(कोट ने गत महीने फेसबुक और गूगल इंडिया को आदेश दिया था कि वे इस तरह की व्यवस्था करें, जिससे आपत्तिजनक सामग्री को उनके वेब-पेज से हटाया जा सके नहीं तो उनपर कारवाइ हो सकती है गूगल और फेसबुक ने अदालत को बताया कि उन्होंने दिल्ली कोट के पिछले आदेशों का पालन करते हुए काफी सामग्री को हटा लिया है कोट ने कहा कि सभी 22 कंपनियां अगले 15 दिनों में अपना लिखित जवाब देंगी कि उन्होंने किस तरह की सामग्री हटायी है केंद्रीय दूर संचार मंत्री ने भी हाल में कोट के इस फैसले से कदम से कदम मिलाते हुए विभित्र साइटों के अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश की सरकार के दबाव और कोट के फैसले के मद्देनजर इंटरनेट सेंसरशिप के विभित्र पहलुओं की पड़ताल करता आज का नॉलेज)
हाल ही में सरकार ने गूगल, याहू, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट आदि 21 वेबसाइट के शीष अधिकारियों के साथ एक बैठक संपत्र कर उनसे अपनी-अपनी वेबसाइटों पर मौजूद या भविष्य में अपलोड की जाने वाली सभी आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाने की व्यवस्था करने की बात कही सरकार ने कहा कि इन वेबसाइटों पर प्रमुख व्यक्तियों, जातीय-धामिक समूहों और उनके प्रतीकों या देवी-देवताओं व पैगम्बर के बारे में अश्लील और भ्रामक आपत्तिजनक सामग्रियां लाइव की जा रही हैं ऐसे कंटेंट से लोगों की भावनाएं आहत होती हैं, इसलिए ये सरकार का दायित्व है कि वह इस दिशा में पहल करे सरकार ने देश में इंटरनेट पर डाली जाने वाली सामग्रियों शिकायत के आधार पर हटाने की बात करके एक नयी बहस छेड़ दी है, वहीं दूसरी ओर इंटरनेट सेंसरशिप को लेकर समाज के अधिकांश समूहों, बुद्धिजीवी वर्गो सहित इन वेबसाइट मालिकों को भी खासा ऐतराज है इन वेबसाइट के अधिकारियों की दलील है कि किसी भी सामग्री को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता कि वह आपत्तिजनक है, क्योंकि ऐसा करने से अभिव्यक्ति की आजादी बाधित होगी लोकतांत्रिक देश भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है बुद्धिजीवी तबका भी इंटरनेट पर नियंत्रण की कवायद को, विचार पर प्रतिबंध लगाने की कवायद मान रहा है हालांकि, शीष अधिकार सरकार के कदम को इंटरनेट पर नियंत्रण या सेंसरशिप नहीं मान रहे हैं दूरसंचार मंत्रालय का कहना हैकि दुनियाभर में हर कंपनी को उस देश के कानून का पालन करना होता है आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाना इसी कड़ी का हिस्सा है क्योंकि भारत में इसके लिए कानून बना है l
फ्रांस के राष्टपति निकोलस सरकोजी ने अंतरराष्टीय वेब सम्मेलन में कहा था कि इंटरनेट को निरंकुश नहीं छोड़ा जा सकता इंटरनेट की तमाम खूबियों के बावजूद साइबर संसार को कुछ कानूनों की आवश्यकता है सरकोजी ने तकनीकी दुनिया के दिग्गजों के समने कॉपीराइट का उल्लंघन, निजी जानकारियों की चोरी और बच्चों को साइबर अपराधियों के चंगुल में फंसने से बचाने के लिए इन कानूनों की जरूरत का हवाला देते हुए सिविलाइह्लड इंटरनेट की अपनी परिकल्पना को भी सामने रख था l
