बोहरा समाज : हिंदू धर्म की तरह हर्ष के साथ मनाते हैं दीपोत्सव
यूं तो दीपावली को हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाता है, लेकिन अहिल्या नगरी की गंगा-जमुनी तहजीब में बोहरा धर्मावलंबी भी दीपावली सहित अन्य त्योहार उसी उत्साह से मनाते हैैं, जैसे उनके त्योहार हों। दीपोत्सव बोहरा समाज के प्रवक्ता जौहर मानपुरवाला अपने पूरे परिवार के साथ मनाते हैं और खुशियां अन्य परिवारों से मिलकर बांटते हैं।
गुर्जर समाज और बोहरा समाज में किस तरह मनाया जाता है दीपोत्सव...
धन्वंतरि पूजन : आज
धनतेरस है। शहर में कई जगह धन्वंतरि का पूजन होगा। श्री वैष्णव हॉस्पिटल
तिलक नगर में सुबह 11 बजे प्रबंध समिति के मंत्री कैलाशचंद्र नागर के
सान्निध्य में पूजन होगा। वहीं आयुर्वेद संस्थान प्रीतमलाल दुआ सभागृह में
दोपहर दो बजे सामूहिक पूजन करेंगे।
धनतेरस
धनतेरस
पर धातु खरीदने की जो मान्यता है, उसे हम भी मानते हैं। सोना-चांदी की
वस्तुएं खरीदने के अलावा बर्तन भी शगुन के तौर पर खरीदते हैं।मिठाई बनाने
के साथ ही घर में रोशनी की जाती है। पूरे परिवार के लिए नए कपड़े खरीदे
जाते हैं। रात में दीप जलाकर पटाखे फोड़ते हैं।
रूप चौदस
अमावस्या
के पहले की रात हमारे समाज में भी विशेष मानी जाती है।रात में विशेष नमाज
अदा की जाती है। पटाखे फोडऩे के साथ ही पूरा परिवार एक साथ बैठकर भोजन करता
है और खुशी मनाता है। रात में घरों में दीए लगाए जाते हैं।
अमावस्या
बोहरा
समाज के प्रवक्ता जौहर मानपुरवाला ने बताया, कई पीढिय़ों से हमारा परिवार
दीपोत्सव मनाते आ रहा है।यह माह की पहली रात होने से काफी महत्व होता
है।विशेष नमाज के बाद हम दीपोत्सव की तैयारी करते हैं और पूरे घर में रोशनी
करने के साथ ही दीपक लगाते हैं। इसके बाद पड़ोसियों के साथ मिलकर पटाखे
छोड़ते हैं और मुंह मीठा कर एक-दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं।
पड़वा
माह
का पहला दिन होने से वैसे ही काफी शुभ होता है। इस दिन हिंदू भाइयों के घर
व दोस्तों के यहां जाकर मिलने और खुशियां बांटने का दौर चलता है।मिठाई
लेकर मिलने जाते हैं और
गले मिलकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं।
भाईदूज
निजी
तौर पर मैं और मेरा परिवार भाईदूज मनाता है। मेरी हिंदू बहनें मुझे घर पर
भोजन के लिए बुलाती हैं। टीका लगाकर आरती उतारती हैं। अन्य परिवार की तरह
मैं भी बहनों को तोहफा देता हूं।
इधर गुर्जर समाज : बेलड़ी सजाकर सामूहिक तर्पण करता है परिवार
गुर्जर
समाज में दीपावली का काफी महत्व है।धनतेरस पर सोना-चांदी खरीदते हैं।
अमावस्या को सबसे पहले पितरों को याद करने की परंपरा है। सुबह छांठ-डांब
भरकर और बेलड़ी बनाकर सामूहिक तर्पण किया जाता है। शाम को पारंपरिक वेशभूषा
में महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजा का भी महत्व है।
धनतेरस
दीपोत्सव
की शुरुआत धनतेरस से होती है। मांडना और रंगोली बनाकर महालक्ष्मी की
अगवानी की जाती है। तेरस पर सोना-चांदी और नया बर्तन खरीदना शुभ माना जाता
है। धन्वंतरि माता की पूजा कर लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना की जाती
है।
रूप चौदस
रूप
चौदस पर महिलाएं सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाकर स्नान करती हैं। इसके बाद
व्यंजन बनाए जाते हैैं। सुबह ही दीपक जलाकर पटाखे फोडऩे के साथ ही पूरे घर
को सजाती हैं।
अमावस्या
गुर्जर
समाज के संरक्षक गोपाल सिंह गुर्जर व अध्यक्ष लक्ष्मण खाका ने बताया,
परिवार के सभी सदस्य सुबह पितरों को सामूहिक रूप से श्रद्धा-सुमन अर्पित
करते हैं। इसे छांठ-डांब भरना भी कहते हैं। जलाशय पर सामूहिक रूप से एकसाथ
जाकर हरी दूब की बेलड़ी बनाकर डांब को गन्ने के पत्ते, खाखरे की डाली से
बनाई जाती है। इस बेलड़ी को जल में सभी सामूहिक तर्पण करते हैं। शाम को
पारंपरिक वेशभूषा में महालक्ष्मी का पूजन करते हैं।
पड़वा
महिलाएं
सुबह उठकर घर की झाड़ू निकालती हैं। घर के बाहर कचरा झाड़ू के साथ छोड़कर
दीपक जलाते हैंं। किसान व पशुपालक अपने पशुधन को शृंगारित कर पूजन करते
हैंं। देवधरम टेकरी पर पशुओं के साथ परिक्रमा करवाते हैं। गोवर्धन पूजा भी
होती है। इस दिन परंपरागत हीड़ वाचन भी किया जाता है।
भाईदूज
बहनें
अपने भाइयों को सुसराल में भोजन के लिए बुलाती है। भाइयों की आरती उतारकर
मंगलकामनाएं भी करती हैं। भाई बहनों को उपहार देते हैं।
दीपोत्सव
की तैयारियां समाज के हर तबके में पूरे उत्साह के साथ की जा रही हैं।
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