ब्रह्म कमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ब्रह्मकमल कमल की अन्य प्रजातियों के विपरीत पानी में नहीं वरन धरती पर खिलता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। इसकी सुंदरता तथा दैवीय गुणों से प्रभावित हो कर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियाँ हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है।माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था।
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