क्या है इंटरनेट संेसरशिप
इंटरनेट संेसरशिप को इस तरह समझ सकते हैं इसके माफत हमारे कंप्यूटर स्क्रीन पर खुलने वाले वेब पेज पर प़ढी-देखी या प्रकाशित की जाने वाली सामग्रियों पर सरकार का कानूनी रूप से नियंत्रण स्थापित हो जाता है इसका कानूनी आधार मुद्रित समाग्री पर नियंत्रण के जैसा ही होता है इंटरनेट देश की भौगोलिक सीमाओं की परवाह नहीं करता भारत के यूजस को विदेशी वेबसाइट पर देखी जाने वाली सामग्रियों से वंचित किया जा सकता है छोटे स्तर पर कुछेक वेबसाइट पर आने वाली आपत्तिजनक समाग्रियों की निगरानी की जा सकती है लेकिन पूण संेसरशिप बहुत ही कठिन अथात् लगभग असंभव है हालांकि इंटरनेट जाल पूरी दुनिया में बिखरा है उनपर निगाह रखना बहुत ही कठिन है आंकड़ों के महासागर पर कब कौन सामग्री डालता है और उसका लोकेशन और उसे पकड़ाना असंभव-सा है हां, समाग्री सामने आने के बाद इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियां उसे ब्लॉक कर सकती हैं इंटरनेट संेसरशिप देश की सरकार या निजी संस्था सरकार के कहने या खुद की पहल पर करती है कोइ व्यक्ति या संस्था स्वयं या कानून के डर से ऐसा करती हैं इंटरनेट संेसरशिप के लिए विभित्र देशों में अलग-अलग कानून हैं कुछ देश में संेसरशिप कम है, तो कहीं इंटरनेट की पहुंच खबरों तक ही है l
आसान नहीं होगा सेंसरशिप
अगर वेबसाइटों की लोकप्रियता की बात की जाये, तो हमें कुछ चौंकाने वाले आंकड़े मिलते हैं उदाहरण के तौर पर दुनियाभर में इ-मेल के एक अरब 88 करोड़ यूसज हैं इन्होंने लगभग 1100 खरब इ-मेल पिछले एक साल में किये 29 अरब 42 करोड़ इ-मेल औसतन रोजाना किये जाते हैं दुनियाभर में पिछले साल तक 25 करोड़ 5 लाख वेबसाइट्स मौजूद थीं 25 अरब ट्विट्स पिछले साल सोशल साइट्स पर किये गये गैर-धामिक और असामाजिक सामग्री हटाने में आनाकानी कर रही सोशल नेटवर्किग वेबसाइटों पर भारत में मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो जाने के बाद सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह संभव है भी या नहीं? क्योंकि पोस्ट होने वाली सामग्री के निरीषाण के लिए वेबसाइट प्रशासकों को संपादकों की फौज की जरूरत होगी l
यदि अदालतों में केस चलाना होगा, तो यह सुनिश्चित करना होगा कि कानूनी दृष्टि से केस जीतने के लिए पयाप्त साक्ष्य हैं या नहीं? भारी मात्रा में आने वाले कंटेंट को सेंसर करने के लिए बड़ी संख्या में लोगों के साथ-साथ एक ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करनी पड़ेगी, जो इस काम को आसान करे इंटरनेट पर सूचना का प्रभाव तत्काल होता है हमने मध्य-पूव में देखा कि कइ देशों में तख्तापलट इंटरनेट के जरिये मददगार साबित हुआ भ्रामक जानकारियां अथव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं इसके अलावा इंटरनेट का उपयोग करने वाले को व्यक्तिगत सुरषा और मान-सम्मान बनाये रखनी भी जरूरी होगी l
खुलापन बना डर
