewhere being held at the home of the bride's side. In the event the characteristic 10-11 groom female party members to come here. Being female relatives Upisthti by side with them, welcoming breakfast, lunch, etc. is made by the bride's baby shower ceremony Ttpshchat groom is complete. The task of filling Oli uncle or a family should be respected by elders, childless person filling it may not even notice that lap. Before filling Acharya Oli Virgo to 1 Anjuli sweet biscuit. The teacher is not aware of God's presence. Virgo in Oli Textile (sari etc.), jewelery and cash, should pour with sweet biscuit. Enter the 4 Anjuli sweet biscuit. 1 coconut with sweet biscuit in the fifth Anjuli, Clothing & Oli fill Virgo and put 101 rupees in cash. After completing the first to Oli Nine Anjuli sweet biscuit, to surrender after 10 Virgo like to give Rs. Thereafter, appropriate or sit on the groom, the bride and the opportunity to groom each other Phnaien ring, female, both sides 10 / -, 10 / - to Rs his Nicavarkr Barber.
Note: -
The bridesmaid, never Phinaven badhu garland each other. Ganesh Puja Acharyo time by the work of the Lord's feet Pkharne not be the brother of the bride deserves. It is not appropriate action prior to marriage.
Particular: -
Elsewhere on the bridesmaid, of both girls put Oli. But the same God works in both Oli Lgun before opening casts just as sweet biscuit and one coconut and Javen Rs 101, the other nothing
4 Marriage Sodn (Sutkra): -
The girl called the auspicious Lgun qualified priest and marriage details of journal writing letters written by purification 5 / - Rs. Sprinkle with turmeric or mailed hairdresser.
5. Attach journal writing: -
This is the female side is performed conveniently at home. The work of the groom should not Upisthti, even if it is local. The task of organizing female side of his priestly Punckr auspicious one side prior to the date of marriage should be solemnized. This morning, the female side of the evening my brother Bandhav Gudhuli Bella social people, including relatives and local distinguished scholar at the local Quaker Upisthti Acharya (priest) filed by invoking Lgun. The materials used are as follows ascendant --2 printed magazines, turmeric powder for worship, Rory, Kukum, rice, flower-garlands, incense sticks, sandal (worn), sweet biscuit, confectionary, fruit, Pcrnga yarn 1 large ballast, open Hearts (large stalks) 11 nos, arecanut big 7 pieces, 11 pieces small puja arecanut, small pan 10 pieces, cloves, cardamom, yellow rice, 100 grams, Durba 1 fist, cow dung, 10 Dona, turmeric Gaten nos 15, struck and God's throne, vase, lamp 100 grams, including wheat, mango wood, 100 grams Prthanian, fire pot, 50 g incense, perfumes etc. Ganga. According time for magazine writing program in the ascendant after marriage, are dyed yellow rice and 5 large arecanut inside, 5 knots of turmeric, a quarter silver coin as money or even have the strength to keep cash, open up closed Pan magazine, Durba placing Dams and other colorful yarn well magazine which will remain in place, the first nut, turmeric rice Durba pan with 1 tie. First Ascendant magazine satin red / yellow garments by placing a box to pack together with a coconut. The magazine with a night here, like the other day by the brothers of the bride or groom should be sent here, together with punches and by the letter of 51 rupees Lgun, Rs 51 and Rs 11 Liturgy Oli, 10 rupees, Send Rs 123 with a total surrender separately. After writing journal Lng priest (Acharya) or 101 of the tip 51 to Rs 10 crore and Rs YadhaSakti lawn Barber Rs 10 must surrender ascendant Please specify the magazine. According to the consensus rule auspicious start work for the panchayat present worth as his power punch or by the laws of the panchayat tax receipt Please specify must contribute to society. On this occasion, all the guests tea, breakfast or equipped to entertain them Buluwa (sweet biscuit or other confectionary) Please specify the Pude.
6. groom parting of the ascendant ones: -
Virgo ascendant party sent by God to the side with respect to the magazine accept them in close to a temple or shrine should only home and reading Pancpati should come together. Per hour of the following marital acts must complete all your wedding service. Bringing the ascendant magazine as the appropriate award and his brother must parting power.
