Tuesday, September 30, 2014

गणपती बाप्पांच्या आरतीनंतर after Ganpati aarti

आरतीनंतर म्हणायचे मराठी श्लोक 



सदा सर्वदा योग तुझा घडावा । (Sada Sarvada Yog tuza ghadava)
तुझे कारणी देह माझा पडावा ।
उपेक्षु नको गुणवंता अनंता ।
रघुनायका मागणॆ हेचि आता ॥

कैलासराणा शिव चंद्रामौळी ।(Kailasrana shiv chandramauli)
फणीद्रं माथा मुकुटीं झळाळी ।
कारुण्यसिंधु भवदु:खहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥

उडाला उडाला कपि तो उडाला(udala udala kapi to udala)
समुद्र उलटोनी लंकेशी गेला
लंकेशी जाऊनी चमत्कार केला
नमस्कार माझा त्या मारूतीला

ज्या ज्या ठिकाणी मन जाय माझे।(jya jya thikani man jay maze)
त्या त्या ठिकाणी निजरूप तुझे॥
मी ठेवितों मस्तक ज्या ठिकाणी।
तेथें तुझे सदगुरू पाय दोन्ही॥

अलंकापुरी पुण्यभुमी पवित्र, (Alankapuri punyabhumi pavitra)
तिथे नांदतो ज्ञानराजा सुपात्र, 

जया आठविता घडे पुण्यराशी, 
नमस्कार माझा ज्ञानेश्वरासी.

मोरया मोरया मी बाळ तान्हे ।(Morya Morya Mee Bal Tahne)
तुझीच सेवा करु काय जाणे ॥
अपराध माझे कोट्यानु कोटी ।
मोरेश्र्वरा बा तू घाल पोटी ॥

स्वस्ति श्रीगणनायकम् गजमुखम् मोरेश्वरम् सिद्धिदम्
बल्लाळम्  मुरुडम् विनायक मढम् चिंतामणींस्थेवरम्
लेण्याद्रिम् गिरिजात्मजम् सुवरदम् विघ्नेश्वरम् ओझरम्
ग्रामो रांजणसंस्थितो गणपती: कुर्यात सदा मंगलम्


गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्‍वरः । 
गुरुस्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । 
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

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How to chant AUM or OM? How OM mantra affects our body and soul?

