| | पिछले 60 साल में सरकार ने जनहित के नाम पर एक विशाल कल्याणकारी नौकरशाही को खड़ा कर दिया है ये सरकारी कमचारी जन कल्याण के नाम पर सरकारी राजस्व को हजम कर रहे हैं इस पॉलिसी का एक और उदाहरण खाद्य सुरषा कानून है, जिसे कैबिनेट ने हाल में मंजूरी दी है प्रस्ताव है कि करीब 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरवासियों को 7 किलो खाद्यात्र प्रति माह 3 रुपये प्रतिकिलो या कम पर मुहैया कराया जायेगा इस कानून के मूल मंत्र का स्वागत किया जाना चाहिए इस कानून का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि इससे सरकार की वित्तीय स्थिति पर असहनीय बोझ पड़ेगा वतमान में फेयर प्राइस शॉप से वितरित किये जा रहे खाद्यात्र पर सरकार द्वारा करीब 60 हजार करोड़ रुपये सालाना खच किये जा रहे हैं इस कानून के लागू होने पर यह ब़ढकर करीब 125 हजार करोड़ रुपये हो जायेगा खच का यह तक सही नहीं है करीब 2 करोड़ सरकारी कमियों को करीब पांच लाख करोड़ रुपये प्रतिवष वेतन दिया जा रहा है कमियों का औसत वेतन 25 लाख रुपये प्रतिवष है जबकि गरीब परिवारों को दी जाने वाली अतिरिक्त खाद्यात्र सब्सिडी मात्र 1,500 रुपये प्रतिवष है 25 लाख का वेतन पाने वाले मध्यवगीय नागरिकों द्वारा 1,500 रुपये की सब्सिडी को असहनीय बताया जा रहा है फिर भी इस कानून में कइ खामियां हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए पहली समस्या लाभाथी का चयन करने की है लाभाथी का चयन वतमान के 'बिलो' अथवा 'अबव' पॉवटी लाइन वगीकरण की तरह ही किया जायेगा तमाम अध्ययनों से स्पष्ट है कि अबव पॉवटी लाइन के अनेक लोग लाभाथी की लिस्ट में सम्मिलित हो जाते हैं, जबकि गरीब बाहर रह जाते हैं विश्व बैंक द्वारा कराये अध्ययन में पाया गया कि केवल 41 प्रतिशत खाद्यात्र ही लाभाथी तक पहुंचा है मेरा अनुमान है कि इसका तिहाइ हिस्सा यानी कुल का लगभग 30 प्रतिशत गरीब लाभाथी तक पहुंचा होगा इस रिसाव की विशालता को समझना चाहिए मान लीजिये सरकार ने 10 किलो गेहूं 15 रुपये प्रति किलो में खरीदा 5 रुपये प्रति किलो फूड कॉरपोरेशन का खच हुआ सरकार को कुल 200 रुपये खच करने पड़े इस 10 किलो में 30 प्रतिशत यानी 3 किलो गरीब को मिला बाजार से खरीदने पर गरीब को 45 रुपये देने होते राशन दुकान से उसे यह 3 रुपये में उपलब्ध हो गया उसे 42 रुपये की सब्सिडी मिली यानी 42 रुपये की राहत गरीब तक पहुंचाने में सरकार को 200 रुपये खच करने पड़े शेष 158 रुपये अबव पॉवटी लाइन या फूड कॉरपोरेशन के कमियों को मिले रिसाव की यह समस्या प्रस्तावित कानून में और गहरी हो जायेगी, क्योंकि खरीद, भंडारण एवं वितरण का आकार और ब़ढेगा सुझाव है कि प्रस्तावित 125 हजार करोड़ रुपये की रकम को देश के प्रत्येक नागरिक में 1,000 रुपये प्रति वष के हिसाब से वितरित कर दिया जाये इस रकम से बाजार भाव पर हर व्यक्ति 66 