इंटरनेट का खुलापन अब दुनिया भर की शक्तिशाली सत्ताओं को सताने लगा है शुरुआती दौर में इंटरनेट की खूबसूरती इसके खुलेपन में ही थी, जिसने तमाम नये प्रयोगों को फलने-फूलने का मौका दिया आज दो अरब से ह्लयादा लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, तो इसकी बड़ी वजह इसका खुलापन ही है हां, कुछ वजह सरकारी नियंत्रण के पषा में हैं, लेकिन वह भी संतुलन की मांग करती हैं असल परेशानी यह कि तानाशाह शासकों वाले देश ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक देशों में भी इस संतुलन का पेंडुलम सरकार के पषा में अधिक झुकता दिख रहा है l
कइदेशों में है कानून
दुनिया के कइ मुल्कों पर इंटरनेट कंटेंट पर सख्त कानून बने हुए हैं अमेरिका में सभी इलेक्टॉनिक संचार का नियंत्रण केंद्रीय संचार आयोग करता है, इंटरनेट भी इसी के अंतगत है अश्लील साहित्य पर जेल का प्रावधान है अमेरिका में सरकार ने ट्विटर जैसी कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया कि वह विकिलीक्स की-वड को ही प्रतिबंधित करें इसी तरह दबाव में कइ कंपनियों को विकिलीक्स के खाते बंद करने पड़े l
सिंगापुर ने ब्राडकास्टिंग अथॉरिटी बनायी है, जो इंटरनेट सेंसरशिप की देखरेख करती है नियम तोड़ने पर लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान है प्रॉक्सी सवर का इस्तेमाल कर कुछ वेबसाइट्स को पूरी तरह बंद रखा गया है हाल में जमनी ने मल्टीमीडिया कानून बनाया है, जिसके तहत अश्लील साहित्य के साथ सीमा संबंधी बातों पर भी सेंसरशिप लगायी है फ्रांस में वेब सेंसरशिप के लिए फ्रांस मिनिटेल की बनायी एक प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है इसके तहत निरीषाक यह देखेंगे कि इंटरनेट पर उपलब्ध कंटेंट फ्रांस टेलीकॉम करार के अनुरूप है या नहीं? कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में फ्रांस में थ्री स्टाइक कानून के तहत दोषी को सबसे पहले इंटरनेट सेवा से वंचित किए जाने जैसे प्रावधान हैं दुनिया के बाकी मुल्क अभी तक फ्रांस की राह पर नहीं चले हैं पाकिस्तान में भी इंटरनेट पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून है l
आथिक विकास में सहायक
हाल में मैकिंसे के नये अध्ययन में खुलासा हुआ है कि इंटरनेट ने आथिक विकास में महत्वपूण भूमिका निभाया है और हजारों नौकरियों का सृजन किया है भारत में ही इंटरनेट ने बीते पांच साल में जीडीपी विकास में 5 फीसदी योगदान किया है इंटरनेट पर सरकारी अंकुश का कोइ भी फैसला न केवल इसके विस्तार को बाधित करेगा, बल्कि लोगों की रचनात्मकता, प्रयोगधमिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा इसी तरह देश की प्रगति में इंटरनेट का योगदान भी प्रभावित हो सकता है l
आगे की राह