जीवनीशक्ति विशेष  

 
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ शिव ॐ शिव ॐ हरि बोल ..... ॐ... ॐ... ॐ.. पांडुरंगा ॐ... हर हर महादेव ॐ .....   
सदा सर्वदा योग तुझा घडावा | तुझे कारनी देह माझा पड़ावा | 
उपेक्षु नको गुनवंता अनंता | रघु नायका मागने हेची आता |
ज्या ज्या ठिकाणी मन जाय माझे | त्या त्या ठिकाणी निज रूप तुजे | 
मी ठेवितो बांघट ज्या ठिकाणी |  तेथे विठोबाचे रुपाय वाणी ||
जय जय रघवीर समर्थ... जय जय बम भोलेनाथ... नम पार्वती पतये हर हर महादेव... | अब लबा श्वास लो .. जितना गहरा ले सकते और मैं भगवान का हूँ... भगवन मेरे हैं और भगवान कौन हैं ? सबका आत्मज्योति शिवस्वरूप | क्या करना हैं?  दो बार ऊँ.. ऊँ.. ऊँ... फिर से गहरा साँस लो... जितना ज्यादा गहरा साँस ले सकते, इससे जो भी आप ध्यान भजन साधना करते, उसका प्रभाव कई गुना हो जायेगा | गहरा साँस लिया.. मैं ईश्वर का हूँ... ईश्वर मेरे हैं | वो अंतरात्मा परमेश्वर ॐ स्वरुप, वही शिव, वही पांडुरंग हैं, वही राम हैं, हजार-हजार नाम उस प्यारे प्रभु के ऊँ.. ऊँ.. ऊँ... बच्चों को सिखाओगे तो बच्चों की स्मरणशक्ति बढ़ेगी |  ये पंचम केंद्र है आपको कभी सुनने को नहीं मिला होगा ऐसी एक बात सुनाता हूँ | ५० साल में मैंने अभी थोड़े दिन पहले से इस रहस्य को सुना.. जाना हैं | आपकी जीवनीशक्ति जितनी बलवान होती हैं उतना शरीर स्वस्थ  रहता हैं | और बलवान बनाने के लिए जितना आप जीवनीशक्ति के केन्द्रों को जानते किस समय कौन से केंद्र में जीवनीशक्ति होती हैं | तो फिर उस समय उस केन्द्रों को जैसे जिस का राज्य होता उस राज्य के मंत्री की चलती हैं साइन-वाइन वैसे |  हमारे शारीर में १२ जगह पर जीवनीशक्ति का राज्य होता हैं | हर दो घंटे में एक एक अंग मे विशेष प्रभाव होता है | अगर ये बात जानकर फायदा उठाये तो मैं ७५ साल का हूँ और कितना-कितना परिश्रम और कितना- कितना कार्यक्रम होता हैं | तो मैं थोडी चीजे बाते जान लेता हूँ |  तो मैं चाहता हूँ, आप भी ये बाते जान लो; तो आप भी दीर्घजीवी रहोगे और आपके द्वारा बड़े-बड़े काम हो | 
२४ घंटे हमारी जीवनीशक्ति बारह केन्द्रों में २ - २ घंटे विचलन करती है | जैसे सुबह ३ से ५ हमारी जीवनीशक्ति फेफड़ो में होती है | उस समय ४ से ५ के अंदर अगर आप प्राणायाम कर लेते है, तो आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति, अनुमान शक्ति, शौर्यशक्ति विकसित होगी | जिनको दमे की बीमारी हो, टी. बी. की बीमारी हो उनको तो खास इस टाईम में प्राणायम करना चाहिए और प्राणरोग आरोग्य का मंत्र जप करे.. भीतर रोके.. श्वास और बाहर रोके दवाई खा-खा के फु.. फु.. कर-कर के लंग्स कमजोर हो गए | लेकिन ये फेफसों की राजसत्ता होती है | उस समय काम कर ले चंगा होने में आसानी होगी | फिर ५ से ७ आपकी जीवनीशक्ति बड़े आंत में होती है तो ५ से ७ के बीच अगर आपने थोडा बहुत पानी पी लिया.. गुन-गुना सा पानी ज्यादा ठंडा नहीं ज्यादा गरम नहीं, जंप-बंप मारे और शौच जाने का संकल्प किया तो आदत हैं, ९ बजे जाने की आदत से तो पेट ख़राब रहेगा | जो सुबह ७ के बाद शौच को जाता है उसके पेट की गड़बड़ी बनी रहती है | पक्का कितना भी उपाय इलाज करेगा लेकिन पेट की गड़बड़ी रहेगी | तो ५ से ७ बजे के बीच बड़े आंत  में जीवनीशक्ति होती है | उस समय व्यायाम, घुमना आदि निपट ले और ७ से ९ जीवनीशक्ति आमाशय में होती है | आमाशय में बड़ी आंत की सफाई करने की ताकत होती है | भोजन, पाचन आदि आसानी से हो, सैंकडों पाचन रोगों से बचाव होगा | अगर ७ से ९ के बीच आपने हल्का-फुल्का पेय पदार्थ लिया, फिर ९ से ११ आपकी जीवनीशक्ति प्लीहा अग्नाशय में होती है, जठरा में होती है | उस समय पाचक रस ज्यादा बनता है | पाचन में मदत मिलती है, पाचन ठीक नहीं हुआ तो कच्चा रस बनता है | फिर शरीर मोटा, कमर में दर्द, थकान, आलस्य, अकारण शरीर में कुछ ना कुछ गड़बड़ी होती है | ९ से ११ आपकी जीवनीशक्ति प्लीहा  अग्नाशय में जीवनीशक्ति का साम्राज्य होता है | उस समय पाचन रस ज्यादा बनने से ९ से ११ के बीच भोजन कर लेना | डायबीटीज वाले को तो खास उस समय भोजन करन चाहिए और जिनका पाचन कमजोर है उनको भी भोजन कर लेना चाहिए | कमजोर पाचन को तेज करना हो तो १ – २ - ३  खजूर रात को भिगा दे, होली तक होली के बाद नहीं | वो मसलके दूध में सुबह-सुबह पी ले | ७ से ९ तो आँतो की शक्ति आँतो का रस ज्यादा बनेगा | पाचन ज्यादा होगा और भोजन के बीच  एक ग्लास गुनगुना पानी रख दे | बीच-बीच में दो-दो घूँट पीता जाय..भोजन के बीच कई-कई बार पानी घूँट-घूँट पिते रहना चाहिए भोजन सुपाच्च्य हो जायेगा | ध्यान देना ९ से ११ के बीच भोजन कर लेना चाहिए और डायबीटीज वाले को तो खास | ११ से १ में जीवनीशक्ति ह्रदय में रहती है | अगर उससमय भोजन करोगे तो मानवी संवेंद्नाएँ, स्नेह, प्रसन्नता आदि का गला घुट जायेगा और यही कारण है | 
सत्संग पहुंचाना ये बहुत बड़ा भारी समाज की सेवा है, ईश्वर की भी सेवा है, मानवता की सेवा है | सत्संग पहुंचाना जिसके जीवन में सत्संग का प्रभाव नहीं,  सोने की लंका के बाद भी वासनानिवृत्ति नहीं | अपनी पत्नी है, राज्य की सुंदरिया है, नाचने गानेवाली फिर भी सीताजी को लाकर रावण ने क्या कर के दिखाया | आज के मानव को ये रावण  का जीवन समझने के लिए बहुत-बहुत प्रेरणा देता है |  और शबरी का जीवन, तुकाराम का जीवन, एकनाथ महाराज का जीवन, ज्ञानेश्वरजी का जीवन, सावता माली का जीवन देखो तो बाहर कुछ सामग्री नहीं है  | लेकिन कितनी तृप्ति, कितना आनंद है | जगत में सर्वप्रकारे सुखी कोण आहे? मनातुनि शोधुनी पाहे गौर में गए तो अंदर से अनुभव हुआ, दृष्टी ज्ञानमयी कृत्वा पश्येत हरि देव जगत है | तो ११ से १ के बीच भोजन करेंगे तो भोजन के रसो में, स्वादों में और भोजन के पाचन में ह्रदय उलझेगा | ह्रदय का विकास रुक जायेगा, आदमी निर्दयी हो जायेगा, स्वार्थी हो जायेगा, तनाव और टेंशनवाला हो जायेगा | ११ से १ के बीच भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए | लेकिन आज कल आदत बन गई है | नेपाली लोग और भी लोग जिनकी तो प्राण उर्जा ह्रदय  अपने में जो ग्रहण करने की शक्ति है, वो तो पाचन में जाती है | जब स्कूल चलती है, तो बच्चा सोता है | जब सोने का समय होता है, तभी स्कुल जाता है |  तो क्या करे वर्क वाहिल यु वर्क, प्ले वाहिल यु प्ले, थिस ईज द वे टू बी हैपी एंड गे | जिस समय जिसकी सत्ता है, उस समय वो काम कर लेना चाहिए |  तो ११ से १ ह्रदय के विकास की सत्ता है, ह्रदय विकसित है, ऐसे किस्से, सतकर्म, सतभाव, भावग्राही जनार्धना | १ से ३ जीवनीशक्ति छोटे आँत में होती है | उसका मुख्यकार्य है जो भोजन ११ बजे तक खाया गया उसका रस बना वो पोषक तत्वों को अपने और खींचता है | पुरे शरीर  को देता है | तो १ से ३ में अगर भोजन खाया तो पोषक तत्व कहाँ मिलेंगे | जैसी कच्ची रोटी, कच्चा चावल, कच्ची दाल अच्छा नहीं लगता | ऐसे पोषक तत्वों की जगह पर बीमारी करने वाले कच्चे रस, कई बीमारीयां इसी कारण होती है | तो १ से ३ अथवा ११ से १ भोजन करना बीमारीयों को सर्टिफिकेट देना की तुम यही रहो | ३ से ५ जीवनी शक्ति मूत्राशय में रहती है | उस समय पानी पी लेना पत्थरी की बीमारी नहीं होगी | डायबीटीज की बीमारी जल्दी नहीं होगी और बुढ़ापे में पेशाब सबंधी तकलीफे होती है | वो सब नहीं होगी और जिनको भी पत्थरी है भूलकर भी ऑपरेशन नहीं करना चाहिये | चाहे पेशाब की जगह, किडनी की जगह, लीवर की जगह पत्थरी हो, कोई ऑपरेशन की जरूरत नहीं | पत्थरी चट पौधा है अपने आश्रम में | पौधे की ऐसी करामत है की उसके एक पत्ते में दो टुकड़े कर दो और बो दो तो उसमे से एक-एक पौधे-पौधे तैयार हो जाते | दो-दो पत्ते खावे थोड़े दिन पत्थरी चट हो जावे | कई लोगो को फायदा हुआ है तो पत्थरी का ऑपरेशन नहीं करना चाहिये | १ से ३ छोटी आंत में ३ से ५ मूत्राशय में जीवनीशक्ति होती हैं | उस समय पानी पी लेना चाहिए और पानी पी के तुरंत बाथरूम नहीं जाना बाथरूम जा के तुरंत पानी नहीं पीना | ५, ७, १० मिनट का अंतर होना | ५ से ७ जीवनीशक्ति गुर्दे में होती है | शाम का भोजन अगर ५ से ७ के अंदर कर लेता तो किडनी और कान की तकलीफ कभी होगा ही नहीं | और ७ से ९ के बीच  जीवनीशक्ति मष्तिष्क में रहती है | उस समय धार्मिक लोग शास्त्र पढ़े, पाठ, श्लोक, गीता, रामायण, उपनिषद, कंठस्त, आसनी से करेंगे और बच्चों को कम मेहनत में याद रह जायेगा | ५ से ७ के बीच स्पेशल ट्यूशन की जरुरत नहीं | परिवार वाले उनको थोडा पढ़ा लेंगे हो जायेगा | तो ७ से ९ जीवनीशक्ति मस्तक में रहती हैं | मस्तक संबंधी काम उसी समय कर लेना चाहिये | और ९ से ११ जीवनीशक्ति मेरुरज्जु में रहती है, उसका साम्राज्य होता है | ९ से ११ जीवनीशक्ति मेरुरज्जु में रहती है उस समय की नींद पूर्ण आराम देती है | थकान मिटाती है | ११ से १ में जीवनीशक्ति पित्ताशय में होती है | पित्त का संचय मानसिक नियंत्रण करती है | अगर ११ से १ बीच टी.वी. देखता रह जायेगा तो चिडचिडा हो जायेगा | पित्त सबंधी रोग होगा | पित्त और वायु मिलके हार्टअटक बनता है, नेत्र सबंधी रोग होंगे, आँख जलेंगे, अधिक मासिक आयेगा, कई बार हो जायेगा, ये सब बीमारी होगी | अगर १ से ३ के बीच कोई जगता है रात में तो उस समय जीवनीशक्ति लीवर में रहती है | लीवर शरीर का खास अंग है | 
 मेरी माँ ८८ साल की हो गई थी, लीवर ख़राब, किडनी ख़राब, पाचन ख़राब, दो मनके घिसक गये | डॉक्टर बोले २४ घंटो से ज्यादा नहीं जी सकती | मैंने मंत्र दिया २४ दिन हो गये, २४ महिने हो गये, ६०, ७०, ८० महिने हो गये | अमेरिका के डॉक्टर चकित हो गये माताजी तुम तो एक दिन में मरनेवाली थी ?  मरनेवाली-मरनेवाली कई डॉक्टर बोलते? उसमे से तो कोई तो चले गये | मेरे पास गुरु का मंत्र है, मेरे को गुरुजी मानती थी | माँ चली गई तो मैंने अपने कंधे पर उनकी अंतिम यात्रा कराई | मैं तो उनका पुत्र था लेकिन उनकी बड़ी श्रध्दा थी कुछ गुरूजी ने बताया की ये संत बनेंगे ऐसा है | 
१ से ३ जागोगे तो बड़ा घाटा है उस समय शरीर पूरा विश्राम मिलेगा, गहरी निद्रा होगी, तो शरीर को नई कौशिका बनाने का अवसर मिलाता है | अगर नई कौशिका नहीं बनी और पति-पत्नी का व्यवहार है, वो हुआ तो जो कौशिका हैं वो कम होगी और बुढापा जल्दी आयेगा | मैं ७५ साल का जवान हूँ | लोग तो ५० साल में बूढ़े हो जाते बेचारे को पता नहीं न ऐसा नहीं मैं खाता हूँ वो नहीं खाते? वो खाते पीते हैं लेकिन टाइम टेबल नहीं | खाने के पहले प्रसन्न होना चाहिए दूसरा एक खास काम करता हूँ | मैं क्या करता हूँ की सुबह कमरा बंद कर देता हूँ,  गौचंदन अगरबत्ती जलाता हूँ, उस पे सिर में डालने तेल अथवा गाय का घी के बुँदे डालता हूँ | तो एक टन उर्जाई प्राणवायु बन जाता है | तो उसीमे में आसन करता हूँ कटिबद्ध वस्त्र, कच्छा जांघिया बाकि खुला बन तो रोमकूप से भी जीवनीशक्ति लेता हूँ | हम १ किलो भोजन करते, २ किलो पानी लेते है, लेकिन १० किलो जीवनीशक्ति तो श्वास से ही लेते है | तो पावरफुल श्वास है ना ! तो वो शरीर कहीं भी गड़बड़ी हो तो उसे मार भगाते हैं | ११ से १ जगोगे तो मानसिक विक्षेप हो जाएगा और १ से ३ पति पत्नी का व्यवहार करना बहूत घाटा है | जैसे आमवस्या, पूर्णिमा को पति-पत्नी का संभोग का काम करनेवाले को विकलांग संतान ही पैदा होगी | अगर गर्भाधान नहीं हुआ तभी भी अमावस्या और पूनम को जीवनीशक्ति का ह्रास ज्यादा होने से कोई न कोई बीमारी पकड लेती है | 
तो १ से ३ भूलकर भी संसार व्यवहार करना नहीं चाहिये | फिर ३ बजे से वही फेफसो में जीवनीशक्ति | 
अब ये शिवरात्री की रात है | आज ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा योग बनता है | इस समय शिवरात्री को अगर आपने उपवास किया है और बेलपत्र वायु दोष को दूर करते है, मन, प्राण को ऊपर करते है | नाम तो होता है शिवजी को बेल पत्र चढा ले लेकिन हमारी जीवनीशक्ति उर्जा और प्राण उर्ध्वगामी करते है | जिसको गैस ट्रबल हो १ लीटर पानी में ३ बीली पत्ते कुचल के, काली मिर्च डालके पौना लीटर पानी करे | २ लीटर पानी का डेढ़ लीटर पानी करे और वही पानी पी ले गैस सबंधी तकलीफे चली जायेगी | लेकिन आज का दिन तो गजब का है | शिवरात्री के दिन भगवान शिव का बीज मंत्र ‘ॐ बम बम बम’ अगर सवा लाख जप करता है, तो गठियां की बीमारी से बिस्तर पे पड़ा है डॉक्टर ने बोला अब इसका इलाज नहीं है लेकिन एक दिन में वो दौड़ने लग जायेगा | बम बम मंत्र में ताकत है | 
मेरी माँ को बोला २२ घंटे २० घंटे लेकिन मेरे माँ तो चलने लगी | ८० महीने हो गए, ८६ साल में ये सब ख़राब हो गया था | उस के ९६ साल तक जीयी मेरी माँ मेडिकल रिपोर्ट अपटूडेट हो गयी | लेकिन दवा काम नहीं करती ऑपरेशन  काम नहीं करता | 
वो मंत्रशक्ति से काम लिया तो शिवरात्री की रात ‘ॐकार’ मंत्र का जप | अभी तुमको कराता हूँ और तुम जाके अपने बच्चो से कराना, बच्चे अच्छे बनेंगे, मार्क तो अच्छे लायेंगे लेकिन उनकी अकल भी बहूत ऊँची हो जाएगी | ये ॐकार मंत्र है | एक होती है खोज, दूसरा होता है निर्माण, खोज उसकी होती है जो पहेले नहीं था | पहेले था उसकी खोज होती है  और निर्माण उसका होता है जो पहेले नहीं था | भगवान नारायण ने ब्रम्हाजी का निर्माण किया था लेकिन ॐकार मंत्र का निर्माण भगवान नारायण ने नहीं किया ॐकार मंत्र की खोज की | ॐ कार मंत्र की महिमा के २२ हजार श्लोक है | अंग्रेजी में ३ बड़ी-बड़ी पुस्तकों का अनुवाद करके थीयोसोफिकल सोसायटी वालो ने अपने पास रखे | ॐकार जल्दी-जल्दी जपो तो पाप नाशिनी उर्जा होती है | दीर्घ जपो तो कार्य साफल्य उर्जा पैदा होती है और प्लुत जपो तो परमात्मा में विश्रांती मिलाती है | आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार होता है | और १२० माला ॐकार की जप करे ७ सप्ताह ५० दिन में सात जन्मो की कंगालियत भाग जाये | सात जन्मो तक सात खानदानीयो तक लक्ष्मी अखंड रहेगी | लेकिन ये भी छोटी बात है १२० माला जप करे तो मन चाह भगवान १ साल के अन्दर प्रकट हो जायेगा | अगर मन चाह भगवान नहीं चाहते और वास्तविक में जो भगवान है उसको चाहते हो तो सद्गुरु के द्वार पर ये जप भेज देगा सद्गुरु बतायेगा की वास्तविक भगवान ये है | फिर मन से ऐसे ऐसे भगवान प्रकट हो जाने भावग्रही जनार्धना हिंदु धर्म भगवान के १००० नाम इसाई और इस्लाम ने ९९ और १०१ नाम खोजे पारसी ने २७ अधिक खोजे लेकिन हिंदु धर्म ने १००० नाम खोजने जे बाद भी कहा हरि अनंत, हरि की लीला भी अनंत नाम भी अनंत और हर एक नाम की महिमा अनंत है | जैसे आप ॐ बोलते है उसकी लम्बी व्याख्या है | जैसे आप हरि बोलते है, तो हरि किसको बोलते है, जो हर समय में है, हर स्थान में है, हर देश में है, हर काल में है, जिससे आपका वियोग नहीं होता | उस चैतन्य आत्मा का नाम हरि है | शरीर का तो वियोग होता है लेकिन आत्मा का वियोग नहीं होता मरने के बाद व्यक्ति अपने शव को देखता है | दो – सवा घंटे के बाद तो सब अपना दीखता है | जैसे दुसरे अपने मुर्दे शरीर को देखते है | वैसे अपन भी देखते तो अपन थोड़े मरे तो आप मृत्यु का भय निकाल देना  | भगवान आपको नहीं मार सकते क्योंकि आपका आत्मा और भगवान का आत्मा है | जैसे घड़े का आकाश, महाआकाश, तरंग का पानी और समुद्र का पानी एक है | ऐसे जीवात्मा और परमात्मा की चेतना एक है तो मरने से डरो नहीं, दुसरे को डरावो नहीं | और जो आत्मा अमर है तो ज्ञानस्वरुप भी है आप अज्ञानी रहो नही और दुसरे को बेवकुफ बनाओ नहीं | आत्मा आनंदस्वरुप है तो आप दुखी बनो नहीं और दूसरो के लिए दुःख का निमित्त बनो नहीं  | सुमिरन ऐसा कीजिए खरे निशाने चोट मन ईश्वर में लीन हो हले ना जिव्हा, होंठ | ॐ कार मंत्र की खोज नारायण ने की है |  
ॐकार मंत्र गायत्री छंद नारायण ऋषि अथवा परमात्मा ऋषि 
अंतर्यामी देवता अंतर्यामी प्रीतिअर्थे जपे विनियोग |
वो अंतरात्मा परमेश्वर कभी साथ नहीं छोड़ता उसका जप करने से तुमको अभी अभी भगवान की कृपा का परिचय मिलेगा, अनुभव होगा  | और बुद्धि खिलेगी, याद शक्ति बढ़ेगी, पेट की तकलीफे गायब होगी, लीवर की तकलीफे होगी नहीं, दिमाग सुंदर हो जाएगा | 
हरी ॐ ॐ ॐ प्यारे ॐ माधुर्य ॐ ॐ ॐ ॐ हरी ॐ हरी ॐ जय हो 