किलो गेहूं सालाना अथवा 55 किलो प्रति माह खरीद सकेगा, जैसा कि प्रस्तावित कानून में कहा गया है लाभाथी के चयन का संकट पूणतया समाप्त हो जायेगा सभी को यह रकम मिलने से गरीब को 'गरीब' की मोहर से छूट मिल जायेगी टैक्सपेयर से इस रकम को टैक्स की दर ब़ढाकर वापस भी वसूल किया जा सकता है देश के हर नागरिक की खाद्य सुरषा ही नहीं, जीवन सुरषा स्थापित हो जायेगी जरूरत पर व्यक्ति इस रकम का उपयोग दवा इत्यादि के लिए कर सकेगा नगद टांसफर में प्रमुख समस्या रकम को लाभाथी तक पहुंचाने की है हमारे सामने प्रॉविडेंड फंड का उदाहरण मौजूूद है लगभग 3 करोड़ खातेदारों का हिसाब रखा जाता है यह संस्था सफल है इसे सभी 120 करोड़ नागरिकों के खाते संभालने का काय दे देना चाहिए दूसरी समस्या नगद के दुरुपयोग की है नगद मिलने पर कइ परिवार इसका शराब पीने अथवा दूसरे कार्यो के लिए दुरुपयोग करेंगे परंतु राशन के सस्ते अनाज की भी बिक्री खुलेआम की जाती है अत: नगद देने से बहुत अधिक अंतर नहीं पड़ेगा तीसरी समस्या महंगाइ की है खाद्यात्र का दाम ब़ढाने पर नगद कम पड़ जायेगा इसका सीधा उपाय है कि नगद टांसफर की रकम को महंगाइ से इंडेक्स कर दिया जाये मेरी समझ से नगद टांसफर के विरोध में दिये जा रहे तक नाकाम हैं इन तकों का मूल उद्देश्य सरकारी कमियों की कल्याणकारी माफिया को पोसते रहने का रास्ता बनाये रखना है नगद टांसफर का विरोध लोकतंत्र के आधार पर भी नहीं टिकता है कहा जाता है कि जनता सवोपरि है यह भी कि जनता मूख और शराबी है तो क्या शराबी को हमने सवोपरि बना दिया है? इस समस्या का सही समाधान जन शिषा है दूसरी योजनाओं में नगद टांसफर अपने देश में सफल है रोजगार गारंटी योजना भी नगद टांसफर की ही है मुख्यत: इसमें काय का दिखावा किया जाता है जननी सुरषा योजना में गभवती महिलाओं को अस्पताल में प्रसव के लिए नकद पुरस्कार दिया जा रहा धनलक्ष्मी योजना में जन्म के पंजीकरण, टीकाकरण एवं बच्चे के स्कूल में जाने पर नगद पुरस्कार दिया जा रहा है इन योजनाओं की सफलता के परिणाम उपलब्ध हंै यदि गरीब द्वारा नगद का दुरुपयोग होता तो इन योजनाओं के दुष्परिणाम सामने आये होते दूसरे देशों में भी नगद टांसफर के सफल अनुभव उपलब्ध हैं फिलीपीन्स में करीब 1,000 रुपये प्रतिमाह लाभाथी को दिये जाते हैं, यदि वे टीकाकरण, अस्पताल में प्रसव एवं बच्चों को स्कूल भेजें ब्राजील में स्वास्थ चेकअप तथा स्कूल में दाखिला लेने पर नगद पुरस्कार दिया जाता है मारीशस में खाद्यात्र सब्सिडी को नगद वितरित किया जा रहा है ये अनुभव बताते हैं कि गरीब नगद अनुदान का सदुपयोग करने में सषाम है इन उदाहरणों को देखते हुए नगद टांसफर के लिए कुछ शर्ते लगायी जा सकती हैं, जैसे वोट डालना, बच्चों का टीकाकरण, स्कूल में दाखिल कराना इत्यादिl l (लेखक अथशास्त्री हैं) |
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