7. Mndpachchhadn: -
The marriage is a very important task. Virgo side Mdwa driver here is paved and under the shade of green bamboo pavilion after the whole process of marriage with a marriage knot is complete. According to the magazine, written in time for the coming home to the Ascendant, the fixed or floating Mdwa of worship must complete driver, it is now the only girl on the day fixed for the wedding party is Mndpachchhadn finished work. Currently former pavilion site with modern decor is made from. Only Kmm implant is left over, which requires the following items.
Four Kalsi, a Mondwa (of Ghoiyon) and 1 no shawl with 2 patali timber (the timber growth is an indicator of the Bell family, the family is considered very auspicious for growth. 1 no Pancratni, Fulmala, urn to a large mug (bronze more appropriate), has 2 large clay, 200 grams sweet oil, with 2 very long wick, 1 matches, 1 Pudha sticks, 100 grams of wheat, turmeric lump to worship, arecanut large, cloves, cardamom, open the pan large stalk, turmeric powder, 100 grams of 5 pieces, Rory, Sandal, colorful yarn, camphor, 50 grams of butter purity, sweet biscuit 100 grams, 50 grams of rice, incense 50 grams, 250 grams of sweet, holy water, common Wood Prthanian of veneration, mango leaf, 7-8 kg soil, an empty tin decorated with colored paper, plate for worship, the worship of the water separately, cow dung (or made to look that Ganesha was created when writing Lgun was), an iron crowbar. liturgical bestowing the person who should sit. if the wife, then his wife should worship precisely. liturgical completed Mandan-law, brother, nephew, etc., which are present at the time of his mark by Rory worship, put turmeric in their hands, after giving them the power to them as Neng Mdwa request driver, Mdwa invite Gadhte time required to punch. With the Mandan, four and one hand Lgaven, which are of different tribes and children are thriving. (Kuare boy pavilion uncle or brother-in-hand, and do not spend time in years Gadhte the pavilion should not touch.) Mdwa before burial in soil recommend watering, dib dig 5 times, then it leaves Pancratni and twenty rupees tied up with the press and Mdwa burry him, next (time) Central burry wood. Soft water to pour down well. Mdwa common leaf wreath-up and bowed to put flowers etc. After the bride's sister-in pavilion pavilion Hanthe 5-5 turmeric dissolved in Koper and plug it in tin. Dakshina priest 51 / - or 101 / - or make the determination as to the person who worship power, required with colleagues to 5-5rupye. Barber 10 / - Pavilion surrender and 10 / - to surrender to Mandan Deven. After all, Rory turmeric Chanvl Tilak pavilion to attend, (mutual turmeric play out, etc. Now is not seasonal. So, it should be given importance) that is under the canopy of the present Bandhvon brother sitting near the pavilion of feeding must Junta Please.
Note: - The day of the procession of the day Tuesday, the day before the Mondwa make great son of the soil is Tue, son of the day, the mother (earth) is forbidden in the Scriptures of the dig, the results are not favorable. So be sure to keep this in mind. As far as possible, do not blow out the flame of Mdwa the oil poured over time
8. Argna and Mangr Mati: -
After writing the first marriage ceremony ascendant. The direct relationship with God is the total. In the event that a particular blood-related men and women, it is also called the invitation is sent (first) Argna is worshiped, rouge girl bath by putting a new dress (sari), clad in saffron tilak Kur is extracted and Rory by prayers is, after the girl is seated on the north and near the mouth of the east-west sister Ptah, bhaujai, mother-in-law or sister-in-law Supa no two women (present time) gram or seven Chiraunji and sugar -sat often exert tossing in another Supa, after the sugar Chiraunji placed on worship and 'Many' when creating the Chiraunji and sugar 'Many' is found in the Khoa or flour, the 'Many' is made. Particular family homes in the next days (3 or 5) is controlled by the girl, the girl is wearing the sari, then fill Oli who invited her laugh is happy. Which is considered auspicious for the bride. After Argna same day, evening 4 pm Awnrten almost all of the family together as a holy site fledged Band nearby river, pond, lake or in the garden and is the digging soil brings worship. Worship of the earth taken from the totems character (pot) is constructed, which is used to keep the shrine. Home sweet biscuit in the call back to the women's circulation. This bride and female both sides are equally endowed.