प्रातःस्मरण Pratah Smaranam

श्रीगणेशाय नम: । श्रीसरस्वत्यै नम: ।
श्रीसोमेश्र्वराय नम: । श्रीविश्‍वेश्‍वराय नम: ।
श्री कुलदेवताभ्यो नम: ॥
*
कराग्रे वसते लक्ष्मी : करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविंद : प्रभाते करदर्शनम् ॥
*
या कुन्देन्दुतुषार हारधवला या शुभ्रवस्त्रावृत ।
या वीणावरद्ण्डमण्डितकरा या श्र्वेतपद्‍मासना ।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि: शेषजाड्यापहा ॥
*
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्‍नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ॥
*
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ ।
निर्विघ्नं करु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
गणनाथ सरस्वती रविशुक्रबृहस्पतीन् ।
पश्र्चैतान्संस्मरेन्नित्यं वेदवाणीप्रवृत्तये ॥
*
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्‍वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाड्‍गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
*
मूकं करोति वाचालं पंगुम् लंघयते गिरीम् ।
यक्तृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥
*
गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्‍वर: ।
गुरु: साक्षाप्तरब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
*
ब्रह्मानंन्दे परमसुखंदे केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।
द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी: साक्षिभूतं ।
भावतीतं त्रिगुणरहित सद्‍गुरुं तं नमामि ॥
*
पुण्यश्‍लोको नेलो राजा पुण्यश्‍लोको युधिष्ठिर: ।
पुण्यश्‍लोको विदेहश्र्च पुण्यश्‍लोको जनार्दन : ॥
कर्कोटकस्य नागस्य दमयन्त्या नलस्य च ।
ऋतुपर्णस्य राजर्षे: कीर्तनं कलिनाशनम् ॥
*
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥१॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत: ।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥२॥
*
अश्‍वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्‍च बिभीषण: ।
कृपा परशुरामश्‍च सत्पैते चिरंजीविन: ॥
*
जगन्मातर्नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।
दयावति नमस्तुभ्यं विश्र्वेश्र्वरि नमोऽस्तु ते ॥
*
बलिर्बिभीषणो भीष्म: प्रल्हादो नारदो ध्रुव: ।
षडैते वैष्णवास्तेषां स्मरणं पापनाशनम् ॥
*
अहल्या द्रोपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
पंचकन्या स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥
*
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजय: ।
यषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दन: ॥
*
सदा सर्वदा योग तुझा घडावा ।
(sada sarvada yog tuza ghadava)
तुझे कारणी देह माझा पडावा ।
उपेक्षु नको गुणवंता अनंता ।
रघुनायका मागणॆ हेचि आता ॥
*
ब्रह्मा मुरारिस त्रिपुरांतकारी , भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्र्च
गुरुश्र्च शुक्र: शनिराहुकेतव: , कुर्वंतु सर्वि मम सुप्रभातम् ॥
सनत्कुमार: सनक: सनंदन: सनातनोप्यासुरिपिंगलौ च ।
सप्तस्वर: सप्तरसातलानि । कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
*
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनं ।
उज्जयिन्यां महाकालमोकारममलेश्र्वरम् ॥
परल्यां वैजनाथं च डाकिन्या भीमशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वाराण्स्यां तु विश्र्वेंशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुसृणेशं शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सांय प्रात: पठेन्नर: ।
सत्पजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
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पृथ्वी संगधा, ससस्तथाप:
स्पर्शी च वायु: ज्वलनं च तेज: ।
नभ: सशब्दं महता सहैव
कुर्वंतु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
*
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् , स्मरेव्दा श्रुणुयाच्च तव्दत् ।
दु:स्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातम् भवेच्च नित्यं भवरत्प्रसादन् ॥
*
सर्वेऽत्र सुखिन: सत्‍नु सर्वे सत्‍नु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्‍चिदु:खमाप्नुयात् ॥
*
मनोजवं मारुततुल्यवेगं । जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयूथमुख्यम् । श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
*
गणाधीश जो ईश सर्वागुणांचा
मूळारंभ आरंभ तो निर्गुणांचा
नमू शारदा मूळ चत्वार वाचा
गमू पंथ आनंद तो या राघवाचा ॥
*
कैलासरणा शिव चंद्रामौळी ।
फणीद्रं माथा मुकुटीं झळाळी ।
करुण्यसिंधु भवदु:खहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥
*
गोरक्ष जालंदर चर्पटाश्‍च
अडबंग कानिफ मच्छिंद्रराद्या: ।
चौरंगी रेवाणक भर्त्री संज्ञा
भूम्यां बभूवुर्नवनाथ सिद्धा: ॥
*
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते ॥
*
ज्या ज्या ठिकाणी मन जाय माझे ।
(Jya jya thikani man jay maze)
त्या त्या ठिकाणी निजरुप तुझे ।
मी ठेवितो मस्तक ज्या ठिकाणी ।
तेथे तुझे सद्‍गुरु पाय दोन्ही ॥
*
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम: ॥
*
जयाच्या शिरी केशरी रंग शोभे ।
दुजा पांढरा पाहता चित्त लोभे ।
हिरवा तिजा देई शांती मनाला ।
सदा ठेवू चित्ती तिरंगा ध्वजाला ॥
*
गोविंदा गोपाळा कृष्णा विष्णू मुकुंद घननीळा ।
धृतकौस्तुभवनमाळा पीतांबरधारि देवकी बाळा ॥
श्रीरामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा ।
गोविंदा गरुडध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ॥
श्रीकृष्णा कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते त्राहि माम् ॥
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम: ॥
*
कूजन्तम् रामरामेति मधुरम् मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां । वन्दे वाल्मिकीकोकिलम् ॥
*
नेत्री दोन हिरे, प्रकाश पसरे अत्यंत ते साजिरे ।
माथा शेंदूर पाझरे वरी बरे , दुर्वांकुरांचे तुरे ॥
माझे चित्त विरे , मनोरथ पुरे , देखोनि चिंता हरे ।
गोसाविसुत वासुदेव कवि रे, त्या मोरयाला स्मरे ॥
*
मोरया मोरया मी बाळ तान्हे ।
(Morya Morya Mee Bal Tanhe)
तुझीच सेवा करु काय जाणे ॥
अपराध माझे कोट्यानु कोटी ।
मोरेश्र्वरा बा तू घाल पोटी ॥
*
हरीच्या करी एक रंगीत काठी ।
हरी उभा राहिला भीवरे वाळवंटी ।
तुरा खोविला तुळशी मंजिरीचा ।
असा विठ्ठल देखिला पंढरीचा ॥
*
गुरुर्ब्रह्मा: गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्र्वर: ।
गुरु: साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
*
शिव भवानि रुद्राणि, शर्वाणि सर्व मंगला
अपर्णा , पार्वती ,दुर्गा मृडानि चंडिकाबिका ॥
*
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्‍गुरुम् ॥