सरकार अपनी कमियों के उजागर होने से और उसके प्रचार से परेशान जरूरी है पर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ आतंकी नेटवक के इन माध्यमों का अपने उद्देश्यों की पूति करने में इस्तेमाल कर रहे हैं अगर इसे राष्टीय सुरषा से जोड़ा जाये, तो सरकार का पहल जायज ही लगता है, पर इससे भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि इंटरनेट से करोड़ों लोगों को फायदा भी हुआ है अगर आतंकी, अश्लील व धम के खिलाफ प्रचार को छोड़ दिया जाये, तो इंटरनेट ने आम आदमी की जिंदगी को बहुत प्रभावित भी किया है लेकिन दूसरी ओर इंटरनेट पर नियंत्रण की मांग का समथन करने वालों का तक है कि इंटरनेट का अविष्कार मानव ने किया है और मानव जीवन को इंटरनेट तेजी से प्रभावित कर रहा है इस दौर में इंटरनेट को निरकुंश नहीं छोड़ा जा सकता कॉपीराइट उल्लंघन, डाटा चोरी होने, आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट का इस्तेमाल और निजता प्रभावित होने जैसे मामलों की संख्या लगातार ब़ढ रही है आज इंटरनेट ने कइ पुराने कानूनों को खारिज कर दिया है, क्योंकि इंटरनेट पर कोइ सेंसरशिप नहीं है l
भारत में वेबसाइट को ब्लॉक करने की कवायद
1999 डॉन वेबसाइट : 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के डॉन अखबार के वेबसाइट को बीएसएनएस द्वारा ब्लॉक कर दिया गयाथा
2003 याहू : सितंबर 2003 में मेघालय के प्रतिबंधित अलगावादी ग्रुप से जुड़ने के आरोप में याहू को दो हफ्ते तक बंद कर दिया गया था
2006 : भारत सरकार ने 17 वेबसाइट को ब्लॉक करने का आदेश दिया एक हफ्ते तक ये बंद रहे
2007 : ऑकुट सोशल नेटवर्किग साइट को बाल ठाकरे के संबंध में आलोचनात्क कंटेट को हटाने के लिए विवश होना पड़ा
2008 : आइआरसी अंडरनेट प्रतिबंधित
2011: सरकार ने कइवेबसाइट टाइपेड, मोबांगो, क्लिकटेल को बिना सूचना दिये बंद कर दिया
दिसंबर 2011 में सरकार ने गूगल से कहा कि 358 आपत्तिजनक सामग्रियों को हटाये गूगल 51 फीसदी को हटाया
2012 में दिल्ली हाइकोट ने गूगल फेसबुक आदि को आपत्तिजनक सामग्रियों को के लिए नोटिस दिया कुछ समाग्री हटे, लेकिन गूगल ने कहा कि प्री स्क्रीनिंग कठिन है
क्या है सोपा और पिपा?
अमेरिकी संसद के निचले सदन कांग्रेस में स्टॉप ऑनलाइन पायरेसी एक्ट (सोपा) और सीनेट में प्रोटेक्ट आइपी एक्ट (पिपा) लाया गया इन कानूनों के तहत अनधिकृत कॉपीराइट सामग्री वाली साइटों तक पहुंच ब्लॉक कर दी जायेगी सामग्री के अधिकृत मालिक या अमेरिकी सरकार के पास इन साइटों को बंद कराने के लिए अदालत से आदेश मांगने का हक होगा l
भारत में संेसरशिप है चुनौती
मुंबइ हमले के दौरान आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट के इस्तेमाल से उपजी चिंताओं के बीच सरकार ने सूचना तकनीक (संशोधन) अधिनियम 2009 का संशोधित मसौदा जारी किया भारत सरकार की ओर से अप्रैल के महीने में सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमेडियरीज गाइडलाइन) नियम- 2011 लाया गया इस नियम के मुताबिक मध्यस्थ कंपनियां जैसे फेसबुक, गूगल और याहू आदि को, जो आम लोगों को अपनी मजी का कंटेट उत्पादन करने के लिए प्लेटफॉम मुहैया कराते हैं या खुद का कंटेट बनाते हैं, किसी कंटेट पर शिकायत मिलने के बाद उन्हें तुरंत जवाब देने होंगे इस कानून के मुताबिक अगर कोइ आम शख्स फेसबुक, याहू और गूगल आदि के किसी कंटेट को आपत्तिजनक मानकर शिकायत करता है, तो इन कंपनियों को 36 घंटे के भीतर कारवाइ करनी होगी इस कानून के लागू होने