9. Oil, ways (maatrakaa Liturgy): -
On the eve of the procession is a day of work, the women of the house together, jumbo, and sweet cake or Gulgulon Mungudha manufactures and fill them Oli of the daughter of the house of God. Relative to the other family friends etc all together and eat together. Jumbo made today are the Mdwa day Prse with raw food. Girls party and groom before the wedding day, the extraction of the law and forced their totems worship according to their family traditions and philosophy of the family-Kutumbke members totems (everybody) worshiped as the major offerings by the (Many) is given, which is a big honor and with respect Hrsdasy assumed considers himself blessed, the worship and the entire family Many binds to a formula. Light of totems, ignited by both houses of God is coming back and Maihar badhu or family members who are eligible to receive Many must be present at that location, until God Many female side not provided by should be. This bride and groom's family to provide comfort and prosperity.
10. Lgun-oli or vase -
The procession of the groom, a day before the opening of the ascendant magazine (read) is held. In the event, according to your ability to invite guests from the bride's brother called and female side-sisters, sister etc. involved in organizing the event is held on offer. Evening event starts around 7 pm, according to the list of goods that are incurred.
Pujn material for groom - Rory, turmeric, rice, Sandal, arecanut, turmeric Gaten, flower-garlands, two large beads, sweet biscuit 50 grams, 250 grams of sweet, raw cotton colorful, open hearts, two ones fitted curve.
Oli girl party to organize stuff-a 1 coconut, sweet biscuit Fort quarter and 51 / - Rs. Pandiht the alms, 10 / - Rs. Surrender, 101 / - Rs. Cash or gold ring, chain etc. Together with the program of the vase, then at least five kind of girl sweet side, five varieties of fruits, dry fruits of five varieties, (volume YadhaSakti) and groom and their families: parents, brother-in-law, sisters jewelery and clothing for all the family as children, etc. should have the power or the mutual understanding and invited the local Quaker female side and their programs are conducted. The groom and the bride's brother Professor Priest before God to sit in the seat of both the Sri Ganesha worship offering, after the girl's brother Oli God fills. First. Oli God Put a Anjuli sweet biscuit filling and coconut 1 with sweet biscuit in the fifth Anjuli, 101 / - and who want to take a ring or chain, etc., with insert. 10 / - to surrender to God, to the barber and the barber to a Anjuli sweet biscuit. Brother of the bride by the groom's side on this occasion should surrender, after bridesmaid Oli Oli goods in their worship by the mother again during the ceremony. After the groom and the bride's brother, Sweet Home mutually interconnected make wreaths, mutual affection and ties closely interconnected Pan expression Kilayen and throat. Re: rinse worship God, then the groom's brother Virgo Ascendant magazine like to delegate and let Varkey to surrender. Groom's brother to surrender, followed by both the bride and the bride side 51 / - Acharya to tip their hand-resolution, after Sogita (Musir) the resolution required. 10 / - Please specify Barber of lawn. After eating breakfast, etc. However, all the guests and make the priest. The opportunity to work on the female side of the groom's feet Pdhai contains separate room and conducted according to pre-determined mutually understood. The groom is the responsibility of the members of your esteemed member and get vaccinated, after providing the perfect introduction to the female side to go, in order to discharge expanded and enhanced here is not ignorance. Female party guests came from all members YadhaSakti by proper food warm with a cash amount or wear jewelery to leave honorably by Tilak by Quince.
11 Chikt, (rice): -
The program is performed by the groom's daughter both sides equally. Including their related parties with Uncle Chikt fledged Band come to the door of his sister and aunt and uncle Chikt main goods are standing on my head. Sisters and brother-in-law is received in the square to take full sorbet desserts and brother-in-law and welcomes the throat would express happiness together and arrange to show Chikt holds all goods brought in . Sister is pleased with the support received from his maternal side.