Friday, September 12, 2014

Information of Pitru Paksh in Marathi - Mahalay Shraddha

म्हाळवस.. ( पितृपक्ष ) Mhalvas-Pitrupaksh-Mahalay-Shraaddha
अन्नदान करण्याची परंपरा गेल्या अनेक शतकांपासून कोकणात सुरू आहे. तशी ती अन्य भागांतही आहे. परंतुकोकणातील परंपरेला येथील वैशिष्टयाची एक झालर आहे.अतिथी देवो भव’ यासाठी प्रसिद्ध असलेल्या कोकणात महालय पर्वात जेवणकारीठेवण्याची खासियत आहे. (जेवणकारी म्हणजे पूर्वजांच्या नावाने ज्यांचा आपण आदरसत्कार करणार आहोत अशी व्यक्ती). या पर्वातील पंधरा दिवस म्हाळवस’ किंवापितृपक्ष’ म्हणूनही ओळखले जातात.
आपल्या हिंदू धर्मात प्रत्येक प्राणिमात्राचा विचार केला गेला आहे. ज्याच्यात प्राण आहे अशा निसर्गापासून ते माणसापर्यंत अगदी पशुपक्ष्यांपर्यंत प्रत्येकाचा विचार केलेला आहे. इतकंच काय इहलोकी गेलेल्यामृत्यू पावलेल्या पूर्वजांचाही विचार आपल्या धर्मात केला गेला आहे. त्यासाठीच वर्षाचा एक पंधरवडा राखून ठेवला आहे. ज्याला कोकणात पितृपक्षम्हाळवस असं संबोधलं जातं. या काळात पूर्वजांच्या रूपाने एखाद्या नातेवाइकाला जेवण्यास बोलावण्यात येतं. निवडण्यात येणारी व्यक्ती गावातील अथवा आपल्या लगतच्या गावातील असते. ज्या घरात अशा व्यक्तींना बोलावलं जातंतेथे दिला जाणारा मानसन्मान हा पूर्वजांच्या दिमाखाप्रमाणे असतो. त्यांचे पाय धुण्यापासून ते भोजनासाठी पाटावर बसेपर्यंत आणि भोजनानंतर त्यांचा सन्मान करेपर्यंत खास व्यवस्था करण्यात येते. एकदा का त्या व्यक्तींना सन्मान दिला गेला कीत्यांना मातृ-पितृतुल्य मानले जाते. पंचपक्वान्नमिष्ठान्न जेवण येणा-यांना वाढले जाते. अतिशय प्रेमाने त्यांची उठबस केली जाते.
अलीकडे म्हाळवसाची परंपरा नव्या जमान्याप्रमाणे विस्तारत आहे. पूर्वजांच्या नावाने भोजनावळी न मांडता समाजोपयोगी असे काही करता येणं शक्य आहे का याचा विचार लोक करताना पाहायला मिळतात. भाद्रपदाची पौर्णिमा झाली कीम्हाळवसाचे वारे वाहू लागतात. सर्वपित्री अमवास्येला ही अन्नदानाची परंपरा थांबते. भारतीय संस्कृतीचं एक मोठं वैशिष्टय़ आहे कीजिवंतपणी विविध संस्कारांद्वारेधर्मपालनाद्वारे मानवाला समृद्ध बनविलं जातं आणि मृत्यूनंतरही त्याचं स्मरण केलं जातं. ही स्मरणाची परंपरा पिढयानपिढया जपली जाते.
भाद्रपद महिन्यातील कृष्ण पक्ष हा श्राद्ध पक्षाच्या रूपाने साजरा केला जातो. श्राद्धाचा महिमा व विधीचे वर्णन विष्णूवायूवराहमत्स्य आदी पुराणांमध्ये तसेच महाभारत,मनुस्मृती शास्रमध्ये विविध ठिकाणी पाहायला मिळते. मृतात्मे याच दिवसात पुन्हा पृथ्वीवर अवतरतात असा समज आहे. वैज्ञानिक जगतात याबाबत ब-याच वेळा काथ्याकुट होतो. मात्रपूर्वजांच्या स्मृती जपण्याचा कसोशीने प्रयत्न करताना पूर्वजांची आदरयुक्त भीती असावीअसा प्रयत्न ही परंपरा निर्माण करताना झाली असावी.
देहावसान झाल्यानंतर धर्मसंस्कृतीत कल्याणाची भावना करणे हे अपूर्व शुभकार्य समजले जाते. त्यातूनच म्हाळवसाची प्रथा रूढ झालीअसे ज्येष्ठ लोक सांगतात. प्रेतात्मे या म्हाळवसात मृत्यूलोकात उतरतात काहा वादाचा विषय असला तरीया मागची परंपरा आणि प्रथेमागचे विज्ञान समजून घेणे अगत्याचं आहे. अनेकवेळा नास्तिकतेचे समर्थन करणारे याकडे लक्ष वेधताना सांगतात कीयेथे दान केलेले अन्न पितरांपर्यंत कसे पोहोचू शकतेयावर भारताचे चलन रुपया’, अमेरिकेत डॉलर’, लंडनमध्ये पौंड’, जपानमध्येयेन’, दुबईत दिनार’ अशी चलने आहेत. जर येथे पोहोचायचे झाल्यास चलनातून व्यवहार करावा लागतो. अशा वेळी रुपयाचे चलन बदलून दिले जाते. त्याप्रमाणे ईश्वराकडे आपले पुण्य पोहोचण्यासाठी श्राद्धात अर्पण केलेल्या वस्तूपूर्वजांच्या स्मरणातून केलेल्या अन्नदानाचे भाग्य मिळतेअसे याचे समर्थन करणारे सांगतात.
श्राद्धाचा विधी करताना पितरांसाठी विषम अर्थात १,,,७ तर देवतांसाठी सम अर्थात २,,,८ अशा संख्येत विशिष्ट माणसांना म्हणजे जेवणकारी’ मंडळींना बोलावून त्यांना भोजन घालण्याची परंपरा आहे. श्राद्धाच्या शेवटी दान देताना हातात जव आणि कुश (दर्भ) याबरोबर पाणी घेऊन अध्र्य दिले जाते. यावेळी पिंडदानही केलं जातं. काहीही असो,श्राद्धाचा विशेष फायदा असा कीमृत्यूनंतरही जिवाचे अस्तित्व राहते. पूर्वजांची आठवण राहते. संपत्तीचे सामाजिकरण होते. गोरगरिबांनानातेवाईकांना मिष्ठान्न भोजन देण्याचं समाधान मिळतं. अन्य भोजन समारंभात रजो-तमो गुण असतात. परंतुश्राद्धाच्या हेतूने दिलं गेलेलं भोजन धार्मिक भावना वाढवतं. परलोकासंबंधी भक्तीभाव विकसित करतं. दानधर्म करायला हवायासाठी आग्रहाने संस्कृतीच आपल्याला वळवते.
औरंगजेबाने आपले वडील शाहजहानला कैद केले होते. तेव्हा शाहजहानने एका खलित्यात औरंगजेबाला लिहितानाअसं म्हटलं आहे की, ‘‘धन्य आहेत ते हिंदू जे आपल्या मृत आई-वडिलांनाही खीर आणि हलवा- पुरीने तृप्त करतात आणि तू आपल्या जिवंत बापाला पाण्याचं मडकंसुद्धा देऊ शकत नाहीतुझ्यापेक्षा ते हिंदू चांगलेजे मृत्युपूर्वी आणि मृत्युनंतरही स्मरण साखळी तोडत नाहीत.’’
महालय’ म्हणजे मोठे श्राद्ध. महालयाचा अपभ्रंश होऊन म्हाळ (मालवणी मुलखातला शब्द ) म्हणण्याचा सोयीस्कर शब्द तयार झाला. कोकणात म्हाळाचे दिवस म्हणजे म्हाळवस असा शब्दप्रयोग झाला. पहिले महाश्राद्ध श्रीरामाने वनवासातून परतल्यावर दशरथ राजाला मुक्ती मिळविण्यासाठी घातल्याचे सांगण्यात येते. या म्हाळवसातील नवमीचा दिवस या तिथीला विशेष महत्त्व असतं. ज्यांच्या घरातून सुवासिनी मृत झाल्या आहेतअशा महिलांची विशेष तिथी या दिवशी केली जाते. या दिवशी सुवासिनींना मोठा मानसन्मान दिला जातो. खणानारळाने ओटी भरली जाते. अमवास्येला तर त्याहून अधिक महत्त्व आहे. या दिवशी म्हाळांचे मोठया प्रमाणात आयोजन केले जाते. ज्यांना आपल्या पितरांची निर्गमनाची तिथीच माहिती नाही ते सर्वपित्री अमवास्येचा मुहूर्त धरतात.
म्हाळवस म्हणजे वडा-सांबाराचे दिवस. मिष्टान्न देताना वडे-सांबार हा मेनू मोठा असतो. अन्नदानाचा हा कार्यक्रम गावागावात साजरा होतो. पितरांच्या नावाने अनेकजणांना बोलावून भोजन दिलं जातंअन्नदान केलं जातं. जेवणका-यांचा हा कार्यक्रम मोठा असल्याने अनेक घरांमध्ये जेवणकारी राहणारी मंडळी पंधरा दिवस घरामध्ये पोहोचतच नाही. जेवणापूर्वी आखित’ (गंध ) लावण्याची परंपरा आहे. भोजन झाल्यानंतर विडा दिला जातो. हा विडा मानाचा समजला जातो. काही ठिकाणी शिधा आणि भेटवस्तूही दिली जाते. काही ठिकाणी ब्राह्मणांना जेवू घातलं जातं. काही गावांमध्ये दिवाळीनंतर म्हाळ घालण्याची परंपरा आहे.
या दिवसात जेवणका-यांची असणारी चंगळ आणि पूर्वजांच्या स्मृतीची परंपरा यात पंधरा दिवस कसे निघून जातात समजत नाही. काहीजण अनंत चतुर्दशी ते सर्वपित्री अमवास्येपर्यंत घरात जेवतच नाहीत. या दिवसात त्यांचे एक प्रहरी भोजन सुरू असते. जेवणकारी असणा-या व्यक्तींना उपवास धरणे अगत्याचं असतं. काही ठिकाणी आग्रहाचे निमंत्रण असल्यामुळे आणि एकाच दिवशी दोन-दोन म्हाळ असल्यामुळे एका ठिकाणी जेवणकारी तर दुस-या ठिकाणी ते केवळ आपली उपस्थिती लावतात. तिथे त्यांना पुन्हा काही खाता येत नाही.
काही ठिकाणी या म्हाळवसात कुळी’ वाचण्याची परंपरा आहे. दिवाळीच्या हंगामात ठाकर मंडळी अशी कुळी घरोघरी येऊन वाचतात. हा एक चालता बोलता इतिहास असतो. आपले पूर्वज कोणपूर्वजांचे पूर्वज कोण होते याची वंशावळच गेयतेतून (गाण्यातून)मांडली जाते. या पूर्वजांचे स्मरण म्हाळा दिवशी व्हावे म्हणून सायंकाळच्या वेळी या कुळी वाचणा-या मंडळींना पाचारण करण्यात येते आणि मग कोणत्या पुत्राने कशासाठी दान केले यापासून ते त्यांचे पूर्वज कोण होतेपूर्वजांनी दानधर्म कसा केला होता या सर्वाची वंशावळीच पुढे आणली जाते. ही कुळी सांगण्याची पद्धतीही अनोखी अशी आहे. कोकणचं ते खास वैशिष्टय़ समजलं जातं. नव्या पिढीला पूर्वजांच्या पराक्रमाची जाणीव व्हावी असा या मागचा हेतू असतो.
शहरी भागात म्हाळाने स्वरूप बदललेले आहे. आता म्हाळासाठी जेवण करण्यासाठी घरात आवश्यक असणा-या माणसांची कमी असल्याने हॉटेलमधून ऑर्डर दिल्या जातात. काही ठिकाणी आचा-यांना निमंत्रित केले जाते. या म्हाळांच्या दिवसासाठी आचा-यांचे काही गटच सध्या सर्व सोयी पुरवितात. आचा-यांच्या काही कंपन्या या म्हाळासाठी सक्रिय होतातही मंडळी खास पॅकेजही देतात. काही ठिकाणी तर ही आचारी मंडळी आपल्या पॅकेजमध्ये जेवणका-यांचीही सोय करून देतात. अलीकडे ग्रामीण भागात महिला बचतगटही म्हाळवसात मदतीसाठी पुढे सरसावतात. गावोगावी होणा-या म्हाळात केळीच्या पानावरच्या भोजनाचा स्वादत्याला धार्मिकतेची किनार आणि सर्व मंडळींचे एकत्र येणं ही एक अपूर्व पर्वणी असते. यासाठी मग पितरांची स्मृती जागविणे कोकणवासीयांना अवघड वाटत नाही. दानधर्म करण्याची परंपरा या मालवणी मुलखात मोठी आहे. कोणाच्या ना कोणाच्या स्मरणार्थ घर बांधून देण्यापासून ते मोठी आर्थिक मदत करेपर्यंतआणि समाजोपयोगी कार्यक्रम राबवून स्मृती जपण्याचा प्रयत्न होतो. मात्र,महालय पर्वात दानधर्म करण्यातही मालवणी मुलूख मागे नसतो. त्या मागची भावना तेवढीच तीव्र असते. ज्या पूर्वजांमुळे या भूमीत आपले आगमन झाले. आपले एक अस्तित्त्व निर्माण करू शकलो त्यांची आठवण आपण ठेवायलाच हवी.

