सुबह उठकर करें श्री कृष्ण का बताया एक काम, दिन बन जाएगा
दिन की शुरुआत जैसी होती है उसका असर आपके पूरे दिन के काम पर होता है। इसलिए जरुरी है कि आप दिन की शुरुआत इस तरह से करें कि सब कुछ आपके अनुकूल हो जाए। आप जो भी काम करें उसमें आपको सफलता मिलती जाए। इसके लिए आपको कोई खर्च करने की जरुरत नहीं है बस हर दिन सुबह उठकर भगवान श्रीकृष्ण के बताए एक आसान उपाय को ध्यान रखना है।
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा। मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।। यानी सप्तर्षि मेरे ही मन से उत्पन्न हुए हैं और मेरी ही विभूति हैं। जो व्यक्ति प्रातः काल उठकर इनके नाम का ध्यान करता है उनका पूरा दिन उत्साह और आनंद में बीतता है।
यह कथा उन दिनों की है जब महाभारत युद्घ की स्थिति बनने लगी थी। भगवान श्री कृष्ण उन दिनों पाण्डवों की ओर से धृतराष्ट्र के दरबार में पधारे। दुर्योधन ने श्री कृष्ण के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। नाराज हो कर भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर भोजन करने से इंकार कर दिया। भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्त विदुर जी के घर भोजन करना स्वीकार किया।
जब भगवान श्री कृष्ण विदुर जी के घर पहुंचे। उस समय विदुर जी की पत्नी स्नान कर रही थी। दरवाजे पर आते ही श्री कृष्ण ने आवाज लगायी। फिर क्या था, श्री कृष्ण की मोहक आवाज सुनते ही विदुर जी की धर्मपत्नी सुध बुध खो बैठी। भक्ति में लीन वह जिस अवस्था में थी वैसे ही कृष्ण के स्वागत में द्वार पर आ गई।
भगवान श्री कृष्ण ने भक्ति में लीन विदुर जी की पत्नी को देखकर अपना पितंबर झट से उनके ऊपर डाल दिया। इसके बाद विदुर जी की पत्नी को होश आया और वह लज्जित हो गई। कुछ समय बाद कृष्ण की भक्ति में लीन विदुर की पत्नी ने फिर से दूसरी गलती कर दी। भगवान को केला खिलाने बैठी तो केला नीचे फेंकने लगी और श्री कृष्ण को छिलके खिलाने लगी।
भगवान भक्त की भावना देखते हैं सो उन्होंने भी कुछ नहीं कहा और चुपचाप केले के छिलके खाते गए जैसे भगवान राम ने सबरी के जूठे बेर खाए थे। जब विदुर जी ने यह लीला देखी तो दौरे-दौरे आए और स्वयं अपने हाथों को श्री कृष्ण को केला खिलाकर पत्नी के किए गलती की क्षमा मांगने लगे।
भगवान ने कहा कि मुझे तो छिलके में भी केले का आनंद मिल रहा था इसलिए आप किसी प्रकार का अपराध बोध नहीं करें। मैं आपकी सेवा भक्ति से संतुष्ट हूं। इस कथा का उल्लेख गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण पत्रिका में किया गया है।
अगर आपने भगवान श्री कृष्ण की मूर्ती या कैलेंडर पर बने चित्र पर थोड़ा सा भी ध्यान दिया होगा तो आपने यह जरुर देखा होगा कि उनके शरीर का रंग नीला है। क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि श्री कृष्ण के शरीर का रंग नीले रंग का क्यूं है? हमें पता है, कि आपके मन में यह सवाल एक बार तो जरुर उठा होगा। तो चलिये पता लगाते हैं कि श्री कृष्ण का रंग नीला कैसे पड़ा।
इनके नीले होने के पीछे काफी सारी कहानियां बताई जाती हैं। संस्कृत में कृष्णा का मतलब होता है, गहरे रंग का। आइये जानते हैं कृष्ण के इस गहरे रंग का राज।
पूतना एक राक्षसी थी जिसे श्री कृष्ण को मारने का काम थामा गया था। उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। इसी विष को पीने से श्री कृष्ण का रंग नीला पड़ गया था।
दूसरी कहानी में बताया जाता है कि यमुना नदी में एक कालिया नामक सर्प रहता था, जिसने पूरे गोकुल गांव में अपना आतंक फैला रखा था। तो जब श्री कृष्ण ने इस सांप से लड़ाई की तो, उस सांप से निकले नीले रंग के विष ने श्री कृष्ण के शरीर का रंग पूरा नीला कर दिया।
भगवान कृष्ण प्रकृति के रंग को दर्शाते हैं। आकाश, प्रकृति और समुद्र इतनी सारी चीज़ें रंग में नीली हैं। यह रंग मनुष्य को मन की शांति और स्थिरता प्रदान करता है। भगवान का यह नीला रंग उनके चरित्र की विशालता का प्रतीक और उनकी दृष्टि की गहराई है। इसलिये भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला है।
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, मैं उससे प्रेम करता हूं, जो हर प्राणी के प्रति करुणा की भावना रखकर उनसे प्रेम करता है, और उनकी सेवा करता है। ईसा ने कहा है, जो पड़ोसी से, अभावग्रस्त से प्रेम करता है और उसकी सहायता करता है, मैं उससे प्रेम करता हूं। अरब की एक प्राचीन कथा है। एक रात अबू ने देखा कि एक फरिश्ता किताब में कुछ लिख रहा है।
बू ने फरिश्ते से पूछा, क्या लिख रहे हो? उसने बताया, मैं उन लोगों के नाम लिख रहा हूं, जो ईश्वर से प्रेम करते हैं। अबू ने जिज्ञासावश पूछा, क्या मेरा नाम इस सूची में है? फरिश्ते ने कहा, नहीं। अबू ने फिर कहा, कोई बात नहीं। तुम मेरा इतना काम कर दो कि मेरा नाम उस सूची में लिख दो, जो ईश्वर के बंदों से प्रेम करता है। फरिश्ते ने उसका नाम लिख लिया और गायब हो गया।
अगली रात फरिश्ता फिर आया। उसने अबू को उन लोगों के नाम दिखाए, जिन्हें ईश्वर ने अपना आशीर्वाद दिया था। अबू यह देखकर झूम उठा कि उसका नाम सूची में सबसे ऊपर था।
अबू को अब यकीन हो गया कि खुदा उसी से प्रेम करता है, जो उसके बंदों से प्रेम करता है। खुदा को खुश करने के लिए, उसका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसके बंदों की बस्ती से गुजरना पड़ता है। अतः हम सबको हमेशा ईश्वर के बंदों से प्रेम करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
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