Rice: - This girl sat at the side Mdwa takes place here, a girl, parents (sister-brother) sit in chat up garlanding anointing Rory aunt (all) and there is the ritual takes off Blayen Wash all braided sweet sister, aunt and uncle of water to the pan, and the sister of his obligation to perform the ritual is complete.
Note: - In groom Knhr bathed in procession uncle, the practice has now been stopped.
12. procession clearance: -
This is the time of departure of God the procession. God can punish women Swar is imminent, God save the sun-shade natural disaster, etc. Four of God wrap up outstretched brother of the groom are standing Mandan, with fledged Band mother, sisters, aunt , Fua etc. Supa Women still, fried bread, etc. God Blayen takes pestle, as signs of Dituna applies mascara, eye rye flour nominated by Tilak Rory, son of mother always However big soft tender the mirrored appearance of apps it does not apply to his chest, like childhood lactation was secured, it is the memory of. Mudraikayen way to spend the mark with a few brothers, sisters etc. (God) gives. That is the temple of the Goddess worship Jnmdayni plate after obtaining permission from the mother to the world of life on the road on foot to get permission from his mother. Coconut archan offering worship in the temple to the mother, the blessing of receiving the appropriate vehicle to the destination site, horse, car, bus, etc., are set out. In married life the way to wish the bride with Mr. Gauri and Ganesha carries.
13. Door-four: -
The event takes place at the bride's side reached the entrance procession. The female side of his arrival at the entrance archway entrance procession Garnish, Tue Chowk to fill the urn holding the procession that his reception. On the clothing of the procession before Dwarachary Panvde by hairdresser is laid, which is made up of the first uncle uncle's appointment is made after the meeting of both wealthy home, offering us the time to embrace each other after both sides Virgo side 51 / - or 101 / - with respect YadhaSakti rich girl party, bridesmaid's rich uncle of the groom and the bride's uncle by side Sparn the stage and the mutual surrender of 10-10 / - to Barber . The fabric also takes Panvde barber. There Halprtham urn holding girl's aunt or older sisters worship God at the entrance is on the horse. First bridesmaid party chief (Pgrat) in respect of the urn or two at all the cash (101 / -) or put them in a reasonable amount salute urn. (PS) in female yellow rice thrown at him by coming to see God in your marriage is sanctioned to get engaged. By the priest (Virgo and groom), both in the local Quaker and Upisthti of elderly people Dwarchar rewarding action is initiated. The first horse is worshiped. After walking with God, Mr. Gauri G & Ganesh is worshiped. Ttpshchat bride's father, guardian or worship of God by the person who took bestowing 101 / - Rs. Or silver coin or a cross mark is clad in gold chain etc. By both parties at least 51 priests present Dakshina / -, 51 / - Rs. By Acharya receive blessings from both sides 10 / - 10 / - Rs. Please specify barbers to surrender to God, and both sides of the horse 10 / - Rs. Surrender of horse car driver (driver) to Deven. Brother of the bride groom off after the horse sits in Garland Forum site, along with the help of God to handle living Ganesha etc. Prior to lowering the horse, horse driver Ng 21 / - Rs. Please specify required.
14. Garland Program: -
Priests present on stage before the present stage and the host communities and the public before the arbitrator recognized, both by Acharya first Swist priests are reading, with the sound of mantras after Garland statement by the newly-married couple to each other, present society welcome applause.
Note: - currently takes place on the stage, the local panchayat Quaker wedding greetings and gifts to the bride and the groom is also were given
Place of respect and attention Mahurt: -
Currently it is seen that often caterer is arranged by the groom's side, female side expenses (cash) by, live free or other discrepancies due to come out was fine, but our civilization it is not right to be seen to forget that both sides are keen to give our esteemed men are venerated. Even his closest esteemed because of modernity / elderly people do not have the urge to eat. Female heads of party chief bridesmaid side (church) by the end of the marriage did not even ask the caterer. It is against our culture things. Let Lpya required mutual respect and marital auspicious note. Photography, fine, but behind them hang Vawahikmuhurto priest whose process is complete, you have months, keep in mind it should not come out. The work performed at the auspicious time for life are pleasant.