भारतीय खेळाडूंच्या जेवणात झुरळे, निकृष्ट भाज्या


नवी दिल्ली : एकीकडे भारतीय खेळाडूंकडून ऑलिम्पिक, आशियाई यांसारख्या स्पर्धांमध्ये पदकविजेती कामगिरी करण्याची अपेक्षा बाळगण्यात येत असतानाच खेळाडूंना योग्य आहार व इतर आवश्यक सुविधा देण्यात मात्र सरकारकडून कुचराई होत आहे. दिल्ली येथील इंदिरा गांधी क्रीडा संकुलामध्ये प्रशिक्षण घेणाऱ्या भारतीय खेळाडूंना निकृष्ट अन्न मिळत असून, खेळाडूंच्या आरोग्यासाठी आवश्यक काळजी घेण्यातही हेळसांड होताना दिसून येत आहे.

दक्षिण कोरियातील इंचिऑन येथे होणाऱ्या आगामी आशियाई स्पर्धेसाठी भारताच्या महिला बॉक्सर, जिम्नॅस्ट आणि सायकलपटू सध्या इंदिरा गांधी क्रीडा संकुलामध्ये सराव करतात. भारतीय क्रीडा प्राधिकरणाकडून (साई) या संकुलाचे व्यवस्थापन पाहिले जाते. मात्र, आंतरराष्ट्रीय खेळाडूंच्या आरोग्याची काळजी घेणे तर सोडाच, खेळाडूंसाठी बनवलेल्या अन्नात झुरळे, उघड्यावर ठेवलेल्या भाज्या, न धुतलेली भांडी, बंद पडलेले वॉटर कुलर्स व साचलेला कचरा असे चित्र दिसून येत आहे. अर्थातच या गैरसोयींमुळे येथे सराव करणाऱ्या खेळाडूंमध्ये नाराजी आहे. दिल्ली महानगरपालिकेनेही या संकुलाला पाण्याची टाकी स्वच्छ नसल्याने ४,००० रुपयांचा दंड ठोठावला होता. तथापि, त्यानंतरही परिस्थितीमध्ये फारसा बदल झालेला नाही.

संकुलातील खानावळीचे कंत्राट असलेल्या कंत्राटदाराकडे खेळाडूंनी याविषयी तक्रारही केली. परंतु, त्यामुळे खेळाडूंनाच सराव शिबिरातून काढून टाकण्याचा; तसेच शिळे अन्न देण्याच्या धमक्या देण्यात आल्या. काही खेळाडूंनी क्रीडा मंत्रालयाला पत्र लिहून याविषयी दखल घेण्याची विनंती केली आहे. 'फुकट मिळतेय, त्या जेवणाबाबत तक्रार करू नका', अशी धमकीही या कंत्राटदाराने दिल्याचे शिबिरातील एका खेळाडूने सांगितले. स्टेडियमचे प्रशासक कपिल कौल यांच्यासमोर हा मुद्दा मांडला असता त्यांनी कोणत्या घरात झुरळे नसतात, असा प्रतिप्रश्न केला. आहारतज्ज्ञांनीच कीटकनाशके न वापरण्याची सूचना केल्याने झुरळे व उंदीर वाढल्याचे त्यांनी सांगितले.

Thane information in marathi




thane
महानगरपालिकेची स्थापना हा ठाणे गावाच्या आयुष्यातला फारच महत्त्वाचा टप्पा होता. संपूर्ण आर्थिक आणि सांस्कृतिक- सामाजिक स्थित्यंतराला तिथूनच पुढे प्रचंड वेग आला...

दुसऱ्या लेखाच्या प्रारंभी नमस्कार ठाणे हे शीषर्क कागदावर उतरवलं आणि अनेक आठवणी तळापासून वर येऊन मनात गर्दी करायला लागल्या. काही न ठरवता मी मागचा लेख १२ मिनिटांत पूर्ण केला तो अशाच उमलून वर येणाऱ्या आठवणींमुळे...