के बाद ब्लॉग भी इंटरमीडियरी के दायरे में होगा यानी ब्लॉग पर आयी प्रतिक्रिया के लिए संचालक जिम्मेदार होंगे इसी तरह फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किग साइट्स के उपयोक्ता भी बंधे होंगे इसके बावजूद भारत में इंटरनेट संेसरशिप के नाम पर सामग्रियों को ब्लॉक करने की कोइ बड़ी रणनीति नहीं है न ही आपत्तिजनक सामग्रियों पर नजर रखने की कोइ प्रणाली है 37 देशों में इंटरनेट की आजादी पर जारी रिपोट 2011 में भारत का स्थान 14वां था एशिया के 9 देशों में दूसरे स्थान पर है इसने सरकार को संेसरशिप और नियंत्रण का अधिकार दिया कंपनियों को निदेश दिया गया था कि सरकार के कहने पर साइट को ब्लॉक करना होगा, नहीं तो इंटरनेट सविस देने वाले को सात वष की सजा हो सकती है हालांकि, भारत को ओपननेट 2007 के सवे में कहा था कि सुरषा और इंटरनेट टूल के सेंसरशिप के मामले में भारत चयनित रणनीति अपनाता है और राजनीति और सामाजिक मामलों के लिए सेंसरशिप नहीं होता है सूचना तकनीक एक्ट 2000 में बना था, जिसमें इंटरनेट के प्रयोग और सुरषा के प्रावधान थे आपत्तिजनक समाग्री को अपराध की Ÿोणी में रखा गया था लेकिन 2008 के संशोधन के बाद इसमें इंटरनेट साइट और सामग्री को ब्लॉक करने की शक्ति मिली और आपत्तिजनक संदेश को अपराध कीŸोणी में रखा गया सरकार की योजना : सरकार की योजना देश में आठ जगहों पर उपकरण स्थापित कर वेबसाइट्स पर नजर रखने की है, जिससे के बाद आपत्तिजनक संदेशों को परीषाण करना आसान हो जाये l
कहां किस स्तर पर है संेसरशिप
इंटरनेट का एक उपनाम सूचना का सुपर हाइवे भी है यह एक आम आदमी को भी पलक छपकते सूचनाओं की अथाह दुनिया से परिचित कराती है लेकिन इस सुपर हाइवे पर सेंसरशिप लगाकर कुछ सूचनाओं को रोका जा सकता है शुरुआत में संेसरशिप के जरिये बच्चों को अश्लील समाग्रियों तक पहुंच कम करना था साथ ही देश कीमहत्वपूण सूचनाओं को गलत लोगों के हाथों में जाने से रोकना होता था कुछ सॉफ्टेवयर के जरिये विशेष साइटों को ब्लॉक कर दिया जाता है इस प्रोग्राम को वेब फिल्टर के नाम से भी जानते हैं विभित्र देशों में कुछ विषयगत मुद्दों के आधार संेसरशिप लागू है
राजनीति : देश की नीतियों को प्रभावित करने वाले, मानवाधिकारों के उल्लंघन, घामिक भावनाओं को भड़काने विचारों को रोकना है मिस्र, चीन, वमा, वियतनाम में इस तरह का संेसरशिप लागू है
सामाजिक : सेक्सुअलिटी, जुआ, डग और अन्य चीजों को ब़ढावा देने वाले विचारों पर रोक यूएसए, क्यूबा, यूके, जमनी, कजाकिस्तान, ऑस्टेलिया में इस तरह का संेसरशिप लागू है
सुरषा: युद्ध भाड़काने वाले पेज ट्यूनिशिया में इस तरह का संेसरशिप है
इंटरनेट टूल : इ-मेल की सुविधा और अनुवाद आदि सुविधा देने वाले वेब पर रोक सीरिया और इरान में इस तरह का सेंसरशिप लागू है इसी तरह कुछ अन्य देशों में भी कड़ा कनून है जैसे बेलारूस, म्यांमार, उत्तरी कोरिया, सऊदी अरब, तुकेमिस्टान, उजबेकिसतान लेकिन तामाम नियंत्रण के बावजूद इन देशों में इंटरनेट का बूम है l
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