15. Pavilion Wedding Programs: -
Wedding Programs grand event for which you have been running the sea swim, he often will begin after midnight. Then turn off the entire market. It usually takes one day before the procession groom lap belt material, the following items are required - a bag of red (vertical lump turmeric, arecanut, Change, open notes and other essential content Jaguar), Mr. Ganesh Friyo --2, Rory, rosemary, Igur, Alta (rouge), Kki, Kkwa, drizzle of glass, dot, resin, Laken, bangle -1 pair, Gulal, turmeric powder, Sindori, Sindura, Dhana stand Dndur, Thpian of aipun, rice 200 grams, 250 grams of molasses, vegetable powder, 50 grams grams, 100 grams of arecanut steep, steep 21 nos turmeric, palm Maur --2, colorful yarn 1 ballast. Colorful paper proposes 6, a blank copy, Dona 10 pieces of plastic, silver coin, 1 no, played 2 meter pavilion Panvde red cloth 1 meter, 3-3 meters --2 Gantjodha yellow muslin, but the clothing (Tavl-Gamchha) 7 pieces. 40 Nos coconut, sweet biscuit 5 kg, 25 Nos Dtnl open pan, rice sowing ring, clothing, etc., etc. bichia Gansai sarees, saree blouse downs, including petticoat nada, jewelry Putria of 5 Nos Vijasen (3 gold, 2 silver (Kalipot taboo), sweet good 2 kg, 5 nos good quality handkerchief (and for younger brothers and sisters clothes) are housed in Ptuna. currently it is cash. Nine and sari eyelash. at Must dash or Chakoti brought low 1 no bamboo.
16. Marriage Rituals: -
Groom first lump of turmeric by local Quaker wedding service, including offering should be invited to provide rich and esteemed jury and the two sides, before people start Cdhaven tasks, first brought to the pavilion in the Red played 5 / -, a arecanut, turmeric 1 to Barber and her Mondwa tied in knots to move it up, you can be packed up to the pavilion. Priest later for the square Purne flour, Gulal, turmeric and vegetables to gram, after one of scoops needed to Acharya knots of arecanut and turmeric. Cooper then 1, 3 plate, garnish 5 utensils goods made to the lows. 11 are housed at lows coconut. The girls are in favor. Please specify those Pkharne coconut foot groom separately. The girl's father, uncle, uncle, uncle etc. Pkharne foot except for coconut or other gifts to those who have been brought by the groom's side, Javen given.
At the first stage the first Oli girl uncle / brother (Mandan) Brwayen from. Rules previously stated.
Second Oli offering ornament, cast Javegi come wearing a sari.
Oli third of the House is Sopte Bella.
Oli fourth marriage is put to leave.
By parents, brother of the bride by the bestowing time is flowing Ganga (also called Gda Drkai) in this task by the groom's brother Ganga wear jewelery or cash flow after Neng for coconut 21 / -, 21 / - give money, so he understood the need, to make the same money worship.
Chaplain for the entire wedding to be held at least two different bridesmaid Acharyo side by side 351 + 201 + 201 Rs 351 crore and girls should be given. The above amount is complete wedding the bride and the bride's hand with both sides must give blessing to get resolution.