एकदा सकाळी साडे सहा वाजताच घराची घंटा वाजली. दार उघडलं तर समोर प्रसन्नचित्त हसतमुख मूर्ती.....योगाचार्य सहस्रबुद्धे यांची. पूर्व ठाण्यामधल्या घरापासून चालत चालत आल्याने गाल लालबुंद झाले होते. त्यांनी स्वतःच एक पुस्तक भेट म्हणून माझ्या पतीच्या हातात ठेवलं. योग-प्रसार करण्याचा हा केवढा विलक्षण ध्यास.....आमचं दोघांचं रात्री उशीरा घरी येणं, मुलीचा तीव्र आजार वगैरे अडचणी आहेत असं रडगाणं मी सुरू केलं तेव्हा ते शांतपणे म्हणाले, म्हणूनच योगाभ्यासाची जरूर तुलाच जास्त आहे. अशा व्यक्ती मग केवळ व्यक्तिगत नाती विणत नाहीत तर संस्था बनतात. अशा अनेक संस्थांनी तेव्हा ठाण्याला समृद्ध करायला सुरुवात केली होती.

साधारण याच सुमारास एक गंमतीदार अनुभव.... ठाण्यात कलेक्टर म्हणून आलेल्या तरुण आधिकारी जॉयस् शंकरन् यांच्या स्वागताचा कार्यक्रम झाला आणि दुसऱ्याच दिवशी सकाळी कोपरीच्या टायनी टॉटस् शाळेत आम्ही दोघी आईच्या भूमिकेत भेटलो. अचलाताई महाजन यांची ती शाळा तर लोकप्रिय होतीच पण कामाची बाई शोधून देण्यापासून सरकारी कागदपत्रांपर्यंत हे महाजन दांपत्य अनेकांचा आधार होते. जॉयस् शंकरन, नीलाताई सत्यनारायण या उच्चाधिकारी ठाण्यात चांगल्या रमल्या होत्या. नीलाताईंशी तर पुढे जीवाचं मैत्र जुळलं.

सांस्कृतिक ठाण्यामध्ये तेव्हा अनेक घडामोडी सतत चालू असायच्या. मो. ह. विद्यालयाच्या प्रांगणात कट्यार, मत्स्यगंधाचे प्रयोग रंगायचे. रात्री उशीरापर्यंत. तेव्हा १० वाजता आवाज बंद नसे होत. रात्री पाहिलेल्या नाटकावर नंतर कलासरगम च्या गटात चर्चा व्हायची. गोखले रोडवरचं विजय जोशीच्या आजीचं घर म्हणजे कलासरगमचा अड्डा. नाट्यस्पर्धा, एकांकिका स्पर्धा जवळ आल्या की आजी आणि विजयच्या दोघी बहिणी किती लाड करायच्या कलाकारांचे.

असंच एक अद्‍भूत घर.....घर कसलं गुहाच होती ती पुस्तकांची. श्रीहरी जोशी आणि पुष्पाताई जोशी म्हणजे अस्सल नाटकवेडे.....जाणकार. कलासरगम, मित्र सहयोग तसंच ठाण्यातल्या साऱ्या तरुण कलाकारांवर या घरानं मायेची पाखर धरली. मासे साफ कसे करायचे हे पुष्पाताईंकडून एकता श्रीहरींकडून तुकारामाचे अभंगही शिकता यायचे.

दोनच पावलं पलिकडे लीलाताई जोशी..... एक शिक्षणाचं बेट, उत्साहाचा, चैतन्याचा झराच जणू.... आज ठाण्यातल्या यशस्वी लोकांची यादी केली तर अर्ध्याहून आधिक जणं माझ्यासारखेच या दोन्ही घरांशी मनानं जोडले गेलेले दिसतील. कारण एकदा का या घरात कामानिमित्त शिरलं की आपण त्यांचेच होऊन जायचो. शाळेची फी भरण्यापासून ते सध्या काय वाचन चालंय याकडे लीलाताई आणि श्रीहरींचं बारीक लक्ष असायचं. आणि आवडतं लोणचं देण्यापासून नाटकाचं पाठांतर, बॅकस्टेजची मदत, नऊवारी नेसवणं, मेकअप करणं....साऱ्यात पुष्पाताई सखी बनून वावरायच्या. अशी कितीतरी माणसं त्या काळात जोडली जात होती.

ठाण्याचा राजकीय चेहरा तेव्हा खूप सौम्य होता. आज चित्रपटात किंवा प्रत्यक्षात प्रसारमाध्यमात राजकारणाचे जे रंग दिसतात त्याचा मागमूसही नव्हता. सुमनताई हेगडे नगराध्यक्षा झाल्या त्याचं किती कौतुक वाटलं होतं. अलिकडेच कालवश झालेल्या कावेरीताई पाटील लढाऊ बाण्याच्या असं ऐकलं होतं. प्रत्यक्षात त्या फार प्रेमळ होत्या वागायला. नगराध्यक्ष आणि नंतर महापौर सतीश प्रधान ज्ञानसाधना कॉलेजमध्ये सहज भेटू शकायचे. सदैव पांढऱ्या कपड्यात वावरणारे महापौर वसंत डावखरे नवीन उपक्रम सुचवा असं मोकळेपणानं सांगायचे. आनंद दिघे या नावाला वलय प्राप्त व्हायला तेव्हा नुकतीच सुरुवात झाली होती. तोपर्यंत कमी तिथे आम्ही या वृत्तीचं त्यांचं मदतकार्य ठाण्यात चांगलं रूजलं होतं.

महानगरपालिकेची स्थापना हा ठाणे गावाच्या आयुष्यातला फारच महत्त्वाचा टप्पा होता. संपूर्ण आर्थिक आणि सांस्कृतिक- सामाजिक स्थित्यंतराला तिथूनच पुढे प्रचंड वेग आला.

ठाण्याचं दादोजी कोंडदेव स्टेडियम आणि गडकरी रंगायतन उभ्या महाराष्ट्राच्या कौतुकाचा विषय झालं होते. ठाणेकर जनतेचं प्रत्येक स्वप्न पूर्ण करायला मी वचनबद्ध आहे असे भावपूर्ण उद्‍गार बाळासाहेब ठाकरे यांनी काढले होते. आणि खरोखरच झपाट्यानं बदलणाऱ्या या शहराच्या प्रगतीवर त्यांचं बारकाईनं लक्ष होतं.

शहराच्या बदलत्या रुपाचा वेग अर्थातच आम्हां ठाणेकरांच्या दैनंदिन जीवनालाही प्राप्त झाला. चालण्याची सवय जात चालली......वेळ नाही म्हणून...... आणि वाहतूक कोंडीत अडकून वेळ गेल्यावर चिडचीड व्हायला लागली. माणसांच्या भेटीगाठीतलं अंतर वाढायला लागलं, ..... ठाण्याचं महानगर झालं. 

‘मुंबईपाठोपाठ सर्वाधिक दरडोई उत्पन्न असलेले शहर’ असा तुरा ठाणे शहराच्या शिरपेचात नुकताच रोवला गेला. उच्च मध्यमवर्गीयांचा भरणा वाढत असलेल्या या शहरात उंची गाड्या, मोठमोठे मॉल्स, मल्टिप्लेक्स, आलिशान शोरूम्स आणि श्रीमंतीचे प्रदर्शन वाढले. मात्र, शहरातील नागरी सुविधांकडे नजर टाकल्यास ‘नाव मोठे लक्षण खोटे’ असा प्रत्यय येतो. अरुंद रस्ते, त्यावरचे वाहनांचे पार्किंग, प्रवाशांना धक्के देत धावणारी टीएमटी, रिक्षा चालकांची मुजोरी, उच्च शिक्षणासाठी मुंबईत घ्यावी लागणारी धाव, धोकादायक इमारतीमध्ये जीव मुठीत धरून राहणारे रहिवासी, झोपड्यांमध्ये राहणारी जवळपास ४५ टक्के जनता, ध्वनी आणि वायू प्रदूषणात होणारी घुसमट आणि राजकीय अरेरावी अशा दुष्टचक्रात ठाणेकर पुरते पिचले आहेत.

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वाढत्या वाहनांचा भार पेलण्याची क्षमता शहरातील रस्त्यांत शिल्लक राहिलेली नाही. त्यातच पालिकेच्या पार्किंग धोरणाचा बट्याबोळ झाल्यामुळे प्रमुख रस्त्यावरची अर्धी मार्गिका वाहने पार्क करण्यासाठी वाया जाते. पादचाऱ्यांना चालण्यासाठी रस्त्यांच्या कडेला फूटपाथ बांधण्यात आले. ‘हरित जनपथ’ असा गाजावाजा करीत त्यावर कोट्यवधी रुपये खर्च झाले. मात्र, या पदपथांवर फेरीवाल्यांचा कब्जा असल्याने पादचाऱ्यांना रस्त्यांवर धावणाऱ्या गाड्यांपासून स्वतःचा जीव वाचवतच मार्गक्रमण करावे लागते. वर्षाकाठी सुमारे १५० कोटी रुपये खर्च केल्यानंतरही टीएमटीची परिवहन सेवा प्रवाशांच्या सहनशीलतेचा अंत बघत आहे. ‘जेएनएनयूआरएम’ योजनेतून २२० कोटी रुपयांच्या नव्या बसगाड्या दाखल झाल्यानंतरही ही परिस्थिती सुधारलेली नाही. रिक्षाचालकांची अरेरावी तर जणू प्रवाशांच्या पाचवीलाच पूजलेली आहे. वाहतूक पोलिस आणि राजकीय नेत्यांनी कितीही बाता मारल्या, तरी रिक्षाचालकांची मुजोरी मोडून काढण्यात त्यांना यश आलेले नाही. त्यामुळे घरापासून रेल्वे स्टेशन गाठताना किंवा इच्छितस्थळी जाताना अनावश्यक वेळ आणि पैसा खर्च होण्यासोबतच मनस्तापही सोसावा लागतो. ठाणे आणि मुलुंड दरम्यानचे एक्स्टेंडेड ठाणे स्टेशन असो, किंवा ठाणे मेट्रो असो, राजकीय नेते होर्डिंगबाजीशिवाय ठाणेकरांना काहीही देऊ शकलेले नाहीत, ही वस्तुस्थिती आहे.

मुख्य ठाणे शहरात जुन्या इमारती पाडून तेथे टोलेजंग इमारती उभारण्याची स्पर्धा सुरू आहे. त्यांना एफएसआय वाढवून देण्यासाठी सुपीक सरकारी डोक्यांमधून नवनव्या कल्पना येत आहेत. एकेकाळी आशिया खंडातील सर्वांत मोठी औद्योगिक वसाहत असलेल्या वागळे इस्टेटचा परिसर उजाड झाला आहे. यंत्रांची धडधड बंद झाली असून, त्या जागी दाखल झालेल्या आयटी पार्क धोरणाचा पुरता फज्जा उडाला आहे. त्या योजनेतून बिल्डरांनी मात्र आपले उखळ पांढरे करून घेतले आहे.

शहरातील धोकादायक इमारतींच्या पुनर्बांधणीचा विषय गेल्या सात-आठ वर्षांपासून ऐरणीवर आहे. बहुसंख्य इमारती बेकायदा असल्यामुळे त्यांच्या पुनर्बांधणीत अडसर निर्माण झाला होता. लोकसभा निवडणुकांची आचारसंहिता जाहीर होण्यापूर्वी या पुनर्बांधणीसाठी सरकारने क्लस्टर योजना जाहीर केली. मात्र, त्यासाठी आवश्यक असलेला अभ्यास (‘इम्पॅक्ट असेसमेंट स्टडी’) सरकारने केलेला नाही. या मुद्द्यावर ही योजना कोर्टाच्या मंजुरीच्या प्रतीक्षेत रखडली आहे. घोडबंदर रोडवरील शेकडो एकर जमिनीवर वनविभागाने आपला अधिकार सांगितला आहे. सुप्रीम कोर्टाने या रहिवाशांच्या बाजूने निर्णय दिला होता; मात्र, त्याविरोधात पुन्हा फेरयाचिका दाखल झाल्याने तेथील रहिवाशांचा जीव टांगणीला लागला आहे.

दहावी, बारावीसह उच्च शिक्षणात ठाणेकर विद्यार्थ्यांनी यशाची पताका कायम फडकवत ठेवली; परंतु, त्या गुणवत्तेला न्याय देऊ शकणारी उच्च शिक्षणाची संधी (काही अपवाद वगळता) या शहरात उपलब्ध नाही. त्यामुळे नाइलाजास्तव विद्यार्थ्यांना मुंबईची वाट धरावी लागते. पालिका शाळांच्या दुरवस्थेबाबत न बोललेलेच बरे, अशी अवस्था आहे. ठाण्यात राज्य सरकारचे सिव्हिल आणि ठाणे महापालिकेचे कळवा हॉस्पिटल आहे. मात्र, दोन्ही ठिकाणची अनागोंदी पेशंटच्या ज‌िवावर उठणारी आहे. ‘एमजीएल’चा स्वयंपाकाचा गॅसचा पुरवठा आजही सर्व ठाणेकरांपर्यंत पोचलेला नाही. पालिका, वाहतूक पोलिस आणि ‘एमजीएल’च्या वादात त्याची रखडपट्टी सुरूच आहे. खेळाचे मैदान, बगिचांची शहरात वानवा असून, लहान मुलांच्या विरंगुळ्यासाठी पालकांना मॉलचा आधार घ्यावा लागत आहे. शाळा, कॉलेज, मैदाने, गार्डन यांसाठी आरक्षित केलेल्या भूखंडांचा योग्य विकास अद्याप पालिकेला करता आलेला नाही. शहराचा विकास आराखडा राबविण्याची मुदत संपत आली, तरी त्याचे यश अद्याप २० टक्क्यांच्याही पुढे सरकलेले नाही. कचऱ्याची शास्त्रोक्त विल्हेवाट लावण्यासाठी आवश्यक असलेला प्रकल्पही अद्याप पालिकेला उभारता आलेला नाही.

मुंब्रा व कळवा ही शहरे कागदावर ठाणे महापालिकेच्या हद्दीत असली, तरी ठाणे आणि तेथील नियोजनात आणि सोयीसुविधांमध्ये जमीन- अस्मानचा फरक आहे. डायघर येथील बेकायदा इमारतीने ७४ जणांचा बळी घेतल्यानंतरही तेथील बेकायदा बांधकामांवर पूर्णतः अंकुश लागलेला नाही. ग्राहक विजेची बिले भरत नाही, म्हणून मुंब्र्यात लोडशेड‌िंग सुरू आहे. वाढती गुन्हेगारी हा या भागाला लागलेला शाप असून, त्यामुळे सर्वसामान्यांनाही बँक अकाउंट, कर्ज, क्रेड‌िट कार्ड, एवढेच कशाला मोबाइलचे सीमकार्ड मिळवतानाही अडचणी येतात. गेल्या काही वर्षांत येथील नागरी सुविधांमध्ये थोडाफार बदल होताना दिसत असला, तरी तो पुरेसा नाही. कररूपाने ठाणेकर पालिकेच्या तिजोरीत दरवर्षी ६०० कोटींचा भरणा करतात. त्यातून शहरात विकासाची गंगा आणण्याची जबाबदारी पालिका प्रशासन आणि लोकप्रतिनिधींची असते. मात्र, हे दोन्ही घटक अर्थकारणातच मश्गुल असून, त्या ध्येयानेच प्रेरित असे निर्णय घेण्याकडे त्यांचा कल असतो. त्यामुळे शहराच्या समस्या आणि पालिकेचे नियोजनाची दिशा परस्पर विरोधी आहे. हेच ठाण्याचे दुर्देव म्हणावे लागेल.

पूर्ण झालेले प्रकल्प

स्टेशन एरिया ट्राफिक इम्प्रूव्हमेंट स्कीम

कोपरी पूल

डॉ. काशिनाथ घाणेकर नाट्यगृह

११० एमएलडी पाणीपुरवठा योजना

घोडबंदर फ्लायओव्हर

रखडलेले प्रकल्प

क्लस्टर योजना

शैक्षणिक भूखंडांचा पुनर्विकास

पार्किंग धोरण

एक्स्टेंडेड ठाणे स्टेशन

ठाणे मेट्रो

श्रीमंत शहरातील गरीब नियोजन


मुंबईतील पहिली मेट्रो यंदा सुरू झाली. तत्कालीन पंतप्रधान डॉ. मनमोहनसिंग यांनी २००६ मध्ये ज्या मेट्रोचे भूमिपूजन केले, तो मार्ग प्रत्यक्षात येण्यासाठी २०१४ हे साल उजाडावे लागले. शहराचा पूर्व-पश्चिम भाग जोडणाऱ्या या मेट्रोची उपयुक्तता घाटकोपर ते अंधेरी एवढा प्रवास केला, तरी पटते. पाच वर्षांत होणे अपेक्षित असलेले काम आठ वर्षांत झाले. खर्च वाढला, तरीही मुंबईकरांची तक्रार नाही, कारण सार्वजनिक वाहतूक व्यवस्थेतील सगळ्यात पुढारलेला एक मार्ग त्यांना तुलनेने किफायतशीर दरात उपलब्ध झाला आहे. मुंबईकरांचे दुर्दैव हे की, या आठ वर्षांत दुसऱ्या मेट्रो मार्गाचे कामही सुरू होऊ शकले नाही. तोच प्रकार रस्ते वाहतुकीबाबतही दिसतो. फोर्ट ते घाटकोपर जोडणाऱ्या इस्टर्न फ्रीवेसारखीच व्यवस्था पश्चिम उपनगरात अतिशय गरजेची आहे. तेथे मात्र सी लिंक की कोस्टल रोड याच्या चर्चा रंगल्या. भाषणांमधून कुरघोडीचा प्रयत्न झाला, प्रत्यक्षात संपूर्ण सी लिंक प्रकल्पाचा वांद्रे ते वरळी हा एक टप्पाच पूर्ण होऊ शकला. बाकी सगळे प्रश्न जैसे थे!

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मेट्रोच्या चारकोप-वांद्रे-मानखुर्द या दुसऱ्या मार्गाचे भूमिपूजन २००९ मध्ये करण्यात आले. मेट्रो मार्गासाठी सगळ्यात महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे कारडेपो. मूळ प्रस्तावातच त्याची तरतूद सीआरझेडबाधित जागेवर करण्यात आल्यामुळे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालयाने तेथील कारडेपोचा प्रस्ताव फेटाळून लावला. अशाप्रकारे चुकीची आखणी करून मुंबईकरांचे कोट्यवधींचे नुकसान करणारे सल्लागार, त्यावर निर्णय घेणारे नोकरशहा, राज्यकर्ते यापैकी कोणालाही या विलंबाबद्दल शिक्षा किंवा दंड होत नाही. जो प्रकल्प होणारच नाही, हे स्पष्ट दिसते आहे, त्याची टेंडर प्रक्रिया केलीच का? वरळी ते हाजी अली या सी लिंकच्या दुसऱ्या टप्प्यासाठीही टेंडर प्रक्रिया झाली. मग त्या सवलत कराराला सरकारने हमी दिली नाही. हा दोष कोणाचा? हा प्रकल्प आणखी काही वर्षे मागे पडला. त्याच्या बेफाम वाढीच्या खर्चाचा बोजा कोणावर?