After bestowing Gudanon amount to be 101 / - is not below, after bestowing Vrpaksh 'God' to be free from defects of the crime of receiving the donation of at least Rs eleven Acharyo, 11-11 rupees each resolution must atone Upgrade. After the resolution to a resolution giving the priestly class and the remaining 9 resolution and 4 of the 5 girls side and the groom and keep aside appropriate amount or Guru, etc. Please specify the eligible poor Brahmin or temples. The fire is ignited before sowing paddy, the Sptvarn (that) two sides Acharya, 2 priests, 2 master and is a Brmhaji. Therefore, each of these statements made to the fabrics 11 / -, 11 / - Rs. Turmeric lump, Acharya Ji Please specify arecanut shackled, he'll get rich selection of the charity. After one wear to both the priests and 3 groom retain 2 female side Please specify their mentor and teacher to the corresponding one of the first textile Brahma ji temple dedicated to God to go. After completion of sowing paddy Ng were brought together by the groom to the bride's brother or wear a gold ring Phnaien etc. Please specify which are brought. After bestowing the money came from the groom and the bride's pow Pkharne separated after her bridesmaid jewelery etc. Please specify to the party who has brought cash, donate it to 40 percent (20-20 percent for charity on both sides to render all possible Please specify large donation from the groom to give the remaining 60 percent. demand for silver coins brought in to fill the box should be filled with the demand by God, and Pradusnhin silver is considered the pure metal. demand is Sawarti demand aunt after filling it is Ng. sari or the cash equivalent should be given by the groom's side. after bichia Gansai (pull) the law of the Ng girl (daughter-in-law) is, after bichia pull the hand of God at least 501 / - Rs or sari blouse with petticoat Javen gifted some cash amount. bestowing both Acharya (priest) to describe their Yjman serene illustrious pedigree, which is called Vanshochchar, the tip side of the groom and the bride by their priest at least 51 / - Rs. separately should. Kdg Ng of Kdg makes the Neg- by Kdg of Kusha, the barber from the groom's side 11 / - Rs. Want to separate. Pole philosophy Neng- God talks to accept a woman after 5-7 Polestar night and day, 365 days of the year in which the Board sky is shining, their witness is to be made for the pole philosophy. His Neng least 11 / - Rs. Should separately. Got tying former Bovr work is the sister of the groom. Offering reasonably should groom them. After completion of the rituals of marriage dowry by the bride's brother Bela (bronze bowl filled with yellow rice are one of sari Budar) 101 / - by cash should be handed over to God. Acharya Dakshina which is predetermined, should give their blessing. After marriage the bride groom is in everybody's side, where they are combined as a female member of the family is sacred and Bndn Many totems are given and God has blessed. Dudbat or breakfast on the portion K. Ng ceremony etc are fed. Like other Neng modulate lamp light, the ring only find out at the plate Rginn water, rolling in the glass is filled rice. God came back from the wedding canopy canopy opening band is free to worship the other. The departure time of the groom different tribe than the 5-7 people bursting coconut canopy orbiting Prnamkr come back. The program consists of Mo former father-in-law were with-Smdin, which has now been closed.
17. Farewell -
While the outgoing sedan sister brother / sister love his brother reveals the car is stopped. At least 501 by groom's brother some money / - Rs. Or is YadhaSakti Ng.
18. emissions presented: -
Parting of the bride's father and the groom's father walked some distance (the father-in-law), and the bride's father hugging each page by changing 51 / - or 101 / - Rs. The feet are required by laws and by the bride's father left the procession and the common errors of forgetting their hospitality ask for forgiveness, God Cordially father embraced him, "said his daughter happy here they 'are confident.
Ramayana is also the father-in-law was told by
Kribo farewell approach hardship funds
Particular: - Parting out of the city after the procession crosses a river, a coconut on his first burst and river Sindori any Devsthl, Sindara and Dndur to flow.
19. Lakshmi laws of nature bride arrival: -
According to the bride as Kanya Puja ceremony, Munhazuni and other prevailing laws rituals undertaken with the fanfare it comes to your family's lifestyle, family situations, and there is no knowledge of the nature of the members and then jump to the parents spent Ucl- playful nature Balyht, obtained by parents love with VAATSALYA while other laws respecting the dignity, perseverance, endurance, patience will hold, love, affection, a challenge is the perfect setting. So the elders Putriwat bride conduct, behavior lovingly convince his home run. Maharaja Dasaratha in Ramayana law very carefully to keep your four Biuon told Maharania.
Brides Lrkini, come home ..
Rakiy like eye blinking ..