ज्या शहराला दोन्ही बाजूला समुद्र किनारा आहे. त्यातील एक पूर्व भाग तुलनेने शांत आहे. अशा इतर कोणत्याही आंतरराष्ट्रीय शहरात किफायतशीर, जलद अशी सार्वजनिक जलवाहतूक सेवा कधीच सुरू झाली असती. मुंबईकरांचे दुर्दैव येथेही आड आले. गेली चार दशके जलवाहतुकीचा प्रश्न सागरी लाटांप्रमाणे एकामागोमाग एक येऊन मुंबईच्या किनाऱ्यावर आदळतो आणि मुंबईचे राजकारणी, अधिकारी तो प्रश्न पुन्हा समुद्रात ढकलून देतात. ‘एमएसआरडीसी’ने दोन्ही किनारपट्ट्यांवरील जलवाहतुकीसाठी योजना तयार केली. त्याला सर्वांनी परवानगी दिली. त्याची टेंडर प्रक्रिया, तिसऱ्यांदा करण्यात आली. त्यात यश आले. पण वर्ष सरत आले, तरी मुख्यमंत्र्यांच्या अध्यक्षतेखालील समितीने त्यास मान्यताही दिली नाही आणि फेटाळूनही लावले नाही. राजकीय पक्षांच्या साठमारीत मुंबईतील सार्वजनिक वाहतुकीचे एक महत्त्वाचे अंग असे विकलांग होऊन गेले.

उपनगरीय रेल्वेचा प्रवास हे एक दिव्य आहे. या मार्गावर दरवर्षी किमान तीन हजार लोक मृत्युमुखी पडतात. एकाही नेत्याने रेल्वेच्या सुविधेचा प्रश्न तडीस नेण्यासाठी सातत्याने प्रयत्न केला नाही. वाढीव खिडक्या, सरकते जिने, फरशांची कामे यांच्यावरच तेही समाधानी राहिले आणि स्वतःच्याच नियमांप्रमाणे चालणाऱ्या रेल्वेने त्याच सरकत्या जिन्यांवरून लोकप्रतिनिधींना कसे सरकवून टाकले, हे कोणाच्याच लक्षात आलेले नाही. उपनगरीय रेल्वेसाठी स्वतंत्र मंडळाची आवश्यकता आहे. दररोज लोकलचा जिवावर उदार होऊन प्रवास करणाऱ्यांची खरेच कोणाला चाड असती, तर मुंबईतील सर्व लोकप्रतिनिधींनी त्यासाठी रान पेटवले असते.

वीज प्रश्नाबाबत तर लोकप्रतिनिधींचे एवढे गैरसमज आहेत की, त्यांच्याकडून याबाबत कोणता मुद्दा लावून धरला जाईल, याबाबत काही खात्री वाटत नाही. मुंबईतील सर्व वीज कंपन्यांचे दर समानीकरणाचा असाच एक मुद्दा उचलून धरण्यात आला. ते शक्य नाही. कारण, त्यासाठी राज्य सरकारकडून खासगी वीज कंपन्यांना दोन हजार कोटींचे अनुदान दरवर्षी द्यावे लागेल. असे असूनही मुंबईकरांना खोटी स्वप्ने विकण्यात आली. त्याऐवजी मुंबईचा वीज पुरवठा सुरळीत राहावा यासाठी ट्रान्समिशन लाइन (मुंबईबाहेरून वीज वाहून आणण्यासाठी लागणाऱ्या जास्त क्षमतेच्या वीज वाहिन्या) वाढवण्याचा खूप महत्त्वाचा मुद्दा राज्य आणि केंद्राच्या दरबारी लटकून आहे, त्यावर कोणीही बोलायला तयार नाही. कारण फूटपाथवरील पेव्हर ब्लॉकची कामे यांच्या निधीतून करण्यात आली, असा उल्लेख ट्रान्समिशन लाइनवर कोण करणार? मुंबईसारख्या आंतरराष्ट्रीय शहरातील सार्वजनिक स्वच्छता आणि खड्डाळलेले रस्ते हे शहराची अपकीर्ती नीटपणे सर्वत्र पोहोचवतात. स्वच्छतेची जबाबदारी सर्वांचीच असल्याने त्यास कोणी वाली नाही. तीच गोष्ट खड्ड्यांबाबत, खड्डे दाखवले की रस्त्यांच्या मालकीचा प्रश्न उपस्थित केला जातो. लोकप्रतिनिधींना उत्तरे मिळवण्यासाठी निवडून दिलेले असते, तेच प्रश्नांचे सांगाडे निर्माण करून मूळ प्रश्न हरवून टाकतात. त्यांच्यातही मूलभूत समस्यांची उत्तरे शोधण्यासाठी पाठपुरावा करण्याची तयारी दिसत नाही. तसा कोणी प्रयत्न केलाच, तर त्याची ती वृत्ती ठेचाळून कशी टाकता येईल, यासाठी सगळ्या सरकारी यंत्रणा एकदिलाने राबतात.

सार्वजनिक वाहतूक व्यवस्थेत समन्वय, सुसूत्रता आणि किफायतशीरपणा या त्रिसूत्रीची गरज आहे. हे लक्षात ठेवून मुंबई आणि आसपासच्या शहर, उपनगरांना जोडणारे सर्व प्रकारचे मार्ग विकसित करणे, ही काळाची गरज आहे. घनकचरा व्यवस्थापनाचा प्रश्न आ वासून उभा आहे, त्यावर तोडगा काढण्यासाठी अनेकांची खप्पा मर्जीही ओढवून घ्यावी लागेल, पण शहराच्या भल्याचे निर्णय घेण्याची गरज आहे. घरांच्या किंमती अवाच्या सव्वा वाढत असून, त्यावर कोणाचेच नियंत्रण नाही. मुंबईत मध्यमवर्गाला परवडणाऱ्या घरांचे पर्याय द्यायला हवेत. त्यासाठी सर्वसमावेशक धोरणाची गरज आहे. हे सगळे करण्यासाठी मुळात मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, कल्याण-बदलापूर, वसई-डहाणूपर्यंतच्या पट्ट्याचा एकत्र विचार करावा लागेल. झटपट निर्णय घ्यावे लागतील. सर्वांना समान फायदा होईल, अशी त्यांची रचना करावी लागेल. यापैकी एक गोष्ट सकारात्मकपणे होत नाही. कारण मुंबईची कीर्ती आंतरराष्ट्रीय असली, तरी नियोजनाच्या बाबतीत येथे कमालीचे दारिद्र्यच आहे.

पूर्ण झालेले प्रकल्प

मेट्रो १
सांताक्रूझ चेंबूर लिंक रोड
इस्टर्न फ्रीवे
वांद्रे ते वरळी सी लिंक

रखडलेले प्रकल्प

मेट्रो दुसरा टप्पा
जलवाहतूक योजना
वीज पुरवठ्यासाठी ट्रान्समिशन लाइन
वरळी ते हाजी अली सी लिंक

गोड बातमीसाठी...



अगदी छोटे उपाय केले किंवा काळजी घेतली तर गोड बातमीची शक्यता वाढते. मात्र, त्यासाठी आधी टाकून द्यायला हवे ते नैराश्य आ​णि वैफल्य...

सर्वसाधारण समजानुसार दांपत्य असे समजते की मासिक चक्रातील १४ व्या दिवशी बीजमोचन होते. परंतु प्रत्येक महिलेसाठी हे विधान सत्य नाही कारण प्रत्येकीचे मासिक चक्र वेगळे असते. आणि बीजमोचनाची तारीख बदलती असते. त्यामुळेच गोड बातमीची अपेक्षा करणाऱ्या दांपत्यासाठी स्वतःहून दिवस मोजणे हा चांगला पर्याय ठरू शकत नाही. इतर पद्धतींचा महिला अवलंब करतात. ते म्हणजे, शरीराच्या तापमानाचे निरीक्षण करणे, सर्व्हायकल फ्लुइडवर लक्ष ठेवणे पण तणाव, प्रवास आणि चुकीच्या आहारामुळे बीजमोचनाच्या तारखा बदलू शकतात.

स्त्रीचे मातृत्वाचे स्वप्न कुठल्याही नैराश्य आणि वैफल्याशिवाय पूर्ण करण्यासाठी काही कल्पक पर्यायांचा वापर करता येऊ शकतो त्यातील एक म्हणजे ओव्युलेशन डिटेक्शन स्ट्रिप. या स्ट्रिप गर्भाशयातून स्त्रीबीज बाहेर आणण्यासाठी जबाबदार असलेले ल्युटिनायझिंग हार्मोन(एलएच) शोधण्याचे काम करते. गर्भाशयातून बाहेर आलेले बीज दोन दिवस टिकते. त्या दरम्यान जर दांपत्याचे मीलन झाले तर गर्भधारणेची शक्यता वाढते.

या स्ट्रिपचा वापर करणे अतिशय सोपे आहे. दुपारच्या वेळेस लघवीच्या नमुन्यांद्वारे कोणत्या काळात गर्भधारणेची शक्यता सर्वाधिक आहे हे कळू शकते. अशा पद्धतीच्या नियोजन केलेल्या मीलनाच्या माध्यमातून सकारात्मक परिणाम मिळू शकतात. आयुष्याचा असणारा वेग, सातत्याने वाढत जाणाऱ्या अपेक्षा पाहता, या गोड बातमीची वाट का पाहावी? बीजमोचन ओळखण्यास मदत करणाऱ्या ओव्युलेशन डिटेक्शन स्ट्रीपच्या मदतीने गर्भधारणेच्या काळासाठी फार वाट पाहण्याची गरज नाही.

Tuesday, September 9, 2014

Self Assessment & Review Medicine Mudit Khanna



Self Assessment & Review Medicine
Mudit Khanna

  


Rs. 1295/-
​ISBN: 9789351525479

Stream: Medical          Subject: Multi Subject          Category: Postgraduate Medical Entrance Examination

Two Color/ Soft Cover/ 8/e, 2015/ 8.5" x 11"/ 1616 Pages/ 2 Volume
Set
  • Bestselling book on the subject.
  • Thoroughly revised and updated edition.
  • Includes chapter-wise Essential Revision Notes.
  • Latest NBE Pattern Questions up to 2013.
  • Complimented with high-yield facts.
  • Essential facts are covered in flow charts and tables in an easy-to-understand format.  
  • Updated from Harrison’s 18th edition and CMDT 2014.
  • Includes a vast bank of latest and previously asked questions from various entrance examinations, such as DNB, AIPGME, PGI and AIIMS.