5. જર્નલ લેખન જોડો: -
આ માદા બાજુ ઘરે સરળ કરવામાં આવે છે. વરરાજા કામ તે સ્થાનિક હોય તો પણ, Upisthti ન જોઈએ. પહેલાં લગ્ન ની તારીખ માટે તેમના પુરોહિતને Punckr શુભ એક બાજુ ના માદા બાજુ આયોજન ની ક્રિયા ગંભીર સ્વરૂપ ધારણ કરવી જોઈએ. આ સવારે, સાંજે સ્ત્રી બાજુ Lgun invoking દ્વારા દાખલ સંબંધીઓ અને સ્થાનિક ક્વેકર Upisthti આચાર્ય (યાજક) ખાતે સ્થાનિક નામાંકિત વિદ્વાન સહિત મારા ભાઈ Bandhav Gudhuli બેલા સામાજિક લોકો,. ચડતી --2 મુદ્રિત મેગેઝીન, પૂજા માટે હળદર પાવડર નીચે પ્રમાણે વપરાતા પદાર્થો હોય છે, રોરી, Kukum, ચોખા, ફૂલ-તોરણો, ધૂપ લાકડીઓ, સેન્ડલ (પહેરવામાં), મીઠી બિસ્કિટ, confectionary, ફળ, Pcrnga યાર્ન 1 મોટી નીરમ, ઓપન હાર્ટ્સ (મોટા દાંડીઓ) 11 અમે, મોટા 7 ટુકડાઓ, 11 ટુકડાઓ નાના પૂજા સોપારી, નાના પાન 10 ટુકડાઓ, લવિંગ, એલચી, પીળો ચોખા, 100 ગ્રામ, Durba 1 મૂક્કો, ગાય છાણ, 10 Dona, હળદર Gaten સોપારી અમે 15, ત્રાટકી અને ભગવાન સિંહાસન, ફૂલદાની, ઘઉં, કેરી લાકડું, 100 ગ્રામ Prthanian, આગ પોટ, 50 ગ્રામ ધૂપ, સહિત દીવો 100 ગ્રામ, અત્તર વગેરે ગંગા. લગ્ન પછી ચડતી માં મેગેઝિન લેખન કાર્યક્રમ માટે સમય અનુસાર, પીળા ચોખા અને અંદર 5 મોટા સોપારી, હળદર 5 ગાંઠ, મની તરીકે અથવા તો રોકડ રાખવા તાકાત એક ક્વાર્ટર ચાંદીના સિક્કાના બંધ પાન મેગેઝિન અપ ખોલવા રંગેલા છે, Durba ગોઠવણ , સ્થળ માં પ્રથમ બદામ રહેશે જે બંધો અને અન્ય રંગબેરંગી યાર્ન વેલ મેગેઝિન, હળદર ભાત Durba 1 ટાઇ સાથે પૅન. નાળિયેર સાથે મળીને પૅક કરવા એક બોક્સ મૂકીને પ્રથમ ચડતી મેગેઝિન ચમકદાર લાલ / પીળા વસ્ત્રોમાં. અહીં એક રાત સાથે મેગેઝિન, કન્યા અથવા વરરાજા ના ભાઈઓ દ્વારા બીજા દિવસે એક સાથે પંચની સાથે અને 51 રૂપિયા Lgun રૂ 51 અને રૂ 11 ઉપાસના Oli, 10 રૂપિયા ના પત્ર દ્વારા, અહીં મોકલવા જોઈએ જેવી, અલગ માટે કુલ શરણાગતિ સાથે રૂ 123 મોકલો. ચડતી સોંપણી જ જોઈએ રૂ 10 કરોડ અને રૂ YadhaSakti લોન બાર્બર રૂ 10 જર્નલ એલએનજી યાજક (આચાર્ય) અથવા ટોચ 51 ની 101 લખ્યા બાદ આ સામયિક સ્પષ્ટ કરો. તેની સત્તા પંચ તરીકે અથવા સમાજ માટે યોગદાન કરવું જ પડશે ઉલ્લેખ કરો પંચાયત કર રસીદ ના કાયદા દ્વારા પંચાયતના હાલના મૂલ્યના માટે સર્વસંમતિ નિયમ શુભ શરૂઆત વર્ક અનુસાર. આ પ્રસંગે, તમામ મહેમાનો ચા, નાસ્તો અથવા તેમને Buluwa (મીઠી બિસ્કિટ કે અન્ય confectionary) મનોરંજન સજ્જ આ જમીનમાં સ્પષ્ટ કરો.
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